ऐतिहासिक निर्णय: बेटा अब अपने माता-पिता को भरण-पोषण देने से मना नहीं कर सकता
क्या बेटे की कोई जिम्मेदारी नहीं होती, अपने माता-पिता की देखभाल करने में? क्या कोई माता-पिता अपने बेटे से मासिक भरण-पोषण की मांग कर सकते है? क्या बेटा माता-पिता के सामने ये शर्त रख सकता है की वो उनको भरण-पोषण देने के लिए तभी राजी होगा, जब उसके माता-पिता उसके साथ रहेंगे? और अगर वे अलग रहते हैं तो इससे इनकार कर सकता है। ऐसे कई सवाल हमारे दैनिक जीवन में उठते हैं और आये दिन हम ऐसी खबरे हमारे अख़बार में पढ़ते है। हर दूसरे दिन विवाद तक पैदा हो जाते हैं जब एक बेटा अपने माता-पिता की उचित देखभाल नहीं करता है। ऐसे में माता-पिता क्या कर सकते है? इस ब्लॉग में एक केस को बताया है जिसमे हाल ही के दिनों में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है माता-पिता के भरण-पोषण से सम्बंधित।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि एक बेटे की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने माता-पिता की देखभाल करे और यदि वो उनके साथ न रहना चाहे तो उन्हें निश्चित मासिक भरण-पोषण प्रदान करे।
केस: जगन्नाथ भगनाथ बेदके बनाम हरिभाऊ जगन्नाथ बेडके, 8 जुलाई 2022
इस केस के तथ्य:
- एक पिता की ४ संताने थी जिसमे से 3 बेटियां और 1 बेटा था। बेटे की शादी के बाद उसकी पत्नी उसके बेटे और बहू के साथ रहने लगी। उनकी बेटियों की शादी बेटे से पहले ही हो चुकी थी। लेकिन वह पिता अकेला ही रहता था, क्यूंकि उनका बीटा और बहु उन्हें अच्छे से नहीं रखते थे। इसके साथ ही पिता के पास स्वतंत्र आय का कोई स्रोत नहीं था।
- पिता ने CrPC की धारा 125 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाया और सीनियर सिटीजन की भरण-पोषण की पिटीशन लगाई। उस पिटीशन में मांग की कि उसका बेटा अच्छी कमाई करता है, इसलिए उसका बेटा उसे भरण-पोषण प्रदान करे क्यूंकि उनके पास स्वतंत्र आय का कोई स्रोत नहीं।
- मजिस्ट्रेट ने फैसला दिया कि बेटे को अपने पिता को हर महीने 5000 रुपये भरण-पोषण के रूप में देना होगा।
- बेटे ने मजिस्ट्रेट के फैसला के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की। बेटे का कहना ये था की उनके पिता ने एक संपत्ति बेची थी जिससे उन्हें बहुत बड़ी राशि मिली थी, इसलिए उन्हें अपने पिता को भरण-पोषण प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके साथ ही बेटे ने ये कहा की वो उन्हें भरण-पोषण तभी देगा जब वो उनके साथ उनके ही घर पर रहेंगे।
- पुनरीक्षण याचिका में मजिस्ट्रेट के फैसले को set-aside कर दिया और कहा कि बेटे को अपने पिता को भरण-पोषण देने की जरूरत नहीं है।
बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय:
पिता ने पुनरीक्षण याचिका के आदेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील की। उनके पिता ने अपने बेटे से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए 2 आधार बताए:
- सबसे पहली बात की जो पिता के पास संपत्ति थी उसे बेचकर बेटे और बेटियों की शादी में खर्च हो गए। और अगर पिता को संपत्ति बेचने के बाद भी पैसा मिलता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि बेटा अपने पिता को भरण-पोषण देने की अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेगा। एक बच्चे के रूप में, उनके पिता ने उनकी देखभाल की, बेटे की शादी कराई और सभी जरुआतो को पूरा किया। इसलिए बेटे की भी जिमेदारी है वो उनके बुढ़ापे में उनकी जरूरतों को पूरा करे।
- पिता को भरण-पोषण लेने के लिए उसके साथ क्यों रहना चाहिए? उनके पिता की अपनी स्वतंत्रता है और वे जहां चाहें वहां रहना चुन सकते हैं। पिता ने कहा की उसका बेटा और उसकी बहू उसके साथ बुरा व्यवहार करते हैं इसलिए वह उनके साथ नहीं रहना चाहता है।
अंत में बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिता के पक्ष में फैसला सुनाया। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि उसके पिता अपनी संपत्ति बेचते हैं या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। CrPC की धारा 125 के अनुसार बेटे को अपने पिता को भरण-पोषण देना चाहिए। क्योंकि जब माता-पिता बुढ़ापे में जब वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो जाते है तो ये बेटे की जिमेदारी होती है। इसके साथ कोर्ट ने यह भी कहा की, कोई भी पुत्र अपने माता-पिता को भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए अपने साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। उसके पिता उसके साथ रहे या नहीं, बेटे को भरण-पोषण देने के लिए उत्तरदायी माना। इसलिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने बेटे को पिता को तय मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जो की निचली कोर्ट ने दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा की जो CrPC की धारा 125 है उसके मूल अर्थ को याद रखना जरुरी है।
CrPC की धारा 125:
इस धारा के अनुसार यदि पत्नी हों या पति या वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता या बच्चे (लड़का-लड़की) अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ होते हैं, तो मजिस्ट्रेट 1st क्लास या metropolitan magistrate के पास आवेदन कर सकते हैं। जिसके बाद कोर्ट मासिक भरण-पोषण का निर्देश दे सकता है।
निष्कर्ष
धारा 125 गारंटी देता है कि यदि किसी बेटे के माता-पिता अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं तो यह बेटे का उत्तरदायित्व है कि वह अपने माता-पिता को मासिक भरण-पोषण दे। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसके माता-पिता उसके साथ रहते हैं या नहीं। साथ ही, धारा 125 के साथ, माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 है। यदि उनका पुत्र उनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं करता है तो माता-पिता भी बेटे को उनकी संपत्ति से हटा सकते हैं।
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