OVERVIEW
भारत में यौनकर्मियों (Sex Worker) की स्थिति
- प्रस्तावना (Introduction)
- सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया निर्देश
- वेश्यालय और यौनकर्मी
- मुंबई हाई कोर्ट ने दिया था फैसला
- कोरोना महामारी के दौरान लिए गए अहम फैसले
- क्या कहता है हमारा कानून?
- अगर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को मान ले तो सेक्स वर्कर के जीवन में क्या बदलाव आएगा?
- क्या इसका दुरुपयोग किया जा सकता है?
- एक सेक्स वर्कर को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?
- राज्य द्वारा अदृश्य और सशर्त सरकारी सहायता का इतिहास
- राज्य की प्रतिक्रिया और चिंताएं
- सेक्स वर्कर्स और वेश्यालयों के लिए क्या कर सकती है सरकार
- निष्कर्ष
भारत में लगभग 800,000 से अधिक यौनकर्मी हैं। हालाँकि अनौपचारिक आंकड़ो में इनकी संख्या कहीं अधिक हैं। कहि न कहि सेक्स वर्क के द्वारा रेप को रोका जा सकता है। यौनकर्मियों की शारीरिक और भावनात्मक हिंसा, उनके जीवन का अधिकार, श्रम, स्वास्थ्य और प्रजनन और यौन अधिकारों की स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए एक कानून लाना बहुत जरुरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को भी अन्य पेशे की तरह एक पेशा कहा है। यौनकर्मी, देश के कानून के तहत समान स्थिति और समान सुरक्षा के हकदार हैं। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दिशानिर्देश जारी किए। दिशा-निर्देशों में पीठ ने कहा, "यौनकर्मी भी कानून की नजर में समान सुरक्षा और सम्मान की हकदार हैं। एक यौनकर्मी वयस्क है और सहमति के अधीन ऐसा कर रही है, तो पुलिस को इसमें हस्तक्षेप करने या उसके खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए। इस देश के प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।" यह पहली बार है जब देश की सबसे ऊंची अदालत की ओर से वेश्यावृत्ति को लेकर इस तरह का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने साफ कहा कि सहमति से यह कार्य करने वाले सेक्स वर्करों और उसके ग्राहक के खिलाफ पुलिस कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है।
14 भारतीय राज्यों में 3000 यौनकर्मियों के साथ हाल के शोध में यह पाया गया, की महिलाओं को वैकल्पिक कार्य का कोई अनुभव नहीं होने के कारण उनको बेहतर आय और आजीविका के अवसरों के लिए यौन कार्य का विकल्प चुनना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी निर्देश:
- जब सेक्स वर्कर्स अपनी इच्छा से यौन संबंध बनते है तो उन्हें पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती है। ना ही उसे किसी तरह दंडित, परेशान या प्रताड़ित किया जाना चाहिए।
- जब वेश्यालयों पर छापे मारे जायँगे उस दौरान सेक्स वर्कर्स को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
- कोर्ट ने कहा, कि सेक्स वर्कर के बच्चे को उसकी मां की देखभाल से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। 22 मार्च 2012 की sixth अंतरिम रिपोर्ट में पहले ही सिफारिश की जा चुकी है, की सेक्स वर्कर के बच्चे नाबालिग बेटा या बेटी, को केवल इस आधार पर मां से अलग नहीं किया जाना चाहिए कि वह देह व्यापार में है।
- इसके अलावा, यदि कोई नाबालिग वेश्यालय में या यौनकर्मियों के साथ रहता हुआ पाया जाता है, तो यह नहीं माना जाना चाहिए कि उसकी तस्करी की गई है।
- अगर सेक्स वर्कर ये दावा करे कि नाबालिग उसका बेटा या बेटी है, तो उसकी जाँच करे। इसके लिए उस नाबालिक का DNA टेस्ट कराया जा सकता है। अगर दावा सही पाया जायेगा तो नाबालिग को जबरदस्ती अलग नहीं किया जायेगा।
- इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा की मीडिया को सेक्स वर्कर्स की पहचान को उजागर नहीं करनी चाहिए। अगर सेक्स वर्कर चाहती है तो उसे सुधार गृह से जाने दिया जा सकता है।
कोर्ट ने सरकार से इस मामले में छह हफ्ते में जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई अगले महीने जुलाई की 27 तारीख को होगी।
वेश्यालय और सेक्स वर्कर:
- जब किसी वेश्यालय (brothel) में महिला के साथ उसकी मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती यौन सम्बन्ध बनाएगा तो उस केस में पुलिस को हस्तछेप करने की अनुमति है, परन्तु जब किसी यौनकर्मी (sex worker) के साथ जबरदस्ती से और उसकी मर्जी के खिलाफ यौन सम्बन्ध बनाएगा तो उसमे पुलिस को हस्तछेप करने से रोक दिया गया है।
- सुप्रीम कोर्ट के इस निर्यण से महिलाओ के काम को लेकर मतभेद पैदा हो गया है। परन्तु यह brothel और sex worker के बीच अंतर को दर्शाता है।
मुंबई हाई कोर्ट के द्वारा दिया गया फैसला:
सितंबर 2020 में मुंबई हाईकोर्ट ने तीन सेक्स वर्कर्स को सुधारगृह से छोड़ने का आदेश दिया था। इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि वेश्यावृत्ति अपराध नहीं है। वयस्क महिलाओं को अपना पेशा चुनने का अधिकार है। उनकी सहमति के बिना उन्हें हिरासत में नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (PITA), 1956 का हवाला देते हुए कहा था कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो वेश्यावृत्ति को अपराध बताता हो। वेश्यावृत्ति में लिप्त किसी व्यक्ति को सजा की बात भी इसमें नहीं है।
कोरोना महामारी के दौरान दिए गए गए अहम् फैसले:
- 2020 में भी, सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वो सेक्स वर्करों को राशन मुहैया कराएं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि राज्य सरकारें ये सुनिश्चित करें कि सेक्स वर्करों तक सस्ते दामों पर सूखा राशन पहुंचे। अदालत ने ये भी कहा कि राशन देने के लिए सरकारी एजेंसी की ओर से पहचान पत्र के लिए जोर नहीं डाला जाना चाहिए। यह निर्देश एक जनहित याचिका पर कोर्ट ने जारी किए थे।
- इसके बाद december 2021 में कोर्ट ने कहा, ‘देश के प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार प्रदत्त है, चाहे उसका पेशा कुछ भी हो। सरकार देश के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए कर्तव्यबद्ध है। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मतदाता पहचान पत्र, आधार और राशन कार्ड (Aadhar and Ration Card For Sex Workers) यौन कर्मियों को जारी करने की प्रक्रिया फौरन शुरू करने तथा उन्हें राशन मुहैया करना जारी रखने का निर्देश दिया।’
- साथ ही यह निर्देश दिया कि प्राधिकार नेशनल एड्स कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (नैको) (National AIDS Control Organization (NACO)) और राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी की भी सहायता ले सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन ‘दरबार महिला समन्वय समिति’ की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया था। याचिका में कोविड-19 महामारी (Covid-19) के चलते यौन कर्मियों (Sex Workers) को पेश आ रही समस्याओं को उठाया गया।
- न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की पीठ ने नाखुशी प्रकट की, कि यौन कर्मियों को राशन मुहैया करने का निर्देश 2011 में ही जारी कर दिया गया था, लेकिन उसे अब तक लागू किया जाना बाकी है। पीठ ने यह भी कहा, की ‘राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को करीब एक दशक पहले ही राशन कार्ड एवं पहचान पत्र जारी करने का निर्देश दे दिया गया था परन्तु अब तक वे निर्देश क्यों नहीं लागू किये गये’
अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद, सेक्स वर्कर, उसके बच्चे, दलाल, वेश्यालय सभी को अलग-अलग लीगल प्रोटेक्शन दे दिए है। लेकिन, सामूहिक तौर पर देखें तो ये आज भी अपराध है। ऐसे में जब पुलिस किसी जगह रेड मारेगी तो जो महिला वहां मिलेगी वो वहां काम कर रही है या वेश्यालय चला रही है ये कैसे तय होगा? क्योकि ज्यादातर मामलो में ये देख जाता है की लड़कियों को जबरदस्ती इस व्यापर में धकेला जाता है। अब जब पुलिस को बीच में दखल देने से मनाही कर दी गई है तो दलालो के हाथ और भी खुल जायेंगे।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (Additional Solicitor General) श्री जयंत सूद ने यौनकर्मियों अपनी चिंता व्यक्त की, कि यह सत्यापित करना अत्यंत मुश्किल हो सकता है कि क्या सेक्स वर्कर ने स्वेच्छा से सहमति दी थी या उसके साथ जबरदस्ती की गई थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि देश भर से तस्करी की गई अधिकांश यौनकर्मी शहर में किसी को भी नहीं जानती हैं जहां वे व्यापार कर रही हैं और इसलिए, वे जबरदस्ती की चपेट में हैं।
हमारा कानून क्या कहता है?
- भारतीय दंड संहिता (IPC) के मुताबिक वेश्यावृत्ति अपने व्यापक अर्थों में अवैध नहीं है, लेकिन कुछ गतिविधियां हैं जो इस अधिनियम के कुछ प्रावधानों के तहत दंडनीय अपराध हैं। जैसे सार्वजनिक स्थानों पर वेश्यावृत्ति सेवाओं के लिए किसी को लुभाना, नाबालिग लोगों से वेश्यावृत्ति कराना, होटल में वेश्यावृत्ति से जुड़ी गतिविधियां संचालित करना, सेक्स वर्कर की व्यवस्था करके वेश्यावृत्ति में लिप्त होना, आदि।
- अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम (Immoral Traffic (Prevention) Act), 1956 के मुताबिक अगर कोई वेश्या अपनी सेवाएं देने की याचना करते हुए या किसी को बहकाते हुए और जिसे वह बहका रही है वो यदि 18 साल से काम की उम्र की है तो और ऐसा करते हुए पाई जाती है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। इसके साथ ही कॉलगर्ल अपने फोन नंबर को सार्वजनिक नहीं कर सकती है। ऐसा करते हुए पाए जाने पर कोर्ट उसे छह महीने की सजा और जुर्माने के साथ दंड दे सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 23 में 2014 में बदलाव किया गया जिसमे मानव तस्करी से जुड़े कई प्रावधानो को जोड़ा गया था। जैसे- जबरदस्ती काम कराने और मानव तस्करी को इसमें निषेध बताया गया। मानव तस्करी और उससे जबरन श्रम करना भी दंडनीय अपराध है। यानी, अगर कोई व्यक्ति किसी महिला से जबरन वेश्यावृत्ति कराता है और उसे देह के व्यापर में धकेलता है तो उसे सजा हो सकती है।
भारत में सेक्स वर्कर की लाइफ को उजागर करने और उनके साथ केसा व्यवहार किया जाता है उससे सम्बंधित कुछ फिल्मे भी बानी हुई है, जैसे: चमेली, तलाश, लक्ष्मी, मर्दानी, यारा सिली सिली और इसी साल रिलीज़ हुई गंगूबाई कथिआवाडी। हम सबने यह फिल्मे कई बार देखि होंगी और जब हम ये देखते है और कुछ समय के बाद तक हमारे दिमाग में वही सब घूमता परन्तु कुछ समय के बाद हम सब भूल जाते है की एक सेक्स वर्कर की लाइफ कितनी तकलीफो से भरी होती है। भारत में कई सरे NGO भी है जो इनके हक़ के लिए न्याय की गुहार लगाते है।
अगर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को केंद्र सरकार मान लेती है तो सेक्स वर्कर के जीवन में क्या बदलेगा?
- यौनकर्मी (Sex workers) कानून के समक्छ समान संरक्षण के हकदार हैं। आपराधिक कानून सभी मामलों में 'आयु' और 'सहमति' के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए। जब यह स्पष्ट हो जाए कि यौनकर्मी वयस्क है और सहमति से भाग ले रही है, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए।
- सबसे बड़ा बदलाव समान कानूनी अधिकार को लेकर होगा। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को सरकार अगर मानती है तो सेक्स वर्कर्स को भी अन्य लोगों की तरह समान कानूनी अधिकार मिलेंगे।
- अगर कोई सेक्स वर्कर किसी मामले में आपराधिक, यौन या किसी अन्य तरह की शिकायत दर्ज कराता या कराती है तो पुलिस को उस शिकायत को गंभीरता से लेना होगा। इसके साथ ही कानून के अनुसार उसे कार्रवाई करनी होगी।
- पुलिस को सभी यौनकर्मियों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और उन्हें मौखिक और शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए, उनके अधीन रहना चाहिए।
- कोर्ट के निर्देश लागू होने पर सेक्स वर्कर्स को न तो गिरफ्तार किया जा सकेगा ना ही उन्हें पुलिस द्वारा प्रताड़ना का समाना करना पड़ेगा।
- अगर किसी सेक्स वर्कर के साथ यौन हिंसा होती है तो उसे किसी अन्य यौन उत्पीड़ित की तरह की चिकित्सा देखभाल व अन्य सेवाएं दी जाएंगी।
- पुलिस को सभी सेक्स वर्कर्स के साथ शालीनता से पेश आना होगा। उन्हें न तो शाब्दिक रूप से न ही शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा सकेगा।
क्या इसका दुरुपयोग भी हो सकता है?
- जब सेक्स वर्कर को क़ानूनी तोर पर रेप की शिकायत दर्ज कराने का अधिकार देते हैं तो इसके दुरुपयोग होने की भी आशंका बढ़ती है।
- जब कोई सेक्स वर्कर पेसो के भुगतान के आधार पर बने संबंध के बाद में शिकायत करेगी तो यह एक दीवानी मामले में संविदा से जुड़ा होगा जिसमे वह एक क्रिमिनल केस दर्ज करा सकेगी।
- अगला सवाल यह आता है कि सहमति और जबरदस्ती का फासला कैसे तय होगा? क्योंकि रेप तो जबरदस्ती होता है और सेक्स वर्कर अपनी सहमति से योन संबध बनते है।
यौनकर्मियों को कौन कौन सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है:
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- दस्तावेज़ीकरण की चुनौती:
- यौनकर्मियों के पहचान से संबंधित कलंक और काम की प्रवासी प्रकृति उन्हें पहचान-पत्र जैसे दस्तावेजों तक पहुँचने से रोकती है, जो की उन्हें उनके अधिकारों तक पहुँचने के लिए अति आवश्यक हैं।
- उदाहरण के लिए 2009 में यह अनुमान लगाया गया था कि केवल दिल्ली में 5000 यौनकर्मियों के पास ही वोटर आईडी कार्ड था।
- नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स के 76 सेक्स वर्कर्स ने यह भी बताया, कि उनके बच्चों को स्कूलों में पंजीकृत कराने के लिए निवास प्रमाण, पिता का नाम, उनकी जाति, और साथ में जाती प्रमाण पत्र जैसे कुछ दस्तावेज की आवश्यक पड़ी थी। इनमे दस्तावेज उनके पास नहीं थे जिससे उन्हें उनके बच्चों के एडमिशन में बहुत दिक्कत आई थी।
- आवास योजनाओं के लिए आवेदन करने वाली सेक्स वर्करों का यह दावा है कि उनसे आवास व राशन कार्ड का प्रमाण मांगा गया।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) (Public Distribution System (PDS)), जो गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए खाद्य पदार्थों को सस्ते में लेने के लिए है, को यौनकर्मियों के गरीबी रेखा से नीचे होने के समर्थन में उनसे प्रमाण माँगा गया जो की उनके पास नहीं था। जिसकी वजह से उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।
- यौनकर्मी को नियमित रूप से चुनाव आयोग कार्ड, आधार, जाति प्रमाण पत्र, राशन कार्ड जैसे पहचान दस्तावेजों को बनाने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं।
- कई एकल महिलाएं हैं जिनके बच्चे हैं और वे लंबे समय तक निवास का प्रमाण प्रस्तुत करने या जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए आवश्यक पुश्तैनी दस्तावेज दिखाने में असमर्थ होती हैं। उन्हें कोरोना महामारी के दौरान राज्य सरकारों द्वारा प्रदान किए गए राशन राहत पैकेज से वंचित कर दिया गया था।
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- आपराधिक अस्तित्व:
- मौजूदा कानून सेक्स वर्क के पहलुओं को आपराधिक बनाना जारी रखता है, जिसमें याचना, वेश्यालय और सेक्स वर्क की कमाई से जीवन यापन करना शामिल है।
- वेश्यालय पर जब छापेमारी की जाती है, तो उन महिलाओ को बचाने के लिए आमतौर पर विषम परिस्थितियों में आश्रय गृहों में बंद कर दिया जाता है। जिससे उनके परिवार के ललन पोषण में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसलिए वो खुलकर सामने आने में भी डरती है।
- समाज में बदनामी के डर से वे न ही अपनी पहचान को स्वीकार करते हैं और सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को भी नहीं प्राप्त नहीं करते हैं।
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- काम की छिपी प्रकृति:
- सेक्स वर्कर (पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर) का एक बड़ा हिस्सा घर से काम करता है। जो ग्राहकों को मोबाइल फोन के माध्यम से, स्वतंत्र रूप से या एक एजेंट के माध्यम से संपर्क करते है।
- भारत में महिलाओं का एक बड़ा प्रतिशत गृहिणियो का हैं। उन गृहिणियो के पास कोई भी काम शिक्षा नहीं होती है जिससे वे सेक्स वर्क को अपनी रोजी साधन बना लेती है और उनके परिवारों को उनके काम के बारे में पता नहीं होता है।
- COVID महामारी के दौरान, उनकी आजीविका पूरी तरह से ठप हो गई। वे अपने परिवारों को आजीविका के नुकसान की व्याख्या करने या वेश्यालयों में यौनकर्मियों को राहत देने वाले सामूहिकों से संपर्क करने में असमर्थ थे।
- मौद्रिक लाभ या प्रकार के लिए यौन सेवाओं के प्रावधान के रूप में परिभाषित किया गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय से सेवाएं प्राप्त करने वाली अनुमानित 6,88751 "पंजीकृत" महिला यौनकर्मियों के साथ भारत में महिला यौनकर्मियों का अनुमान 1.2 मिलियन है।
- यौन सेवाएं प्रदान करना उनके लिए सेक्स वर्क करना आजीविका का एकमात्र साधन है। चूंकि उनके काम को अन्य प्रकार के कामों की तरह सामाजिक प्रतिबंधों का आनंद नहीं मिलता है, यौनकर्मियों को संघर्ष करने के लिए मजबूर किया जाता है।
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- प्रवासी यौनकर्मी:
- यौनकर्मी परिवार जब इस व्यापर से जुड़ जाते है तो वे अपने परिवार से दूर हो जाते है और ये भी चाहते है की उनके इस काम के बारे में उनके परिवार को इसके बारे में पता न चले।
- यौनकर्मी द्वारा अपनी पहचान से बचने के लिए या बेहतर कमाई के अवसरों के लिए बार-बार एक शहर से दूसरे शहर आते जाते रहते हैं। हालांकि सरकार जो राशन कार्ड और अन्य पहचान और पते के प्रमाण मांगते हैं इस कारण राहत कार्य प्रदान करना बहुत मुश्किल हो जाता है।
- COVID-19 महामारी ने कई यौनकर्मियों को दूसरे शहरों, कस्बों और जिलों में फँसा दिया। जिसके कारण उन्हें राशन और किसी भी तरह की राहत से वंचित होना पड़ा था, क्योंकि उनके पास उस शहर या जिले से संबंधित राशन कार्ड नहीं थे जहां वे पाए गए थे।
- देशव्यापी तालाबंदी के बीच, जब उनकी बचत समाप्त हो गई थी, तो उन महिलाओं को अपने किराए के कमरे खाली करने के लिए कहा गया था।
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- हिंसा:
- यौन कार्य से जुड़ा कलंक उन यौनकर्मियों के साथ उनके परिवार के सदस्यों द्वारा उनके ऊपर बहुत साडी हिंसा की जाती है और ये कोरोना महामारी के दौरान बहुत अधिक बढ़ गई थी।
- महामारी के दौरान पैसे लाने में असमर्थता के कारण यौनकर्मी अपने परिवारों से उच्च स्तर के दुर्व्यवहार (मौखिक और शारीरिक) का सामना करने को मजबूर हो गए थे।
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- बिना सुरक्षा जाल के अनिश्चित आजीविका:
- यौनकर्मियों के परिवार अक्सर अपने परिवार को चलाने के लिए अपनी इसी दैनिक आय पर निर्भर होते हैं। उनके पास बचत, ऋण और अन्य वित्तीय संस्थानों तक पहुंच नहीं है।
- यौनकर्मी जब बैंक में ऋण लेने के लिए जाते है तो वह बैंक नियमित रूप से ऋण देने से मना कर देते हैं। क्योंकि उनके पास कोई भी विटनेस नहीं होता है यौनकर्मी अलावा। और जब बात अति है निजी ऋण देने वालो की तो वे यौनकर्मियों की इस स्थिति का लाभ उठाते हैं और उन्हें साप्ताहिक या मासिक आधार पर अत्यधिक ब्याज दरों पर पैसा उधार देते हैं।
- COVID-19 के दौरान, यौनकर्मियों को उनसे ऋण लेना एक मज़बूरी बन गई थी है। उन पर उच्च ब्याज दरों पर भुगतान करने के लिए दबाव डाला गया था और अभी भी जा रहा है, जो उन्हें बिना किसी आय के मुश्किल लग रहा है।
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- असुरक्षित जगह पर रहने की मज़बूरी:
- एकल मुखिया वाले घर चलाने वाली अधिकांश यौनकर्मी किराए के मकान में रहती हैं और उन्हें साप्ताहिक आधार पर किराए का भुगतान करना होता है।
- लॉकडाउन अवधि के दौरान ऐसी कई की खबरें आई हैं की यौनकर्मियों को किराया देने या फिर परिसर खाली करने को कहा गया।
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- स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां:
- खाद्य सुरक्षा और पोषण:
- स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां:
- यौनकर्मियों को किसी भी खाद्य राहत पैकेज में शामिल नहीं किया गया।
- अभी तक 50% से अधिक यौनकर्मियों के पास न तो कोई राशन कार्ड है जिससे वे सर्कार के द्वारा दिए जा रहे राशन का लाभ उठा सके।
- आजीविका के अभाव में, यौनकर्मियों को गैर सरकारी संगठनों/व्यक्तियों द्वारा प्रदान की जाने वाली खाद्य राहत तक सीमित कर दिया गया था।
- उन्हें पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है।
- जब किसी सेक्स वर्कर को अच्छा खाना और पोषण भरा आहार नहीं मिलता है तो वे HIV और AIDS जैसी बीमारियों से लड़ने में सफल नहीं हो पते है। इसका विशेष रूप से HIV पॉजिटिव सेक्स वर्कर्स, कॉमरेडिडिटी (comorbidities) के साथ रहने वाले पुराने सेक्स वर्कर्स और सेक्स वर्क में गर्भवती महिलाओं पर बहुत असर पड़ता है।
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- प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं से इनकार
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- सेक्स वर्कर के पास आधार कार्ड और अन्य कोई पत्र नहीं होने के कारण निजी अस्पतालों में गर्भवती स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा पाती है।
- निजी अस्पताल यौनकर्मियों को यह कहते हुए मना कर रहे थे कि वे केवल COVID-19 रोगियों की देखभाल कर रहे हैं और यदि उन्हें उपचार चाहिए तो इसके लिए तो वे अत्यधिक मात्रा में शुल्क दे। लॉक डाउन के दौरान यौनकर्मियों की प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बुरी तरह प्रभावित हुई थी।
- सरकारी अस्पतालों में गर्भनिरोधक गोलियों की कमी के कारण महिलाएं मौखिक गर्भनिरोधक लेने में असमर्थ थीं और विभिन्न कार्यक्रमों के तहत इनकी आपूर्ति करने वाले गैर सरकारी संगठनों ने भी कोरोना महामारी के दौरान अपनी सेवाएं बंद कर दी थीं।
- इस सेवाओं के बंद हो जाने का कारण महिलाओ को अनचाहे गर्भ को रखना पड़ा और साथ ही कई स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं का सामना करना पड़ा।
- जो महिलाएं गर्भवती थी और जिन्हें स्त्री रोग और प्रसूति सेवाओं की आवश्यकता थी, उन्हें भी इसका खामियाजा भुगतना पडा।
- उनका फिजिकल चेकअप करने से मना किया गया और कहा गया कि कुछ महीने बाद आएं। उनमें से कुछ बहुत ही अस्वच्छ परिस्थितियों में स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के बाहर वेश्यालय में ही प्रसव कारना पड़ा।सरकारी और निजी अस्पतालों द्वारा गर्भपात करने से इनकार किया गया था। यौनकर्मियों को गैर सरकारी संगठनों (NGO) से संपर्क करना पड़ा जो उनके साथ निजी अस्पतालों में गए और तब जाकर उन्हें आपातकालीन सहायता मिली।
- लॉक डाउन के दौरान सरकारी अस्पतालों में कई विभाग बंद रहे। चूंकि निजी डॉक्टर भी ज्यादा रुपये चार्ज कर रहे थे। तब यौनकर्मियों के पास होम्योपैथ के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
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- निजी डॉक्टरों से संपर्क:
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- कोरोना के दौरान और इससे पहले भी, यौनकर्मियों को निजी डॉक्टरों से संपर्क करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिन्होंने उनसे अत्यधिक पैसे वसूले।
- कुछ मामलों में, महिलाएं इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाती थीं। यौनकर्मियों के साथ वे अभद्र व्यव्हार करते थे।
- मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायरॉइड या अन्य शिकायतों वाले यौनकर्मी सरकारी अस्पतालों से पुष्टिकरण परीक्षण या दवाएं प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।
- उन्हें चेक-अप और परीक्षण दिए जाने से पहले 2 या 3 अस्पतालों में जाने के लिए मजबूर किया जाता है, वे मेडिकल दुकानों से बहुत अधिक कीमत पर दवाइयाँ खरीदने को मजबूर होते हैं।
- कई महिलाओं ने गंभीर बीमारियों के लिए दवाएं बंद कर दी हैं क्योंकि वे इसे वहन करने में सक्षम नहीं हैं।
- यौनकर्मियों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं में वृद्धि हुई है, इसके कारण उनकी आजीविका प्रभावित हो रही है और भविष्य को लेकर अनिश्चितता है।
- सरकारी मानसिक स्वास्थ्य सुविधाओं को बंद करने से परामर्श सहायता प्राप्त करने के लिए महिलाओं की क्षमता प्रभावित हुई है।
राज्य द्वारा अदृश्य और सशर्त सरकारी सहायता का इतिहास:
- कोरोना की महामारी के दौरान, राज्यों ने तत्काल राहत के लिए कई राहत कार्य करे। जैसे की ट्रांसजेंडर, विकलांग लोगों, श्रमिकों, प्रवासियों की कई श्रेणियों की पहचान की। हालांकि, सरकारों ने यौनकर्मियों को सभी राहत के लाभ से इन्हे बाहर रखा था।
- COVID महामारी के दौरान महाराष्ट्र सरकार के महिला एवं बाल विभाग द्वारा प्रदर्शित एक अच्छी प्रथा यह थी कि यौनकर्मियों को सहायता की आवश्यकता वाले विशेष वर्ग के रूप में मान्यता दी गई थी। इस प्रयास को अन्य राज्य सरकारों द्वारा अनुकरण और दोहराया जाना चाहिए।
राज्य की प्रतिक्रिया और चिंताएँ:
- यौनकर्मियों के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए राज्य की प्रतिक्रिया में एक द्वंद्व रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एचआईवी/एड्स (HIV/AIDS) कार्यक्रम के माध्यम से यौनकर्मियों को एचआईवी रोकथाम के बारे बताया जाये और उन्हें इनके बारे में जानकारी दी जाये साथ ही इनकी सेवाओं पर जोर दिया।
- 2009 तक, एचआईवी कार्यक्रमों का यौनकर्मियों के समुदाय-आधारित संगठनों (सीबीओ) के लिए यह महत्वाकांक्षी संक्रमण पूरे देश में पहले ही शुरू हो चुका था। राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रदान किए गए कार्यक्रमों के प्रबंधन और संचालन के लिए यौनकर्मियों को प्रशिक्षण देने पर जोर दिया गया था।
यौनकर्मी (Sex Worker) और वेश्यालय (Brothel) के लिए सरकार क्या कर सकती है:
- यौनकर्मी या वेश्यालय में यदि कोई महिला गर्भवती होती है वह से अलग कहि सुरच्छित जगह पर जहा उसे स्वास्थ्य से सम्बंधित सभी सुविद्याए मिले, परन्तु उसकी सहमति के साथ।
- यदि कोई महिला मना करती है गर्भावस्था के दौरान तो उसे समझाया जाये की ये उसके और उसके बच्चे की भलाई के लिए है।
- जैसे सर्कार जेल में बंद केदियो के लिए अच्छा आहार और मुफ्त शिछा देती है, वैसे ही हर राज्य सरकार को सेक्स वर्कर के लिए भी मुफ्त शिछा दे।
- एक बार वर्क में जाने के बाद यदि कोई महिला वह से वापस आती है तो उसे काउन्सलिंग दी जाये और आगे पढ़ाया जाये।
- जैसे हर पिछड़े वर्ग के कानून में संरछण प्रदान है वैसे ही भारत के संविधान के अनुछेद 15 (3) के तहत संसद को कानून बनाना चाइये ताकि ये भी पिछड़ा वर्ग वह से बहार आये और educated करे और कोई जॉब को प्राप्त करे।
- राज्य सरकारें हर क्षेत्र की सेक्स वर्कर्स और वेश्यालयों का डेटा रखें, इससे इनके खिलाफ होने वाले अत्याचार कम होंगे और यदि ऐसा कुछ होता भी है तो पुलिस को आसानी से पता चल जायेगा।
- हर एक वेश्यालय पर हेल्पलाइन नंबर होने चाहिए और इसकी सुचना वह की हर महिला के पास हो, ये सर्कार सुनिश्चित करे।
- महिलाओ को अनचाहे गर्भ को रोकने के जानकारी दे , जैसे की उस एरिया में मेडिकल की दुकान हो और उन्हें प्रोटेक्टेड सेक्स के लिए प्रोडक्ट्स दे, जिनका पैसा सरकार दे।
- सबसे महत्वपूर्ण, संसद को सेक्स वर्कर और वेश्यालयों के लिए अलग से कानून बनाने चाहिए।
- अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारे दिशानिर्देश दिए है, परन्तु उनका पालन काने में राज्य सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार भी विफल हुई है। इसके लिए सख्ती से इनकी पालना हो, ऐसा सुप्रीम कोर्ट करे और साथ में सरकारों के खिलाफ दंड का भी प्रवधान करे।
निष्कर्ष:
भारत में कुल मिलाकर वेश्यावृत्ति करना गैर कानूनी नहीं है, लेकिन वेश्यावृत्ति की याचना करना और सार्वजनिक तौर पर वृश्यावृत्ति करना, अपराध के दायरे में आता है। लेकिन वेश्यालय चलाना गैर कानूनी है। जब वेश्यावृत्ति करना गैर क़ानूनी नहीं है तो वेश्यालय को गैर क़ानूनी क्यों माना जाता है? यह तो वही बात हो गई की काम करना क़ानूनी तौर पर सही है परन्तु उस काम करने की जो जगह है वो गैर क़ानूनी है।
सेक्स वर्क में महिलाएं अपने जीवन के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, नागरिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अधिकारों की हकदार होना चाहिए। महिलाओं की पवित्रता और भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में लैंगिक रूढ़िबद्ध धारणाओं से स्वतंत्रता एक विषम-नियमित और पितृसत्तात्मक परिवार के भीतर पूरी तरह से तभी प्राप्त की जा सकती है जब यौनकर्मियों के जीवन के सभी क्षेत्रों से भेदभाव को समाप्त कर दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिया गया यह फैसला काफी अहम है। अब देखना यह है कि कोर्ट के इस फैसले के बाद देश में सेक्स वर्कर्स की हालत में क्या बदलाव देखने को मिलेगा और उन्हें कानून का कितना संरक्षण प्राप्त होगा।
To read this article in English- sex workers in India
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