लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे के भरण पोषण की जिम्मेदारी
कहने को हम कितने भी मॉर्डन क्यों न हो गए हों लेकिन आज भी हमारे समाज में 'लिव-इन रिलेशनशिप' को बुरी नजर से देखा जाता हैं। शादी से पहले एक लड़का और एक लड़की का अपनी स्वेच्छा से एक पति-पत्नी की तरह एक ही छत के नीचे रहना लिव-इन रिलेशनशिप कहलाता है। लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले दो लोगों के लिए ही कुछ कानूनी नियम बनाए गए हैं।
लिव इन रिलेशनशिप को कोर्ट संविधान के अनुच्छेद (section)-21 के तहत दिए गए राइट टू लाइफ यानी जीने के अधिकार की श्रेणी में करार देता है। लोग बेशक इस संबंध को सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की कसौटी पर कसें, लेकिन यह दो लोगों की निजी जिंदगी से जुड़ा मसला है।
हमारे समाज के कुछ वर्ग में आज भी विवाह पूर्व लड़का लड़की का साथ रहना अच्छा नहीं माना जाता लेकिन जैसा की देश के सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है लिव इन रिलेशन में रहना कोई अपराध नहीं है और जब दो बालिग अपनी मर्जी से साथ रहना चाहें तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये।
‘लिव-इन रिलेशनशिप’ की ये 5 बातें हर लड़के-लड़की को पता होनी चाहिए:
- लड़का और लड़की अगर ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में एक कपल की तरह साथ रह रहे हैं, साथ खा रहे हैं या फिर साथ सो रहे हैं तो दोनों ही शादीशुदा माने जाएंगे। ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ में रहने वाले दो लोग कानून के हिसाब से शादीशुदा कंसिडर किए जाएंगे।
- अगर 'लिव-इन रिलेशनशिप’ में रहने के साथ-साथ लड़की प्रेग्नेंट हो जाती है और वो इस बच्चे को जन्म देना चाहती हैं तो वह बच्चा वैध माना जाएगा। एक शादीशुदा कपल की तरह उस बच्चे की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी उस जोड़े की ही होगी। यही नहीं, कन्या भ्रूण हत्या और गर्भपात से संबंधित सभी प्रावधान 'लिव-इन रिलेशनशिप’ में रहने वाले लोगों पर भी लागू होते हैं।
- 'लिव-इन रिलेशनशिप’ में रह रहे कपल्स बच्चे पैदा तो कर सकते हैं, लेकिन किसी बच्चे को गोद लेने का अधिकार उनके पास नहीं हैं। यही नहीं, हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत लिव इन रिलेशनशिप से जन्मे बच्चे को वो सभी कानूनी अधिकार मिलते हैं, जो एक शादीशुदा कपल्स के बच्चे को मिलते हैं।
- 'लिव-इन रिलेशनशिप' में अगर एक पार्टनर दूसरे पार्टनर को धोखा देता है तो यह एक दंडनीय अपराध माना जाता। पीड़ित अगर चाहे तो IPC की धारा 497 के तहत मामला दर्ज कराकर उसे सजा दिला सकता है।
- 'लिव-इन रिलेशनशिप' में रहने वाले अगर दोनों पार्टनर कमाऊ हैं तो आपसी खर्चा उनकी ‘म्यूचुअल अंडरस्टैंडिंग’ पर आधारित होगा। यही नहीं अगर पार्टनर से किसी वजह से अलग होती हैं और कुछ दिनों के लिए भरण पोषण की मांग करती हैं तो यह केवल उसी स्थिति में दिया जाएगा जब वो कपल रिलेशनशिप में रहने की बात को साबित कर दें।
भारत में आज से करीब 43 साल पहले सन् 1978 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहली बार लिव इन रिलेशनशिप (live in relationship) को कानूनी तौर (legally) पर सही कहा। जस्टिस कृष्ण अय्यर ने कहा कि यदि पार्टनर लंबे समय तक पति पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो पर्याप्त कारण है कि इसे विवाह माना जाए।
घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act)- 2005 की धारा 2(f) के तहत लिव इन रिलेशनशिप को परिभाषित किया गया है। इसके धारा के अनुसार:
लिव इन रिलेशनशिप के लिए एक जोड़े का पति-पत्नी की तरह साथ रहना जरूरी है। हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा (time limit) निर्धारित नहीं है, लेकिन लगातार साथ रहना आवश्यक है। कभी कोई साथ रहे, फिर अलग हो जाए एवं फिर कुछ दिन साथ रहे, ऐसे संबंध को लिव इन की श्रेणी में नहीं रखा जाएगा।
- लिव इन में रहने वाले जोड़े का एक ही घर में साथ-साथ पति पत्नी की तरह रहना आवश्यक है।
- जोड़े को संयुक्त रूप से एक ही घर के सामान का इस्तेमाल करना होगा।
- लिव इन में रह रहे जोड़े को घर के कार्यों में एक दूसरे की सहायता करनी होगी।
- यदि लिव इन में रह रहे जोड़े के बच्चे हो जाएं तो उन्हें भरपूर प्रेम व स्नेह देना होगा। साथ ही उनका उचित पालन-पोषण करना होगा।
- यह संबंध वैध है, लिहाजा समाज को इसकी जानकारी होनी चाहिए।
- यह सबसे जरूरी बात है इस संबंध में रहने के लिए दोनों पार्टनर का वयस्क होना आवश्यक है।
लिव इन रिलेशनशिप में रह रही महिला के अधिकार:
- लिव इन में रह रही महिला को भरण पोषण का अधिकार: लिव इन में रह रही महिला को भरण पोषण की मांग करने का अधिकार है। इस संबंध में कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि महिला को यह कहकर भरण पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता कि उन्होंने कानूनी विवाह नहीं किया है।
- लिव इन से उत्पन्न संतान को माता-पिता की संपत्ति में अधिकार: लिव इन में रहने के दौरान यदि कोई संतान उत्पन्न होती है तो उसे अपने माता-पिता की संपत्ति (property) में पूरा अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इससे कोई भी लिव इन में रहने वाला जोड़ा नहीं बच सकता।
- घरेलू हिंसा से संरक्षण: अगर लिव इन में रहने वाली महिला के साथ घरेलू हिंसा होती है तो शादीशुदा महिलाओं की तरह उसे इससे बचने के लिए कानूनी संरक्षण हासिल हैं। घरेलू हिंसा की स्थिति में वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है।
- संपत्ति पर अधिकार: लिव इन में रहने वाली महिला को अपने पार्टनर के घर पर निवास का अधिकार है। अगर उसे इससे वंचित किया जाता है तो वह कानून के तहत कोर्ट से अपना अधिकार हासिल कर सकती है।
- गुजारा भत्ता पाने का अधिकार: अगर आपसी सहमति के बिना पार्टनर लिव इन में रहने वाली महिला के साथ संबंध तोड़ देता है तो उसे विवाहित पत्नी की तरह ही गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।
- बच्चे को अपने पास रखने का अधिकार: लिव इन पार्टनर से संबंध टूटने की स्थिति में लिव इन में रहने वाली महिला को यह अधिकार है कि इस दौरान पैदा हुए बच्चे को अपने साथ रखने का दावा कर सके। इसके लिए महिला कोर्ट की शरण में जा सकती है और वहां अपना दावा रख सकती है। और बच्चे के पास वे सभी अधिकार होंगे जो वैध विवाह से उत्पन्न बच्चों के पास होते हैं।
लिव-इन में जन्मे बच्चों के कानूनी अधिकार:
लिव-इन में रहने वाली महिला को लिव-इन पार्टनर की संपत्ति पर भले ही कोई कानूनी अधिकार न मिले, लेकिन उनकी बायोलॉजिकल संतान को पूरे अधिकार मिलते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट के तहत लिव-इन से जन्मे बच्चे को वो सभी कानूनी अधिकार मिलते हैं, जो शादीशुदा दंपति से जन्मे बच्चे को मिलते हैं। उनका कहना है कि लिव-इन से जन्मा बच्चा अपने बायोलॉजिकल पिता की संपत्ति में हिंदू सक्सेशन एक्ट के तहत हिस्सा हासिल कर सकता है।
- धर्म और जाति से सम्बंधित अधिकार: अगर बच्चे के माता पिता अगल जाति और धर्म से संबन्ध रखते है तो ऐसे में बालिग़ होने पे वो कोई भी उपनाम या धर्म अपना सकता है इसके लिये बच्चे को कानून से स्पेशल छूट मिली है।
- संपत्ति के अधिकार: लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को वो सारे अधिकार प्राप्त जो शादीशुदा जोड़े से जन्मे बच्चे को प्राप्त है. बच्चा माता पिता दोनों की संपत्ति पे अपना अधिकार जाता सकता है और इंकार की स्तिथि में कोर्ट में केस भी कर सकता है।
- मेंटेनेंस के अधिकार: लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को अपनी मेंटेनेंस लेने का पूर्ण अधिकार है। बच्चे की हर जरुरत को पूरा करना माता पिता का कर्तव्य होगा और ऐसा ना करने पे बच्चा कोर्ट में केस कर अपने मेंटेनेंस का खर्च ले सकता है।
- बच्चे के कानूनी अधिकार: लिव इन रिलेशन से जन्मे बच्चे को भी सभी कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे। लव चाइल्ड होने बावजूद उसके किसी की कानूनी अधिकार को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
- पालन पोषण ना करने की स्तिथि में: जन्म लेने के बाद यदि बच्चे को अपनाने या उसके पालन पोषण के लिये माता पिता द्वारा इंकार कर दिया जाये तो ऐसी स्तिथि में कोर्ट द्वारा स्वं या किसी NGO की दलील पे कोर्ट माता पिता के खिलाफ कोई आदेश दे सकता है।
क्या CRPC की धारा-125 लिव इन रिलेशनशिप की महिलाओं पर लागू होती है?
चानमुभिया Vs वीरेंद्र कुशवाहा केस में सुप्रीम कोर्ट ने CRPC की धारा 125 के तहत लिव-इन-रिलेशनशिप में महिला के भरण-पोषण का अधिकार दिया है। एक महिला को लिव इन रिलेशनशिप में इस अधिकार के पीछे तर्क सुनिश्चित करना है कि एक पुरुष उस विवाह की जिम्मेदारियों कानून खामियों का लाभ नहीं उठाता है।
लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों की कानूनी स्थिति क्या है?
बालसुब्रमण्यम वर्सेज सुरत्तयन में लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को पहली बार वैधता का दर्जा मिला। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पुरुष और महिला काफी सालों तक साथ रहते हैं तो Evidence Act की धारा 114 के तहत इसे शादी माना जाएगा। इसलिए उनसे पैदा हुए बच्चों को भी वैध माना जाएगा और पैतृक संपत्ति में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा।
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