पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटियों का अधिकार
Right of daughters in the father's self-acquired property
भारत में जमीन-जायदाद के बंटवारे को लेकर सभी धर्मों के अपने अलग-अलग कानून मौजूद हैं। मुसलमानों के लिए उनका पर्सनल लॉ है, हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून और ऐसे ही ईसाइयों के लिए अलग कानून है। लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी कानून हैं जो देश के सभी लोगो पर सामान रूप से लागू होते हैं।
सम्पत्ति 2 प्रकार की होती है:
- स्वार्जित संपत्ति
- पैतृक संपत्ति
स्वार्जित संपत्ति: जब कोई व्यक्ति अपने जीवनकाल में पैसा कमाकर कोई संपत्ति खरदिद्ता है तो वो संपत्ति स्वार्जित संपत्ति कहलाती है।
पैतृक संपत्ति: जब किसी व्यक्ति को कोई संपत्ति चौथी पीढ़ी द्वारा प्राप्त होती है तो वो संपत्ति पैतृक संपत्ति कहलाती है।
हमारे कानून में पहले ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी या कोई आधार नहीं था जहा ये कहा जा सके की किसीभी प्रकार की सम्पत्ति में बेटी का कोई हक़ हो। लेकिन 2005 के बाद से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए लैंडमार्क जजमेंट में ये कहा गया की पैतृक संपत्ति में भी अब बेटियों का भी उतना ही है होगा जितना की एक बेटे का होता है। इसके बाद भी ये प्रश्न हमेशा से ही प्रश्न ही रहा की कोई स्वार्जित संपत्ति में बेटी का अधिकार है या नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया है की स्वार्जित संपत्ति में भी अब बेटियों का हक़ होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी 2022 के दिन एक अहम फैसला सुनाया है। जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी हिंदू व्यक्ति की बगैर वसीयत किए ही मृत्यु हो जाती है तो उसकी स्वअर्जित व अन्य संपत्तियों में उसकी बेटी को हक दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया यह एक अहम् फैसला है जो हिंदू महिलाओं व विधवाओं के हिंदू उत्तराधिकार कानून में संपत्तियों के अधिकारों को लेकर दिया गया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई हिंदू व्यक्ति बिना वसीयत किए ही मर जाता है तो उसकी संपत्ति में बेटियों की हिस्सेदारी भी रहेगी। इसके अलावा बेटियों को मृत पिता के भाई के बच्चों की तुलना में संपत्ति में वरीयता दी जाएगी। मृत पिता की संपत्ति का बंटवारा उसके बच्चों द्वारा आपस में किया जाएगा।
केस: अरुणाचल गौंडर बनाम पोन्नुस्वामी और अन्य 2022
इस केस में जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह 51 पन्ने का फैसला दिया है। पिता की मृत्यु साल 1949 में हो गई थी और उन्होंने अपनी कमाई हुई संपत्ति की वसीयत किसी भी सदस्य के नाम नहीं की थी। उस समय मद्रास हाई कोर्ट ने ज्वाइंट फैमिली में रहने वाले मृत पुरुष की संपत्ति पर बेटी के बजाए मृतक के भाई के बेटों को अधिकार दे दिया था। फैमिली कोर्ट और हाई कोर्ट में फैसला बेटी के विरुद्ध सुनाया। लेकिन जब मामले की अपील सुप्रीम कोर्ट में की गई तब फैसला बेटी के हक में सुनाया गया। यह मुकदमा बेटी के वारिस लड़ रहे थे और इसी के साथ उन्होंने यह केस जीत लिया है।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम क्या है?
1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बनाया था, जिसके तहत महिलाओं को संपत्ति में अधिकार दिए गए। इस कानून ने समय समय पर कई विरोधाभासों को खत्म करने की कोशिश की गई थी, कानून के अनुसार बेटी और बेटों को बराबर का अधिकार दिया गया, वहीं अगर बेटी की शादी भी हो जाए तब भी पिता की संपत्ति पर उसका अधिकार होता है।
इस कानून में 2005 में संशोधन किया गया, जिसके तहत महिलाओं को पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार दिया जा चूका है। बेटा और बेटी दोनो ही पिता की संपत्ति में बराबर के अधिकारी माने गए। वहीं इस संशोधन के बाद बेटियों को इस बात का भी अधिकार दिया गया कि वो पिता की कृषि भूमि में भी बंटवारा ले सकती है। इसका मतलब ये है की इस कानून के तहत पिता के घर पर बेटी का भी उतना ही अधिकार होता है, जिनता कि उसके भाई का।
अब हिंदू उत्तराधिकार कानून बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार देता है। इस निर्णय से पहले ऐसा था की अगर किसी व्यक्ति का कोई बेटा नहीं है, तो उस कंडीशन में उसकी संपत्ति पर पहला अधिकार उसके भाई के बेटों का होगा। लेकिन अब इस निर्णय से सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया की अब यदि किसीकी मृत्यु हो जाती है बिना वसीयत लिखे और उसके कोई भी बीटा नहीं तो संपत्ति बेटी को दी जाएगी न की मृतक के भाई को दी जाएगी। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह व्यवस्था व्यक्ति की अपनी स्वार्जित संपत्ति के साथ-साथ पैतृक संपत्ति बंटवारे में मिली संपत्ति पर भी लागू होगी।
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने विस्तार से सहभागिता (Coparcenary), उत्तरजीविता (Survivorship) और उत्तराधिकार (Inheritance) के कानून का मतलब समझया है।
- सहभागिता का कानून: सहभागिता का अधिकार का मतलब यह होता है कि किसी हिंदू संयुक्त परिवार में पुरुष की मृत्यु होने पर उसकी उसकी संपत्ति में उसकी विधवा पत्नी या बेटी का कोई अधिकार नहीं होता है। पिता की संपत्ति पर सिर्फ पुत्रों का अधिकार होगा। अगर मृतक का कोई पुत्र नहीं हो तो फिर उसके भाई के पुत्रों को यह अधिकार होगा उस संपत्ति पर।
- उत्तरजीविता का कानून: वारिस वही हो जो वंश बढ़ाए। यानी, इस उत्तरजीविता के कानून के तहत एक पुरुष का वारिश पुरुष ही होगा। वो इसलिए क्योंकि बेटियां विवाह के बाद ससुराल चली जाती हैं। ऐसे में पिता की संपत्ति पर सिर्फ पुत्रों का ही अधिकार हो सकता है, पुत्रियों का नहीं।
- उत्तराधिकार का कानून: उत्तराधिकार का मतलब पिता की संतानों से होता है, वो चाहे पुत्र हों या पुत्रियां। वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन करके इसी अवधारणा को लागू किया गया कि पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति के बंटवारे में उत्तरजीविता (सर्वाइवरशिप) नहीं बल्कि उत्तराधिकार (सक्सेशन) की अवधारणा के तहत बेटे-बेटियों को बराबर का हक होगा।
अगर पिता के कोई बेटा नहीं है तो बेटी के हक की ही होगी जमीन:
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस के आदेश में एक और स्थिति स्पष्ट की है। अगर पिता की मृत्यु बिना वसीयत बनाये हो जाएं और पिता की एकमात्र संतान बेटी हो, तो संपत्ति की उत्तराधिकारी बेटी अपने आप हो जाएगी।
हमें उम्मीद है कि आपको हमारे लिखित ब्लॉग पसंद आए होंगे। आप हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध अन्य कानूनी विषयों पर ब्लॉग भी पढ़ सकते हैं। आप हमारी वेबसाइट पर जाकर हमारी सेवाओं को देख सकते हैं। यदि आप किसी भी मामले में वकील से कोई मार्गदर्शन या सहायता चाहते हैं, तो आप हमें help@vakilkaro.co.in पर मेल के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं या हमें +91 9828123489 पर कॉल कर सकते हैं।
VakilKaro is a Best Legal Services Providers Company, which provides Civil, Criminal & Corporate Laws Services and Registration Services like Private Limited Company Registration, LLP Registration, Nidhi Company Registration, Microfinance Company Registration, Section 8 Company Registration, NBFC Registration, Trademark Registration, 80G & 12A Registration, Niti Aayog Registration, FSSAI Registration, and other related Legal Services.