OVERVIEW
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 143ए भावी (Prospective) और धारा 148 भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव
विषय सूचि:
- परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 का उद्देश्य
- धारा 143ए के तहत अंतरिम मुआवजा
- धारा 143ए के तहत मुआवजा
- धारा 143ए के तहत दोषमुक्ति
- धारा 143ए भावी (Prospective) प्रभाव
- धारा 148 के तहत अपील
- धारा 148 भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव
- धारा 143ए भावी (Prospective) और धारा 148 भूतलक्षी (Retrospective) क्यों हैं?
यह लेख दो महत्वपूर्ण संशोधनों के बारे में है:
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments) की धारा 143A आपराधिक शिकायत के लंबित रहने के दौरान अंतरिम मुआवजा प्रदान करती है, और धारा 148 चेक बाउंस से सम्बंधित आपराधिक मामलो की अपील के बारे में बात करता है। परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 का संशोधन 1 सितंबर 2018 को लागू हुआ।
इस अधिनियम का उद्देश्य:
चेक अनादर (चेक बाउंस) के मामलों में अनुचित विलंब को कम करना और,
शिकायतकर्ताओं को अंतरिम मुआवजे के भुगतान का प्रावधान।
धारा 143ए के तहत अंतरिम मुआवजा:
यह शिकायतकर्ता को दो मौकों पर अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने के आदेश से संबंधित प्रावधान प्रदान करता है:
एक संक्षिप्त परीक्षण या समन मामले में, जहां ड्रॉअर पर लगाए गए आरोपों के लिए दोषी नहीं होने का अनुरोध करता है, और
आरोप तय होने पर।
धारा 143ए के तहत मुआवजा:
धारा 143ए (2) के अनुसार, उपधारा (1) के तहत मुआवजा चेक की राशि के 20% से अधिक नहीं होगा। धारा 143ए के खंड 3 में प्रावधान है कि अंतरिम मुआवजे का भुगतान साठ दिनों के भीतर करना होगा, और आगे वह अवधि तीस दिनों तक बढ़ाई जा सकती है पर इससे अधिक नहीं होगी जैसा कि न्यायालय निर्धारित करता है।
धारा 143A के तहत बरी होने पर:
धारा 143A (4) के अनुसार, बरी होने के मामले में, कोर्ट ड्रॉअर (drawer) को अंतरिम मुआवजे की राशि कोर्ट द्वारा आदेश की तारीख से साठ दिनों के भीतर ब्याज के साथ (आरबीआई बैंक द्वारा निर्धारित दर) चुकाने का निर्देश दे सकता है। पर्याप्त कारण बताए जाने पर इस अवधि को अतिरिक्त 30 दिनों के लिए और बढ़ाया जा सकता है।
धारा 143ए भावी (Prospective) प्रभाव:
जीजे राजा वीएस तेजराज सुराणा (2019) के मामले में, यह सवाल उठा कि धारा 143ए का भावी प्रभाव है? धारा 143ए को ऐसे मामले में लागू किया जा सकता है जहां एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत अपराध दंडनीय है, जो कि लागू होने से बहुत पहले किया गया था।
इस धारा के दो आयाम हैं:
इस धारा को कानून की नजर में दोषी पाए बिना शिकायतकर्ता को चेक राशि का 20% तक भुगतान करने के लिए चेक के एक दराज के रूप में एक दायित्व का निर्देश दिया जा सकता है।
इस धारा के अंतर्गत वसूली ऐसे होगी मानो अंतरिम मुआवजा भू-राजस्व का बकाया हो।
इस प्रकार, यह धारा एक नई अक्षमता या एक दायित्व बनाता है। परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 143ए संभावित होनी चाहिए और उन मामलों तक सीमित होनी चाहिए जहां धारा 143ए को लागू करने के बाद अपराध किए गए थे ताकि आरोपी को इस तरह के अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा सके।
धारा 148 के तहत अपील:
धारा 148 अपीलीय न्यायालय की शक्ति प्रदान करती है। परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments) की धारा 138 के तहत दोषसिद्धि के बाद सजा के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है।
अपीलीय न्यायालय की शक्ति: अपीलकर्ता को आदेश-
जुर्माने का कम से कम 20% जमा करना या
ट्रायल कोर्ट द्वारा बताई गई मुआवज़े की राशि जमा करना।
इसके अलावा, यह इस अधिनियम की धारा 143ए के तहत अंतरिम मुआवजा देना। धारा 138(3) के अनुसार, बरी होने के मामले में, शिकायतकर्ता को अदालत के द्वारा जारी आदेश की तारीख से साठ दिनों के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित दर पर ब्याज के साथ राशि चुकाने का निर्देश देगी। पर्याप्त कारण बताए जाने पर इस अवधि को अतिरिक्त 30 दिनों के लिए और बढ़ाया जा सकता है। धारा 143 ए और धारा 148 के तहत निर्धारित प्रक्रिया, अंतरिम मुआवजे या पुनर्भुगतान से संबंधित प्रक्रिया समान है।
धारा 148 भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि धारा 138 के तहत दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ अपील के संबंध में संशोधन अधिनियम की धारा 148 का भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव (1 सितंबर 2018 से पहले दायर शिकायतों पर लागू) होगा।
केस: सुरिंदर सिंह देशवाल @ कर्नल एस.एस. देशवाल और अन्य बनाम वीरेंद्र गांधी (2020)
इस मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपीलकर्ताओं द्वारा दायर 28 याचिकाओं को खारिज करते हुए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (2019 में) के एक सामान्य निर्णय के खिलाफ अपील दायर की गई थी;
सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि धारा 138 के अधिनियमन का उद्देश्य अपील दायर करने और कार्यवाही पर रोक लगाने के कारण अनादरित चेक के आहरणकर्ताओं की देरी के कारण निराश था, जिससे इस अधिनियम की धारा 148 में संशोधन होने का अहम् कारण था। और यह भी देखा कि धारा 148 में संशोधन से अपीलकर्ताओं के किसी भी अपील के अधिकार को प्रभावित नहीं करता है।
कोर्ट ने कहा कि अगर इस उद्देश्यपूर्ण व्याख्या को नहीं अपनाया जाता है, तो धारा 148 का उद्देश्य विफल हो जाएगा। धारा 148 उन मामलों पर लागू होगी जहां संशोधन से पहले धारा 138 के तहत आपराधिक शिकायतें दर्ज की गई थीं।
भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि संशोधन अधिनियम की धारा 148 का भूतलक्षी (Retrospective) प्रभाव होगा और धारा 138 के तहत अपराध के लिए सजा और सजा के आदेश के खिलाफ अपील के संबंध में 1 सितंबर 2018 से पहले दायर शिकायत पर लागू होगा।
धारा 143ए भावी (Prospective) और धारा 148 भूतलक्षी (Retrospective) क्यों हैं?
जीजे राजा बनाम तेजराज सुराणा (2019) (GJ Raja VS Tejraj Surana) के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि धारा 143 ए भावी (Prospective) और धारा 148 भूतलक्षी (Retrospective) क्यों है, भले ही दोनों धाराओं के प्रावधान 2018 के संशोधन अधिनियम द्वारा पेश किए गए थे।
कोर्ट ने देखा कि:
धारा 143ए को दोषसिद्धि या दोषसिद्धि के आदेश की घोषणा से पहले ही, विचारण के चरण में लागू किया जाता है।
धारा 148 अपील के चरण में लागू होती है, जहां आरोपी पहले से ही धारा 138 के तहत दोषी पाया जाता है।
कोर्ट ने यह भी बताया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 148 में कोई प्रावधान धारा 143ए की उप-धारा 5 के समान नहीं है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 421 और 357 दोषसिद्धि के ऐसे किसी प्रावधान की आवश्यकता नहीं थी। यह नेगोशिएबल इंस्ट्रुमेंट एक्ट की धारा 143ए द्वारा उत्पादित प्रकृति के समान कोई नई अक्षमता पैदा नहीं करता है।
निष्कर्ष:
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments) में संशोधन के बाद, इस अधिनियम की प्रभावकारिता और व्यावहारिकता को मजबूत करने का एक बड़ा प्रयास किया, जो मामलों के त्वरित निपटान में मदद करेगा और अनावश्यक मुकदमे को काम करेगा और चेक प्राप्तकर्ता के लिए राहत भी प्रदान करेगा। एक चेक बाउंस मामले में उसके देय धन की वसूली के लिए न्यायालय में काफी समय और ऊर्जा खर्च होती है। इसके अलावा, यह अंतरिम मुआवजा प्रदान करके और दोषसिद्धि के खिलाफ अपील के मामले में आरोपी द्वारा भुगतान का आदेश देकर शिकायतकर्ता के हितों को बरकरार रखता है। परक्राम्य लिखत अधिनियम में संशोधन के बाद, चेकों की विश्वसनीयता बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम लिया है और साथ ही इससे व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहन मिलेगा।
To read this article in English- Section 143A and Section 148 of the Negotiable Instrument Act, 1881
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