"हिजाब नहीं तो किताब नहीं"
हिजाब Controversy
आज हमारे देश को आजाद हुए 75 साल से भी ज्यादा का समय हो गया है लेकिन अभी भी हमारे देश के लोगो की सुई हिन्दू मुस्लिम के debate पर ही अटकी हुई है। हमारे बड़े बुजुर्गो के द्वारा आपको हर गली चौराहे पर हिन्दू मुस्लिम की debate करते हुए मिल जायेंगे। लेकिन अब बात आ गई है बच्चो में, हमारे बच्चे अब स्कूल में पढाई को प्राथमिकता न देते हुए वे पहनावे को प्राथमिकता दे रहे है। जबकि शिक्षा एक ऐसा हथियार जिससे हम कुछ भी हासिल कर सकते है। लेकिन अब शिक्षा का इस्तेमाल भारत को 2 टुकड़ो में करने के लिए किया जा रहा है।
ये ब्लॉग हिजाब controversy पर है, जो की कर्नाटक से शुरू हुआ है। आखिर क्यों कर्नाटक में "हिजाब नहीं तो किताब नहीं" का स्लोगन इतना इस्तेमाल किया जा रहा है।
हिजाब की शुरुआत कैसे हुई?
- हिजाब की शुरुआत महिलाओं की जरूरत के आधार पर की गई थी। इसका इस्तेमाल मैसापोटामिया सभ्यता के लोग करते थे। शुरुआती दौर में तेज धूप, धूल और बारिश से सिर को बचाने लिनेन के कपड़े का प्रयोग किया जाता था। इसे सिर पर बांधा जाता था।
- 13वीं शताब्दी में लिखे गए प्राचीन एसिरियन लेख में भी इसका जिक्र किया गया है। हालांकि, बाद में इसे धर्म से जोड़ा गया। इसे महिलाओं, बच्चियों और विधवाओं के लिए पहनना अनिवार्य कर दिया गया। इसे धर्म के सम्मान के प्रतीक के तौर पर पहचाना जाने लगा।
- धीरे-धीरे हिजाब में कई तरह के बदलाव किए गए। इसे स्टाइलिश बनाया गया। अलग-अलग फैशन डिजाइनर्स ने इसे इतना आकर्षक बना दिया है कि जिन देशों में इसका चलन नहीं भी था वहां महिलाएं इसे खुद को खुबसूरत दिखाने के लिए पहनने लगीं।
कहां से शुरू हुआ हिजाब विवाद?
- हिजाब का मामला पिछले साल अक्टूबर 2021 में कर्नाटक के उदुपी जिले में शुरु हुआ। उस वक्त यह मामला मीडिया में नहीं आया था। इसके बाद 31 दिसंबर 2021 को गवर्मेंट पीयू गर्ल्स कॉलेज की कुछ छात्राओं को हिजाब पहनकर क्लास में बैठने नहीं दिया गया। इन छात्रों से कॉलेज प्रबंधक ने कहा कि या तो वे हिजाब हटाएं या फिर क्लास से बाहर चली जाएं।
- प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा ने छात्राओं को हिजाब पहनकर क्लास में बैठने की इजाज़त नहीं दी और कहा कि 'कक्षाओं में एकरूपता (यूनिफ़ॉर्मिटी) बनाए रखने के लिए ये निर्णय लिया गया।'
- इसके बाद उन छात्राओं ने विरोध प्रदर्शन शुरु कर दिया। छात्राओं को इसके बाद कॉलेज में 15 दिनों तक क्लास अटेंड करने नहीं दिया गया। 19 जनवरी को कॉलेज प्रशासन ने मामले को शांत करने के लिए छात्रों के पेरेंट्स को कॉलेज में बुलाया इस मीटिंग में कोई बीच का समाधान नहीं निकला। उन छात्राओं के माता पिता भी हिज़ाब में कॉलेज में एंट्री चाहते थे। अगले ही दिन हिजाब पहने 5-6 छात्राएं कॉलेज गेट के बाहर खड़ी हो गईं।
- 8 फरवरी 2022 को कर्नाटक में जब मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने के विवाद तेज हो जाने के बाद राज्य सरकार ने तीन दिनों के लिए हाई स्कूल और कॉलेज बंद करने की घोषणा की थी।
- इसके बाद ऐसी घटनाएं कर्नाटक के कई कॉलेज से सामने आई। और कॉलेज प्रशासन के द्वारा स्कार्फ़ और हिजाब दोनों को ही एंट्री नहीं दी। 11 फरवरी को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में त्वरित सुनवाई करने से मना कर दिया।
- अदालत ने कहा, "इसके अलावा, यह दलील वाजिब नहीं है कि हिजाब पहनना एक पोशाक पहनने का मामला है। इसे इस्लामी मत के बुनियादी विश्वास में शामिल नहीं माना जा सकता। यह नहीं कहा जा सकता कि हिजाब पहनने के चलन को न मानने पर व्यक्ति पाप का भागी होगा। याचिका दायर करने वाले इस कानूनी ज़रूरत को पूरा करने में बुरी तरह नाकाम रहे कि हिजाब पहनना इस्लामी धर्म के लिहाज से अनिवार्य काम है।"
- इसमें याचिकाकर्ता की और से यह दलील दी गई कि जब केंद्रीय विद्यालय में हिजाब पहनने की अनुमति है तो फिर राज्य के कॉलेज में हिजाब पहनने की अनुमति क्यों नहीं है। इसपर अदालत ने कहा, "अगर इस दलील को मान लिया जाए तो स्कूली यूनिफ़ॉर्म, यूनिफॉर्म ही नहीं रह जाएगा। छात्राओं का विभाजन हो जायेगा, एक वह जो हिजाब के साथ यूनिफॉर्म पहनेंगी, और दूसरी वो जो बिना हिजाब के। इससे सामाजिक अलगाव का माहौल तैयार होगा, जो की हम नहीं चाहते हैं। इसके अलावा ऐसा करना यूनिफॉर्म की मूल भावना के खिलाफ़ होगा जिसका उद्देश्य एकरूपता स्थापित करना है, ऐसी एकरूपता जिसमे छात्र के धर्म की कोई भूमिका न हो।"
अभी भी सोशल मीडिया और देशभर के स्कूल और कॉलेजों में इन दिनों हिजाब (Hijab) चर्चा का विषय बना हुआ है। इंटरनेट पर हिजाब पहने लड़कियां, केसरिया साफ़ा और पगड़ी पहने युवक विरोध करते दिख रहे हैं। इसमें सबसे ताज्जुब करने वाली बात ये है की इन विरोध करने वाली छात्राओं में से कोई भी व्यस्क नहीं हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने इस मामले को लार्जर बेंच के पास भेज दिया है। जस्टिस कृष्ण दीक्षित ने निर्देश देते हुए कहा कि छात्रों को इंटेरिम रिलीफ़ मिलनी है या नहीं ये भी लार्जर बेंच तय करेगी।
देश का संविधान:
- संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में धर्म की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को लेकर जिक्र किया गया है। जिसमे से अनुच्छेद 25 (1) के अनुसार किसी भी धर्म को मानने, उसका अभ्यास करने और प्रचार करने का हक देता है।
- अनुच्छेद 25 धर्म की स्वतंत्रता पर दो तरह के अधिकार देता है। पहला अधिकार अंत: करण की स्वतंत्रता को लेकर है। दूसरा अधिकार धर्म को निर्बाध तरीके से मानने और उसका प्रचार करने को लेकर है। हालांकि, सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इसमें राज्य को अंकुश लगाने की भी शक्तियां दी गई हैं।
हिजाब के जवाब में केसरिया स्कार्फ़:
जब हिजाब पहनकर मुस्लिम लड़कियों ने एंट्री करनी चाही तो इसके विरोध में छात्र छात्राएं केसरिया रंग का स्कार्फ़ पहनकर स्कूल में जाने की जिद करने लगे। ये कार्य बच्चो का नहीं हो सकता है क्योंकि एक ही रात में इन सबको एक जैसे केसरिया स्कार्फ़ मिल सकता है? ये सब किसी राजनितिक पार्टी का काम है जो इनको भड़काने का काम किया।
मामले का राजनीतिक रंग:
- सभी राजनीतिक दलों ने इसमें हिंदू-मुस्लिम का ऐंगल देखा और बहस छेड़ दी। यही कारण है कि इस विवाद ने अब राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। कुछ राजनितिक पार्टी ने हिजाब पहनने के अधिकार पर मुस्लिम लड़कियों का समर्थन किया है।
- कर्नाटक में हिजाब विवाद पर राजनीति गरमा गई है। इसे लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने हैं। बीजेपी का स्टैंड है कि यह धार्मिक प्रतीक (BJP stand on Karnataka Hijab Controversy) है। उसने शिक्षण संस्थानों और कॉलेजों में तय ड्रेस कोड (यूनिफॉर्म) का पक्ष लिया है। इसके उलट कांग्रेस (Congress stand on Karnataka Hijab Controversy) ने मुस्लिम लड़कियों का समर्थन किया है।
हाई कोर्ट के सामने चार सवाल:
कर्नाटक हाई कोर्ट ने जब इस मामले पर सुनवाई करि तब उनके सामने चार सवाल आये:
- पहला सवाल, क्या हिजाब या सिर ढकना इस्लाम की दृष्टि से अनिवार्य है? और क्या संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत सुरक्षा मिली हुई है या नहीं? इसके सन्दर्भ में कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा की हिजाब पहनना इस्लाम के मुताबिक अनिवार्य नहीं है। और ये essential religious practice के अंतर्गत नहीं होता है।
- दूसरा सवाल, क्या एक यूनिफॉर्म का नियम याचिकाकर्ताओं के उस मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है? जो हमारे संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 से मिलता है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि स्कूल यूनिफॉर्म लोगों की स्वतंत्रता की एक सीमा जरूर तय करता है लेकिन ये सीमा पर बच्चे एतराज नहीं कर सकता है। और ऐसा तय करना ये संविधान के तहत मान्य है।
- तीसरा सवाल था कि क्या राज्य सरकार का 5 फ़रवरी का फ़ैसला मनमाना था? क्या इस फ़ैसले से संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन हुआ है? तो इसमें हाई कोर्ट ने कहा की सरकार ने जो फैसला दिया है स्कूल यूनिफार्म को लेकर तो ये उचित है और सही है।
- चौथा सवाल था कि क्या उन टीचरों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने छात्राओं को कॉलेज में हिजाब पहनने से रोका था? इसमें हाई कोर्ट ने यह कहा कि याचिकाकर्ताओं ने ऐसी कोई माँग नहीं की थी।
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