चोरी क्या है और इसके लिए भारतीय दंड संहिता में कितनी सजा का प्रावधान है?
विषय-सूची:
- प्रस्तावना
- चोरी की परिभाषा
- चोरी के लिए आवश्यक तत्व
- चोरी के लिए क्या संपत्ति को स्थाई रूप से लेना आवश्यक है?
- क्या अपनी ही सम्पत्ति की चोरी की जा सकती है?
- चोरी के लिए दंड धारा 379
- निवास-गृह आदि में चोरी धारा 380
- लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी धारा 381
- चोरी करने के लिये मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी धारा 382
प्रस्तावना:
हमारे समाज में चोरी एक बहुत ही सामान्य और बहुत ही प्रचलित अपराध है जो अकसर घटित होती है। चोरी मानव सभ्यता के सबसे पुराने अपराधों में से एक है। कई बार तो चोरी हमारे आँखों के सामने से हो जाती है जैसे कोई किसी अन्य की अनुपस्थिति में उसका सामान लेकर भाग गया। चोरी को हमारे कानून के हिसाब से परिभाषित किया गया है और उसके लिए सजा भी निर्धारित की गयी है। यह blog, चोरी क्या है और इसके लिए कोर्ट कितनी सजा दे सकता है, से संबंधित है।
चोरी की परिभाषा:
भारतीय दंड संहिता में धारा 378 में चोरी की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के कब्ज़े से उसकी सहमति के बिना कोई चल संपत्ति यदि बेईमानी की नियत से हटाता है तो यह घटना चोरी कहलाएगी। इस परिभाषा के अनुसार कोई घटना चोरी तभी कही जायेगी जब किसी चल संपत्ति को उसकी जगह से हटाया जाये, उस संपत्ति के मालिक की अनुमति के बिना हटाया जाये और तीसरी जरुरी बात बेईमानी की नियत से हटाया जाय। इनमे से एक की भी अनुपस्थिति में वह घटना चोरी के अंतर्गत नहीं आएगी।
चोरी के लिए आवश्यक तत्व:
- चल संपत्ति (IPC Section 22 )
- किसी व्यक्ति के कब्ज़े में हो
- कब्ज़ेधारी की सहमति के बिना संपत्ति लेना
- बेईमानी पूर्ण आशय (IPC Sec 24 )
- संपत्ति को हटाया जाना
- चल संपत्ति (IPC Section 22 )
- केवल चल संपत्ति चोरी योग्य है, भारतीय दंड संहिता की धारा 22 चल संपत्ति को परिभाषित करती है। चल संपत्ति में प्रत्येक मूर्त संपत्ति आती है। सिवाय भूमि, भूबद्ध चीज, या भूबद्ध चीज से जकड़ी हुई अन्य कोई चीज।
- यह आवश्यक नहीं है की चोरी की विषयवस्तु प्रराम्भ्तः चल संपत्ति हो, अचल संपत्ति को चल संपत्ति में रूपांतरित करके चोरी योग्य बनाया जा सकता है।
- न तो जीवित मानव और न ही मानव शव चल संपत्ति है। अतः यह चोरी योग्य नहीं है। किसी संग्रहालय, संस्थान, या प्रतिष्ठान में संरक्षित मानव शरीर या मानव अंग चल संपत्ति है अतः यह चोरी योग्य है।
- देवी मूर्ति एक विधिक व्यक्ति है अतः यह चोरी योग्य है।
- किसी व्यक्ति के कब्जे में
- केवल ऐसी संपत्ति ही चोरी योग्य है जो किसी व्यक्ति के कब्जे में हो। कब्ज़ा विहीन संपत्ति चोरी योग्य नहीं है।
- उन्मुक्त प्राणी किसी व्यक्ति के कब्जे में नहीं होता अतः वह चोरी योग्य नहीं है। स्वतन्त्र जल धारा में विद्यमान मत्स्य उन्मुक्त प्राणी है अतः वह चोरी योग्य नहीं है और वे चोरी की विषय वस्तु नहीं हो सकते।
- कब्जेधारी की सम्मति के बिना
- चोरी का अपराध गठित करने के लिये यह आवश्यक है कि सम्पत्ति उस व्यक्ति की सहमति के बिना ली गई हो जिसके कब्जे में थी।
- स्पष्टीकरण 5 इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं कि सहमति अभिव्यक्त या प्रलक्षित हो सकती है और ऐसी सहमति या तो उस व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है जो सम्पत्ति को धारण किये हुये है या ऐसे व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा।
- मिथ्या प्रदर्शन द्वारा ली गई सम्मति जिससे तथ्य के विषय में भ्रम हो जाता है, वैध सम्मति नहीं होगी।
- बेईमानी पूर्ण आशय
- बेईमानी संहिता की धारा 24 में परिभाषित है। इस धारा के अनुसार जब कोई व्यक्ति बेईमानी से कार्य करता है यह तब कहा जाता है जब वह उस कार्य को इस आशय से करता है कि किसी व्यक्ति को सदोष अभिलाभ कारित करे या अन्य किसी व्यक्ति को सदोष हानि कारित करे। बेईमानिपूर्ण आशय चोरी का आवश्यक तत्व है , उद्दापन , लूट , डकेती ,आपराधिक न्यास भंग , तथा आपराधिक दुर्विनियोग जैसे अपराधो का भी यह आवश्यक तत्व है।
- आशय ही चोरी के अपराध का मूल तत्व है। सम्पत्ति लेने का आशय बेईमानीपूर्ण होना चाहिये और इसका उस समय इसी रूप में विद्यमान रहना आवश्यक है जिस समय सम्पत्ति हटायी जा रही हो।
- चूंकि चोरी का अपराध गठित करने के लिये सम्पत्ति को उसके स्थान से कुछ दूर हटाया जाना आवश्यक है अतः सम्पत्ति को बेईमानी से लेने का आशय सम्पत्ति हटाते समय ही विद्यमान होना चाहिये।
- बेईमानीपूर्ण आशय को उस समय अस्तित्व में समझा जायेगा जब सम्पत्ति लेने वाला व्यक्ति एक व्यक्ति को सदोष लाभ या दूसरे व्यक्ति को सदोष हानि कारित करना चाहता है।
- यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति लेने वाले व्यक्ति को ही सदोष लाभ पहुँचे, इतना ही पर्याप्त होगा, यदि वह सम्पत्ति के स्वामी को सदोष हानि कारित करता है।
- अत: यह तर्क प्रस्तुत करना कि अभियुक्त का आशय अपने आप को लाभ पहुँचाना नहीं था, उसे किसी प्रकार का बचाव नहीं प्रदान कर सकेगा।
उदाहरण: अजय सद्भावपूर्वक सुभाष की सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति समझते हुये उसे सुभाष के कब्जे से लेता है। इस प्रकरण में अजय उस सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से नहीं लेता है। अतएव वह चोरी के अपराध के लिये दोषी नहीं होगा। अजय भारतीय दण्ड संहिता की धारा 79 के अन्तर्गत तथ्य की भूल के आधार पर अपना बचाव कर सकता है। अजय ने सुभाष की सम्पत्ति को बेईमानीपूर्ण आशय से नहीं लिया वरन् त्रुटिपूर्ण विश्वास के साथ यह समझते हुये लिया है कि वह उसी की सम्पत्ति है।
- संपत्ति को हटाया जाना
- चोरी के गठन के लिए संपत्ति को हटाया जाना आवश्यक है।
- जैसे ही किसी बेईमानीपूर्ण आशय से सम्पत्ति को हटाया जाता है यह अपराध पूर्ण हो जाता है।
- सम्पत्ति का उसके स्थान से इंचमात्र हटाया जाना ही चोरी का अपराध गठित कर देता है भले ही हटाने के पश्चात् सम्पत्ति को बहुत दूर न ले जाया गया हो।
- इतना ही नहीं इस धारा के अन्तर्गत यह भी अपेक्षित नहीं है कि सम्पत्ति को उसके स्वामी की पहुँच के बाहर या उसके रखे जाने वाले स्थान से दूर ले जाया गया हो।
चोरी के लिए क्या संपत्ति को स्थाई रूप से लेना आवश्यक है?
- इस धारा के अन्तर्गत यह आवश्यक नहीं है कि सम्पत्ति स्थायी रूप से ली गई हो या अपनाने के आशय से ली गई हो।
- चोरी सम्पत्ति के स्वामी को सम्पत्ति से स्थायी रूप से वंचित न करने के आशय से भी कारित की जा सकती है।
- उदाहरणार्थ अजय एक लड़के सुभाष से जैसे ही वह स्कूल से बाहर आता है कुछ पुस्तकें छीन लेता है और उससे कहता है कि पुस्तकें तभी वापस होंगी जब वह उसके घर आयेगा। अजय इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी है। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के कब्जे से उसकी कोई चल सम्पत्ति कुछ देर के लिये इस आशय से ले लेता है। कि बाद में उन्हें लौटा दिया जायेगा, वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी है।
- अजय अपने घर में अपनी घड़ी भूल गया जो सुभाष को मिली। सुभाष उस घड़ी को तुरन्त अजय को लौटाने के बजाय उसे अपने घर ले गया और उसे तब तक अपने पास रखा जब तक कि वह अजय से पैसा इनाम के रूप में नहीं प्राप्त कर सका। सुभाष इस धारा के अन्तर्गत चोरी के अपराध के लिए दण्डनीय होगा।
केस: प्यारेलाल भार्गव बनाम राज्य 1963
इस केस में, प्यारेलाल एक सरकारी कार्यालय में कर्मचारी था। उसने अपने कार्यालय से एक फाइल हटाकर एक बाहरी व्यक्ति को इस शर्त पर उपलब्ध कराया कि 2 दिन के पश्चात् वह फाइल कार्यालय को वापस लौटा दी जायेगी। उसे इस धारा के अन्तर्गत दोषी घोषित किया गया।
क्या अपनी ही सम्पत्ति की चोरी की जा सकती है?
- कोई व्यक्ति अपनी ही वस्तु की चोरी के लिये दण्डित किया जा सकता है। यदि वह उस वस्तु को दूसरे व्यक्ति के कब्जे से बेईमानीपूर्वक ले लेता है।
- यदि कोई व्यक्ति अपने पशुओं को उस व्यक्ति के कब्जे से बिना न्यायालय की स्वीकृति लिये हुये ले लेता है जिस व्यक्ति को वे पशु कुर्की के पश्चात् सौंप दिये गये थे तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा।
- यदि कोई ऋणदाता अपने ऋणी के कब्जे से उसकी चल सम्पत्ति उसकी सम्मति के बिना ले लेता है ताकि ऋणी को ऋण की अदायगी के लिये मजबूर किया जा सके तो वह इस धारा के अन्तर्गत चोरी का अपराधी होगा।
उदहारण:
अजय, अपने दोस्त की जेब से बेईमानीपूर्वक पैसे निकाले। परन्तु जब उसने उनका परीक्षण किया तो पाया कि वे उसके अपने ही पैसे थे जिनकी कि उसके पास से पहले चोरी हुई थी। इस मामले में अजय चोरी के अपराध का दोषी है क्योंकि उसने दोस्त की जेब से पेसो को बेईमानीपूर्ण आशय से लिया था। यह तथ्य कि चोरी किये गये पैसे उसके अपने ही थे जिनकी चोरी कुछ समय पहले की गई थी उसे पैसे जेब से निकालते समय उसकी जानकारी में नहीं था। जिस समय पैसे दोस्त की जेब से निकाले गये थे वे दोस्त के कब्जे में थे और उसकी सम्मति के बिना बेईमानीपूर्वक आशय से निकाले गये थे। अत: अजय चोरी के अपराध का दोषी है।
चोरी के लिए दंड धारा 379:
यदि कोई घटना चोरी सिद्ध हो जाती है तो उस पर IPC की धारा 379 के तहत सजा सुनाई जाती है। धारा 379 के अनुसार चोरी के लिए कम से कम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों ही लगाया जा सकता है। यह एक संज्ञेय अपराध है। चोरी को एक समझौतावादी अपराध माना जाता है यानि सम्पति के मालिक से सुलह पर मामला ख़त्म हो सकता है। इस धारा के अनुसार यह एक गैर जमानती अपराध है। हालाँकि इसमें जमानत के लिए सत्र न्यायलय में अप्लीकेशन दिया जा सकता है।
निवास-गृह आदि में चोरी धारा 380:
जो भी कोई ऐसे किसी इमारत, तम्बू या जलयान, जो मानव निवास या संपत्ति की अभिरक्षा के लिए उपयोग में आता हो, में चोरी करता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही आर्थिक दंड से दंडित किया जाएगा। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
यह धारा किसी भवन, तम्बू या जलयान, जिसका उपयोग मानव निवास या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिये किया जा रहा हो, में की गयी चोरी से सम्बन्धित है। इस धारा का उद्देश्य किसी भवन, टेन्ट या जलयान में जमा सम्पत्ति को अधिक सुरक्षा प्रदान करना है। किसी बअजयदे, मकान की छत, किसी परिसर या ट्रेन के ब्रेकवान में की गयी चोरी, भवन में की गयी चोरी नहीं मानी जायेगी। किन्तु आँगन से की गयी चोरी या किसी प्रवेश हाल जिसमें दो-दो दरवाजे तो हों पर किवाड़ किसी में भी न लगा हो और जिसका उपयोग सम्पत्ति रखने के लिये किया जाता हो, में से की गयी चोरी, इस धारा के अन्तर्गत चोरी होगी।
लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी धारा 381:
जो भी कोई लिपिक या सेवक होते हुए, या लिपिक या सेवक के रूप में नियुक्त होते हुए, अपने मालिक या नियोक्ता के कब्जे की किसी संपत्ति की चोरी करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति (चोरी की गयी संपत्ति का स्वामी) द्वारा समझौता करने योग्य है।
चोरी करने के लिये मृत्यु, उपहति या अवरोध कारित करने की तैयारी के पश्चात् चोरी धारा 382:
जो कोई चोरी करने के लिए, या चोरी करने के पश्चात् निकल भागने के लिए, या चोरी द्वारा ली गई संपत्ति को रखने के लिए, किसी व्यक्ति की मॄत्यु, या उसे क्षति या उसका अवरोध कारित करने की, या मॄत्यु, क्षति या अवरोध का भय कारित करने की तैयारी करके चोरी करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कठिन कारावास की सजा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है से दण्डित किया जाएगा, और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा। यह एक ग़ैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।
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