इंटरनेट का उपयोग करने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है
विषय-सूचि:
- प्रस्तावना
- शिक्षा में इंटरनेट के लाभ
- इंटरनेट का महत्त्व
- सभी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने से सरकार की लागत में कमी को भी सुनिश्चित किया जा सकता है
- भारत में इंटरनेट की उपलब्धता के समक्ष चुनौतियाँ
- मौलिक अधिकार में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित अनुच्छेद
- कितना प्रासंगिक है इंटरनेट तक पहुँच का मौलिक अधिकार?
- इंटरनेट तक पहुँच का मौलिक अधिकार और संयुक्त राष्ट्र
- केस: फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य 19 सितम्बर 2019
- केस: अनुराधा भसीम बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 2020
प्रस्तावना
इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लोगों को एक ऐसे युग में वापस लाने के लिए है जहां इंटरनेट कुछ मुट्ठी भर लोगों तक सीमित था और सभी सेवाएं या सुविधाएं ऑफ़लाइन लोगों के लिए उपलब्ध थीं। भारत में आज दुनिया के सभी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का 12 प्रतिशत हिस्सा है।
देश में आज करीब 50 करोड़ इंटरनेट उपभोक्ता हैं और आधुनिक दौर में सब कुछ इंटरनेट पर ही निर्भर हो जाने के कारण इंटरनेट पर लगने वाली पाबंदियों के कारण लोगों को ढ़ेरों परेशानियां तो होती ही हैं, इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी कितना भारी-भरकम नुकसान झेलना पड़ता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इंटरनेट पर सिर्फ एक घंटे के प्रतिबंध से ही अर्थव्यवस्था को करोड़ों रुपये की चपत लग जाती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2012 से 2019 के बीच लगाई गई इंटरनेट पाबंदियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था को तीन अरब डॉलर अर्थात् करीब 21 हजार करोड़ रुपये की चपत लगी थी।
पिछले 10 सालों में पुरे भारत में 400 से ज्यादा बार इंटरनेट बंद किया जा चूका हैऔर केवल राजस्थान राज्य तो इन 10 सालों में 80 से ज्यादा इंटरनेट बंदी हो चुकी है। मंगलवार 28 जून 2022 को उदयपुर में हुई कन्हैयालाल की हत्या के बाद से उदयपुर सहित पुरे राजस्थान में धारा 144 के साथ ही इंटरनेट बंद कर दिया गया था।
हलाकि यह पहली बार नहीं है की राजस्थान की सरकार द्वारा इंटरनेट बंद किया गया है। कोई exam होता है तो सरकार इंटरनेट बंद की घोषणा कार देती है, करोली में दंगे भड़के तब इंटरनेट बंद कर दिया, रामगंज में दंगे हुए तब इंटरनेट बंदी की घोषणा कर दी गई। दरअसल पिछले कुछ वर्षों से बार-बार देखा जाता रहा है कि देश में जहां कहीं भी प्रशासन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन शुरू होता है, वहां अफवाहों पर नियंत्रण की दलील देते हुए तुरंत इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी जाती है।
यही कारण है कि 2012 के बाद से अब तक देश में इतनी बार इंटरनेट पर पाबंदी लगाई जा चुकी हैं कि भारत अब इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने के मामले में दुनिया में सबसे आगे है। Digitization के दौर में इंटरनेट संचार और सूचना प्राप्ति का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ज़रिया बन गया है। दशकों पूर्व इंटरनेट तक पहुँच को विलासिता (Luxury) का सूचक माना जाता था, परंतु वर्तमान में इंटरनेट सभी की ज़रूरत बन गया है।
शिक्षा में इंटरनेट के लाभ:
- देश में शिक्षा के समक्ष जो सबसे बड़ी बाधा है वह है शिक्षा की लागत, परंतु इंटरनेट ने इस बाधा को काफी हद तक समाप्त कर दिया है। साथ ही इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार भी संभव हो पाया है। इंटरनेट ने शिक्षक और विद्यार्थियों के मध्य संचार को सुगम बनाने का कार्य भी किया है। 2020 में कोरोना महामारी के समय सभी school online हो गए थे। जिससे शिक्षा में इंटरनेट का बहुत लाभ देखने को मिला।
इंटरनेट का महत्त्व:
- इंटरनेट Communication हेतु एक अमूल्य उपकरण है और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट की Availability ने वर्तमान युग में Communication को काफी आसान और सुविधाजनक बना दिया है।
- 2020 में कोरोना महामारी की वजह से कोई भी व्यक्ति बहार निकलने में असमर्थ था। उस वक्त साडी सुख सुविधाएं जैसे खाने का सामान, दवाइयाँ और रोजमर्रा की चीजें, सब कुछ ऑनलाइन हो गया था। जिससे आम आदमी नागरिक को इंटरनेट की इम्पोर्टेंस का पता चला।
- इंटरनेट शिक्षा के क्षेत्र में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान में लगभग सभी अपनी समस्याओं और प्रश्नों के लिये सर्वप्रथम गूगल पर ही सर्च करते हैं।
- इंटरनेट पर लगभग सभी विषयों पर बहुत सारा ज्ञान उपलब्ध है, जिसे अपनी आवश्यकतानुसार कभी भी खोजा जा सकता है।
- इंटरनेट ने दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले उन Students के लिये भी बेहतर शिक्षा का Option खोल दिया है, जिनके पास अब तक इस प्रकार की सुविधा उपलब्ध नहीं थी।
- इंटरनेट के माध्यम से सूचना के क्षेत्र में भी एक मज़बूत क्रांति देखी गई है। अब हम इंटरनेट के माध्यम से किसी भी प्रकार की सूचना को कुछ ही मिनटों में प्राप्त कर सकते हैं।
- सूचना तक आसान पहुँच के कारण आम लोग अपने अधिकारों के प्रति भी जागरूक हुए हैं।
सभी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराने से सरकार की लागत में कमी को भी सुनिश्चित किया जा सकता है:
- यह सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाता है।
- यह सरकारी योजनाओं के सफल कार्यान्वयन में सहायक है।
- यह राजनीति एवं लोकतंत्र में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाने में भी मदद करता है।
- यह बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसर प्रदान करने के सरकार के प्रयासों को भी बढ़ावा देता है।
भारत में इंटरनेट की उपलब्धता के समक्ष चुनौतियाँ:
- पिछले कुछ सालों में कई निजी और सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप प्रदान किया गया है और जिनमें से कुछ तो सिर्फ ऑनलाइन ही उपलब्ध हैं। जिसके कारण उन लोगों को असमानता का सामना करना पड़ता है जो डिजिटली निरक्षर हैं।
- विश्वसनीय सूचना, बुनियादी ढाँचे और डिजिटल साक्षरता की कमी से उत्पन्न होने वाला Digital divide सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का कारण बन सकता है।
- Digital divide को पूरे भारत के सामाजिक-आर्थिक स्पेक्ट्रम अर्थात् ग्रामीण और शहरी भारत, अमीर और गरीब, भारत की demographic profile (बूढ़े और जवान, पुरुष और महिला) के बीच देखा जा सकता है।
मौलिक अधिकार में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित अनुच्छेद:
अनुच्छेद 19 (1) (a): इस अनुच्छेद के अंतर्गत भारत के प्रत्येक नागरिक को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। भारत के प्रत्येक नागरिक को भाषण द्वारा लेखन, मुद्रण, चित्र या किसी अन्य तरीके से अपने विचारो को स्वतंत्र रूप से किसी के विचारों और विश्वासों को व्यक्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 21 यह घोषणा करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिये उपलब्ध है।
अनुच्छेद 21 (a) कहता है कि राज्य छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा तथा इसे कानून द्वारा राज्य निर्धारित कर सकता है।
कितना प्रासंगिक है इंटरनेट तक पहुँच का मौलिक अधिकार?
- इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार का रूप देना, डिजिटल असमानता को कम करने हेतु उठाए गए कदम के रूप में देखा जा सकता है।
- साथ ही इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार का दर्जा देने से अन्य अधिकारों जैसे- शिक्षा का अधिकार, निजता का अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार आदि को सहारा मिलता है।
इंटरनेट तक पहुँच का मौलिक अधिकार और संयुक्त राष्ट्र:
- उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2016 में इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने की घोषणा की थी और साथ ही कहा था कि इंटरनेट से लोगों को पृथक करना मानवाधिकारों का उल्लंघन और अंतर्राष्ट्रीय कानून के खिलाफ है।
केस: फहीमा शिरिन बनाम केरल राज्य 19 सितम्बर 2019
- इस केस में फहीम शिरीन को उसके कॉलेज हॉस्टल से इसलिये निकाल दिया गया था, क्योंकि वह हॉस्टल में प्रतिबंधित समय के दौरान मोबाइल फोन का प्रयोग कर रही थी। उस हॉस्टल में रहने वाले सभी छात्र-छात्राओं के लिए शाम 6 बजे से रात 10 बजे के बीच मोबाइल फोन का उपयोग नहीं करने का निर्देश दिया था।
- लेकिन इस अवधि में फहिमा ने निर्देशानुसार हॉस्टल के वार्डन को अपना मोबाइल नहीं सौंपा। इसके बाद उसे निष्काषित कर दिया गया था। फाहिमा ने अपनी याचिका में कहा कि पढ़ाई के दौरान मोबाइल और इंटरनेट से उसे शोध करने, असाइनमेंट पूरा करने और पढ़ने में मदद मिलती थी, इसलिए उसने मोबाइल का उपयोग किया।
- छात्रा ने इसी विषय को केरल उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी। छात्रा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस पीवी आशा ने इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया है।
- फहिमा ने यह भी दावा किया था कि इस प्रकार का प्रतिबंध लिंग के आधार पर भेदभावपूर्ण था, क्योंकि यह नियम लड़कों के छात्रावास में लागू नहीं था।
- इस पर हाईकोर्ट ने कॉलेज को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों के अनुसार छात्रा को हॉस्टल में तत्काल प्रवेश देने का आदेश दिया। जस्टिस पीवी आशा ने कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने भी इंटरनेट के प्रयोग को मौलिक आजादी माना है। ऐसे में विद्यार्थियों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने वाले किसी नियम और दिशानिर्देश को कानूनी तौर पर मंजूरी नहीं दी जा सकती है।’’
- संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का एक हिस्सा बनाते हुए इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था।
- इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देना केरल उच्च न्यायालय द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम था। ज़ाहिर है कि इस कदम से न केवल अन्य मौलिक अधिकारों को सहारा मिला बल्कि यह देश की डिजिटल असमानता को भी काम किया।
केस: अनुराधा भसीम बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया 2020
- जब जम्मू और कश्मीर से 4 अगस्त 2019 में हमारे भारत के संविधान से अनुच्छेद 370 को हटाया गया उसके बाद से ही वह पर दंगे भड़कने शुरू हो गए थे। इन दंगो को देखते हुए वहा की सरकार ने इंटरनेट सर्विस को बंद कर दिया था।
- इसके बाद 29 जनवरी 2020 में अनुराधा भसीम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
- सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने जम्मू-कश्मीर में जारी प्रतिबंधों की समीक्षा करते हुए अपने ऐतिहासिक फैसले में इंटरनेट को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार बताया था। सर्वोच्च अदालत द्वारा अपने एक फैसले में अप्रैल 2017 में भी कहा गया था कि इंटरनेट एक्सेस नागरिकों का अधिकार है।
- अदालत द्वारा संविधान के जिस अनुच्छेद 19 के तहत इंटरनेट को मौलिक अधिकार बताया गया है, उस अनुच्छेद के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, बिना हथियार किसी भी जगह शांतिपूर्वक एकत्रित होने, संघ या संगठन बनाने, कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने, देश के किसी भी हिस्से में रहने या बसने, कोई भी व्यवसाय अपनाने या व्यापार करने का अधिकार दिया गया है।
- हालांकि अदालत द्वारा यह व्यवस्था भी की गई है कि इंटरनेट के इस मौलिक अधिकार पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध लागू होंगे और ऐसा केवल तभी किया जा सकेगा, जब भारत की सम्प्रभुता, अखण्डता तथा सुरक्षा पर कोई खतरा सामने आए, पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते खराब होने की आशंका उत्पन्न हो, सामाजिक मर्यादा व नैतिकता की रक्षा करनी हो या व्यवस्था कायम रखनी हो लेकिन इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाते समय प्रशासन को अब उसके उपयुक्त कारण भी बताने होंगे।
- अदालत ने स्पष्ट कहा था कि इंटरनेट पर लंबे समय तक पाबंदी सिर्फ उसी स्थिति में लगाई जा सकती है, जब और कोई विकल्प शेष न हो लेकिन तब भी समय-समय पर उसकी समीक्षा होनी चाहिए।
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