पैतृक संपत्ति से संबंधित प्रावधान
विषय-सूची
- संपत्तियों के प्रकार
- पैतृक संपत्ति में स्वामित्व अधिकार की शुरुआत
- पैतृक संपत्ति में हर पीढ़ी का हिस्सा
- पैतृक संपत्ति पर कितनी पीढ़ियां दावा कर सकती हैं?
- गैरविभाजित संपत्ति क्या होती है?
- पैतृक संपत्तियों से सम्बंधित कानून
- पैतृक संपत्ति में बाप-बेटे का हिस्सा
- अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से मना करदे तो क्या करें?
- क्या गिफ्ट में मिली हुई संपत्तियां पैतृक संपत्ति होगी?
- क्या पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटी का पूरा अधिकार होता है?
- पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार
- बगैर वसीयत की संपत्ति पर उत्तराधिकारियों का हक़
- फैसला नहीं लेने पर संपत्ति के कई उत्तराधिकारी
- बंटवारे के लिए कोनसे न्यायलय के समक्ष केस करना?
- पैतृक संपत्ति के मामले में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं
- क्या कोई पिता अपनी पुश्तैनी संपत्ति बेच सकता है?
- पैतृक संपत्ति को कौन बेच सकता है?
- पैतृक संपत्ति के लिए दावा करने की समय सीमा
- पैतृक संपत्ति और विरासत में मिली संपत्ति में क्या अंतर है?
- दामाद का अपने ससुर की संपत्ति पर अधिकार
संपत्तियों के प्रकार
हिंदू कानून के मुताबिक संपत्तियों को दो भागों में बांटा जाता है: एक संपत्ति स्वयं अर्जित संपत्ति होती है तथा एक संपत्ति पैतृक संपत्ति होती है।
- स्वयं अर्जित संपत्ति:
स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति उस संपत्ति को कहा जाता है जिसे कोई व्यक्ति स्वयं अर्जित करता है। किसी भी संपत्ति को अर्जित करने के बहुत सारे तरीके हैं, जैसे वसीयत, दान, विक्रय, लॉटरी इत्यादि। इनमें से किसी भी तरीके से अगर कोई व्यक्ति संपत्ति प्राप्त करता है तब यह कहा जाता है कि यह उसकी स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति है।
- पैतृक संपत्ति:
- किसी भी व्यक्ति को उत्तराधिकार में मिलने वाली संपत्ति को पैतृक संपत्ति कहा जाता है। कानूनी भाषा में कहें तो पुरुषों की चार पीढ़ियों तक जो संपत्ति विरासत में मिली हो उसे पैतृक संपत्ति कहा जाता है।
- पैतृक संपत्ति में हिस्से का अधिकार जन्म के समय ही मिल जाता है। यह विरासत के अन्य प्रारूपों जैसा नहीं होता, की जहां मालिक के मरने के बाद विरासत में संपत्ति मिलती है। कोई भी संपत्ति है जो किसी के पूर्वजों की होती है और पीढ़ियों के माध्यम से पारित हो जाती है।
- पैतृक संपत्तियों को न केवल उनके मौद्रिक लाभ के लिए बल्कि उनके भावुक मूल्य के लिए भी बहुत खास माना जाता है। बड़े परिवारों में इस तरह की संपत्तियों का मालिकाना हक और उन्हें हस्तांतरित करना थोड़ा चुनौतीपूर्ण होता है।
- ऐसा इसलिए है क्योंकि इस तरह की संपत्ति विरासत के बारे में बहुत सी गलत धारणाएं और मिथक हैं। ज्ञान की कमी एक मुख्य कारण है जिसके कारण परिवार विवादों या कानूनी झंझटों में फंस जाते हैं।
- ऐसी पैतृक संपत्ति कई सदियों से भी चली आ रही होती है, जैसे भारत के कई राज परिवारों की संपत्ति कई सदियों से चली आ रही है और वर्तमान के उत्तराधिकारियों के पास है। जैसे एक व्यक्ति की मौत होती है, उसकी मौत के बाद उसकी संपत्ति जब उसके उत्तराधिकारियों को मिलती है तब वह संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों के लिए पैतृक संपत्ति बन जाती है।
- ऐसी पैतृक संपत्ति में सभी उत्तराधिकारियों का बराबर-बराबर का अधिकार होता है। कोई भी उत्तराधिकारी अपनी इच्छा से पैतृक संपत्ति को नहीं बेच सकता है। पैतृक संपत्ति में हिस्से का अधिकार पैदा होते ही मिल जाता है।
- अगर पैतृक संपत्ति को बेचा जाता है या उसका बंटवारा होता है तो बेटियों को भी उसमें से हिस्सा मिलेगा। एक बार पैतृक संपत्ति का बंटवारा होने के बाद हर उत्तराधिकारी को मिला हिस्सा उसकी खुद कमाई हुई संपत्ति बन जाता है। वहीं मां की ओर से मिली संपत्ति पैतृक संपत्ति नहीं मानी जाएगी।
पैतृक संपत्ति में स्वामित्व अधिकार की शुरुआत:
- पैतृक संपत्ति के मामले में, हितधारक के अधिकार पैदा होने के साथ ही शुरू हो जाते हैं।
पैतृक संपत्ति में हर पीढ़ी का हिस्सा:
- हर पीढ़ी का हिस्सा पहले निर्धारित किया जाता है और बाद की पीढ़ियों के हिस्से में आई हुई संपत्ति को आगे विभाजित किया जाता है। पैतृक संपत्ति में हर सदस्य का हिस्सा लगातार कम होता रहता है क्योंकि परिवार में नए सदस्य जुड़ते जाते हैं।
पैतृक संपत्ति पर कितनी पीढ़ियां दावा कर सकती हैं?
- जो वर्गीकृत पैतृक संपत्ति अविभाजित रह गई है, पुरुष वंश की चार पीढ़ियां उस पर दावा कर सकती हैं। इसका मतलब है कि राम की पैतृक संपत्ति पर उसके बेटे श्याम, श्याम के बेटे घनश्याम और घनश्याम के बेटे राधे श्याम के उत्तराधिकार हैं।
- दूसरे शब्दों में पिता, दादा, परदादा और उनसे भी पहले के पूर्वजों के पास अविभाजित पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकार का हक होता है।
गैरविभाजित संपत्ति क्या होती है?
- अगर राम यह फैसला करता है कि प्रॉपर्टी को श्याम और उसके बेटों के बीच बांट दी जाए तो पैतृक सम्पति की चेन टूट जाएगी और श्याम को विरासत में मिली संपत्ति अब पैतृक संपत्ति के रूप में नहीं बल्कि खुद कमाई हुई संपत्ति के रूप में जानी जाएगी।
- दूसरे शब्दों में कहें तो किसी संपत्ति को पुश्तैनी रहने के लिए चार पीढ़ियों तक कोई बंटवारा नहीं होना चाहिए। एक पैतृक संपत्ति जिसका एक विभाजन विलेख या पारिवारिक व्यवस्था के जरिए बंटवारा किया गया है, जैसे ही व्यवस्था लागू होती है, पैतृक संपत्ति खत्म हो जाती है।
- जब हिंदू गैरविभाजित परिवार में बंटवारा होता है तो जिस परिवार के शख्स को संपत्ति मिलती है, वह खुद अर्जित की हुई बन जाती है।
पैतृक संपत्तियों से सम्बंधित कानून:
- पैतृक संपत्ति हिंदू, सिख, जैन और बौद्धों में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के तहत, पैतृक संपत्ति विभाजित की जाती है।
- ईसाइयों के मामले में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा शासित होते हैं।
- मुसलमानों के मामले में, मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 के प्रावधान लागू होते हैं।
- ईसाइयों में, विरासत और उत्तराधिकार के नियम पुरुषों और महिलाओं के लिए समान होते हैं। इसके अलावा, उनकी संपत्ति को स्व-अर्जित माना जाता है, इसके अधिग्रहण के तरीके के बावजूद और किसी के जीवनकाल के दौरान, कोई और इसके लिए दावा नहीं कर सकता।
पैतृक संपत्ति में बाप-बेटे का हिस्सा:
- पिता (पैतृक संपत्ति का मौजूदा मालिक) और उसके बेटे का प्रॉपर्टी पर बराबर हक होता है। हालांकि पहली पीढ़ी का हिस्सा (पिता और उसके भाई-बहन) पहले तय होता है। इसके बाद की पीढ़ियों को पुरखों से मिले हिस्से को बांटना पड़ता है।
अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से मना करदे तो क्या करें?
- अगर आपको पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया गया है तो आप विपक्षी पार्टी को एक कानूनी नोटिस भेज सकते हैं। आप अपने हिस्से पर दावा करने के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा भी दायर कर सकते हैं।
- यह सुनिश्चित करने के लिए कि मामले के विचाराधीन होने के दौरान प्रॉपर्टी को बेचा न जाए, उसके लिए आप उसी मामले में कोर्ट से रोक (Stay) लगाने की मांग कर सकते हैं। यदि संपत्ति आपकी सहमति के बिना ही बेच दी गई है तो आपको उस खरीदार को केस में पार्टी के तौर पर जोड़कर अपने हिस्से का दावा करना होगा।
क्या गिफ्ट में मिली हुई संपत्तियां पैतृक संपत्ति होगी?
- जो संपत्तियां गिफ्ट डीड या फिर वसीयत के द्वारा जाती हैं, तो उन्हें पैतृक संपत्ति नहीं कहा जाता। गिफ्ट डीड के जरिए एक पिता अपने जीवनकाल में खुद कमाई हुई प्रॉपर्टी को किसी थर्ड पार्टी को दे सकता है। वसीयत के जरिए स्वामित्व दानकर्ता की मृत्यु के बाद ट्रांसफर होता है।
क्या पैतृक संपत्ति में बेटे-बेटी का पूरा अधिकार होता है?
- कोई भी शख्स वसीयत लिखने के लिए स्वतंत्र है और वह खुद अर्जित की गई संपत्ति से अपने बेटों या बेटियों को बाहर रख सकता है।
- साल 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि व्यस्क बेटे का अपने माता-पिता द्वारा कमाई हुई संपत्ति पर कोई कानूनी हक नहीं होता है।
- दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,” जो घर माता-पिता ने बनाया है, उसमें बेटा, चाहे वो शादीशुदा हो या फिर कुंवारा, उसका उस घर पर कोई कानूनी हक नहीं होता और वह उस घर में सिर्फ अपने माता-पिता की दया पर रहता है, जब तक उसके माता-पिता चाहें।"
- हालांकि पैतृक संपत्ति के मामले में ऐसा नहीं होता है। एक पिता के पास अपने बेटे को उसकी पैतृक संपत्ति के कब्जे से बाहर करने का कोई विकल्प नहीं होता। हालांकि दिल्ली हाई कोर्ट ने नवंबर 2018 में फैसला सुनाया था कि परेशान माता-पिता अपने बच्चों को किसी भी प्रकार की संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं।
- हाई कोर्ट ने कहा, संपत्ति का प्रकार बच्चों और कानूनी उत्तराधिकारियों को बेदखल करने में किसी भी तरह से एक निवारक के रूप में काम नहीं करेगा, जो अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करते हैं।
- दिल्ली मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सीटिजन्स (संशोधन) अधिनियम 2017 के जरिए कानून में हुए संशोधन के बाद ‘खुद अर्जित की हुई’ शब्द को हटा दिया गया।
- अब वरिष्ठजन अपने बेटों, बेटियों और कानूनी उत्तराधिकारियों को किसी भी तरह की संपत्तियों से बेदखल कर सकते हैं चाहे वो अचल हो या फिर चल, खुद कमाई हुई हो या फिर स्वयं अर्जित, मूर्त या अमूर्त।
पैतृक संपत्ति में महिलाओं के अधिकार:
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में संशोधन से पहले महिलाओं को शादी के बाद पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं दिए जाते थे क्योंकि उन्हें सहदायिक नहीं समझा जाता था। पुराने कानूनों ने मूल रूप से महिलाओं को सहदायिकी का दर्जा देने से इनकार किया था।
- हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 के जरिए संशोधन किया गया, जिसमें महिलाओं को सहदायिक माना गया। अब बेटों और बेटियों दोनों को परिवार में सहदायिक माना गया और उनके प्रॉपर्टी में समान अधिकार हैं। शादी के बाद भी बेटी प्रॉपर्टी में सहदायिक रहेगी।
- यह कहा गया कि बेटियों के पैतृक संपत्ति में बेटों की तरह समान अधिकार हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस प्रावधान को लागू करने के लिए बेटी और पिता दोनों का 9 सितंबर 2005 तक जीवित रहना जरूरी है।
- साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मृत पिता की संपत्ति पर भी बेटी का अधिकार है भले ही पिता इस तारीख पर जीवित हो या नहीं। हालांकि किसी के मातृ पक्ष से अर्जित संपत्ति को पैतृक संपत्ति के रूप में नहीं माना जाता।
बगैर वसीयत की संपत्ति पर उत्तराधिकारियों का हक़:
- अगर कोई व्यक्ति बगैर वसीयत किए मर जाता है तब उसकी संपत्ति उसके उत्तराधिकारियों को मिलती है। इस मामले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम दोनों ही लागू होते हैं।
- मुसलमानों के मामले में उनका अपना शरीयत कानून लागू होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम इन दोनों ही अधिनियम में उत्तराधिकारियों के संबंध में स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया है।
- एक हिंदू पुरुष के उत्तराधिकारी उसकी विधवा पत्नी, मां और उसके पुत्र पुत्री होते है। इसी के साथ पुत्र पुत्रियों से होने वाले बच्चे भी अगली तीन पीढ़ियों तक उत्तराधिकारी होते हैं।
फैसला नहीं लेने पर संपत्ति के कई उत्तराधिकारी:
- जैसे कि कोई एक खेत किसी व्यक्ति का मालिकाना था। उस व्यक्ति की मौत हो जाती है। उसके बाद उस खेत का उत्तराधिकार उसके बेटों बेटियों के पास चला जाता है। उसके बेटे और बेटियां अपनी जिंदगी में उस खेत के संबंध में कोई भी फैसला नहीं लेते हैं और उनकी भी मौत हो जाती है। तब उन बेटे और बेटियों के उत्तराधिकारियों के पास उस संपत्ति का हक चला जाता है।
- वह भी अपने जीवन काल में संपत्ति के संबंध में किसी भी तरह का कोई भी फैसला नहीं लेते हैं और उनकी भी मौत हो जाती है, तब संपत्ति आगे बढ़कर उनके उत्तराधिकारियों को चली जाती है। इस तरह से उस एक खेत के भविष्य में कई उत्तराधिकारी हो जाते हैं। क्योंकि धीरे-धीर परिवार का विस्तार होता चला जाता है।
बंटवारे के लिए कोनसे न्यायलय के समक्ष केस करना?
- खेती की जमीन का बंटवारा राजस्व न्यायालय में होता है जोकि जिले के कलेक्टर के समक्ष लगती है।
- जबकि शहरी जमीन का बंटवारा सिविल कोर्ट में होता है जिसका क्षेत्राधिकार जिला न्यायाधीश के पास होता है। जिला न्यायाधीश ऐसी जमीन के बंटवारे के संबंध में निर्णय लेते हैं।
- बंटवारे के बाद सभी व्यक्तियों को उनके मिले हिस्से के अनुपात में जमीन को बांट दिया जाता है और उन्हें जमीन का मूल मालिक बना दिया जाता है। फिर यह पैतृक संपत्ति उनकी पैतृक संपत्ति नहीं रह जाती बल्कि उनकी अर्जित संपत्ति बन जाती है।
- ऐसी अर्जित संपत्ति के मामले में कोई भी फैसला लेने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र नहीं होता है क्योंकि ऐसी संपत्ति में भी उसके उत्तराधिकारियों का अधिकार होता है। अगर उसके कई उत्तराधिकारी हैं तब उनकी सहमति से ही उस संपत्ति के संबंध में कोई फैसला लिया जा सकेगा।
पैतृक संपत्ति के मामले में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं:
- जैसे कि कोई संपत्ति X को अपने पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। संपत्ति X के नाम पर रजिस्टर्ड कर दी जाती है पर यहां पर X संपत्ति के संबंध में फैसला लेने की स्थिति में नहीं होता है।
- बल्कि X के उत्तराधिकारी जो उसके बच्चे होते हैं वह संपत्ति के संबंध में फैसला लेते हैं। X अकेला कोई निर्णय नहीं ले सकता, अगर उसके बेटा या बेटी हैं तब उनकी भी सहमति ली जाती है और संपत्ति का रजिस्ट्रेशन X के साथ बेटा बेटी के नाम पर भी किया जाएगा।
- इन सभी बातों से यह साबित होता है कि पैतृक संपत्ति के मामले में कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं होता है। बल्कि उसके सभी उत्तराधिकारी का पैतृक संपत्ति पर समान रूप से हक होता है। वह सभी की इच्छा से ही उस संपत्ति के संबंध में कोई फैसला लिया जा सकता है।
क्या कोई पिता अपनी पुश्तैनी संपत्ति बेच सकता है?
- यदि पैतृक संपत्ति अविभाजित रहती है, तो पिता उत्तराधिकारियों की सहमति के बिना अपनी पैतृक संपत्ति को नहीं बेच सकता है। यदि दो बेटों वाले पिता को अपने पिता से पैतृक संपत्ति विरासत में मिली है, तो पोते का भी संपत्ति में हिस्सा होता है, और पिता इसे बिना बेटों की सहमति के बेच नहीं सकता है।
पैतृक संपत्ति को कौन बेच सकता है?
- हिंदू कानून के तहत, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के मुखिया परिवार की संपत्ति की देखरेख करते हैं। पैतृक संपत्ति को एक या आंशिक मालिकों के एकमात्र निर्णय से नहीं बेचा जा सकता है, क्योंकि ऐसी संपत्ति पर चार पीढ़ियों का दावा होता है।
- लेकिन कुछ अपवाद स्थितियों, जैसे पारिवारिक संकट (कानूनी जरूरत), परिवार के भले के लिए या कुछ धार्मिक काम करने के दौरान पैतृक संपत्ति को बेचा जा सकता है। हालांकि, अगर संपत्ति को बेचा जाना है, तो प्रत्येक हितधारक को संबंधित दस्तावेजों से सहमत और हस्ताक्षर करना होगा। अगर परिवार का कोई एक सदस्य भी असहमत हो तो संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति उचित सहमति प्रपत्रों के बिना संपत्ति को बेचने का प्रयास करता है तो शेष हितधारक कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं और बिक्री को होने से रोक सकते हैं।
- पैतृक संपत्ति को हमेशा मूल्यवान और भावुक माना जाता है, और यही कारण है कि परिवारों को अपने अधिकार को पकड़ने में बहुत परेशानी होती है। कुछ मामलों में, पैतृक संपत्ति परिवारों को एक साथ रखती है और बेहतर बंधन बनाती है।
पैतृक संपत्ति के लिए दावा करने की समय सीमा:
- पैतृक संपत्ति का दावा करने की समय सीमा लगभग 12 वर्ष है। हालांकि, अगर दावे में देरी का कोई वैध कारण है, तो अदालत इसे स्वीकार कर सकती है और आपके अनुरोध पर कार्रवाई कर सकती है।
- यदि कोई पैतृक संपत्ति की बिक्री को प्रतिबंधित करने के लिए दीवानी मुकदमा दायर करना चाहते हैं, तो इसे बिक्री अवधि के तीन साल के भीतर करना होगा।
पैतृक संपत्ति और विरासत में मिली संपत्ति में क्या अंतर है?
- विरासत में मिली संपत्ति कोई भी संपत्ति है जिसे आप मालिक की मृत्यु के बाद वसीयत के माध्यम से प्राप्त करते हैं या उपहार के रूप में प्राप्त करते हैं। पैतृक संपत्ति जन्म से ही विरासत में मिलती है। परिवार के किसी सदस्य से विरासत में मिली संपत्ति प्राप्त हो सकती है।
- हालाँकि, आपको पता होना चाहिए कि जो संपत्ति आपको अपनी माँ, दादी, चाचा, भाई या परिवार के अन्य सदस्यों से विरासत में मिली है, वह पैतृक संपत्ति बनने के योग्य नहीं है। आपके पिता, दादा, परदादा और परदादा से पारित संपत्ति केवल पैतृक संपत्ति के रूप में योग्य है।
- साथ ही, कोई भी संपत्ति जो बेटे को पिता या दादा से उपहार के रूप में मिलती है, वह पैतृक संपत्ति के रूप में योग्य नहीं होगी।
दामाद का अपने ससुर की संपत्ति पर अधिकार:
- कोई भी दामाद किसी भी परिस्थिति में अपने ससुर की संपत्ति पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता। वह ससुर को संपत्ति के निर्माण के लिए पैसे दे सकता है या उनकी अनुपस्थिति में उनकी संपत्ति की देखभाल कर सकता है। लेकिन, दामाद का ससुर की संपत्ति में कोई दावा नहीं हो सकता क्योंकि वह परिवार का हिस्सा नहीं है।
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