OVERVIEW
FIR से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी
विषय-सूचि:
- FIR क्या होती है?
- FREE में ONLINE FIR कैसे प्राप्त करें या FIR ऑनलाइन डाउनलोड कैसे करें?
- झूठी FIR दर्ज होने के बाद क्या करे?
- यदि कोई झूठी FIR दर्ज करे तो उसे कितनी सजा हो सकती है?
- FIR कब दर्ज करानी चाहिए?
- FIR कौन दर्ज करवा सकता है?
- पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?
- FIR कहाँ दर्ज कराएं?
- ZERO FIR क्या होती है?
- FIR दर्ज करने की चरणबद्ध प्रक्रिया और FIR में क्या क्या सुचना की आवश्यकता होती है?
- FIR दर्ज होने के बाद क्या होता है?
- क्या FIR दर्ज करने के बाद उसे बदला जा सकता है?
- क्या ऑनलाइन FIR दर्ज कर सकते है?
- ऑनलाइन FIR दर्ज करने के कारण
- क्या FIR को postal order के द्वारा दर्ज किया जा सकता है?
FIR क्या होती है?
- FIR की परिभाषा आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 में नहीं दी हुई है। लेकिन इससे सम्बंधित प्रावधानों के बारे में अध्याय 12 में दिया हुआ है।
- FIR की फुल फॉर्म फर्स्ट इनफॉरमेशन रिपोर्ट होती है जो प्राथमिकी या प्रथम सूचना रिपोर्ट के नाम से भी जानी जाती है।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट केवल संज्ञेय अपराधों के लिए पंजीकृत करायी जाती है। संज्ञेय अपराध वे हैं जिनमें पुलिस अधिकारियों के पास वारंट के साथ या बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और अदालत से अनुमति प्राप्त किए बिना जांच शुरू करने का अधिकार होता है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 154 के तहत प्रारंभ में जो पुलिस में रिपोर्ट या सुचना की जाती है औऱ उस सूचना या रिपोर्ट के आधार पर पुलिस को संज्ञेय अपराध होने की सूचना को FIR रजिस्टर में दर्ज करती है, उसे ही प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है। यह किसी संज्ञेय अपराध होने की प्रथम सूचना होती है। इसलिए इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है।
FREE में ONLINE FIR कैसे प्राप्त करें या FIR ऑनलाइन डाउनलोड कैसे करें?
- संपूर्ण भारत में FIR ऑनलाइन डाउनलोड की जा सकती है। राजस्थान में भी पुलिस की ऑफिशियल वेबसाइट police.rajasthan.gov.in पर यह ऑनलाइन उपलब्ध है और ई-स्टेटस भी जाना जा सकता है।
- इस प्रकार हमें किसी दर्ज हो चुकी FIR की जानकारी के लिए किसी थाने में जाने की आवश्यकता नहीं है। किंतु यह F.I.R. न्यायिक उद्देश्य से उपयोग में नहीं ली जा सकती। न्यायिक उपयोग हेतु संबंधित न्यायालय अथवा पुलिस से ही FIR की CERTIFIED कॉपी प्राप्त करनी होगी।
झूठी FIR दर्ज होने के बाद क्या करे?
- कभी कभी कुछ चालक नागरिक अपनी किसी व्यक्तिगत लाभ के कारण किसी दुसरे व्यक्ति के खिलाफ झूठी FIR दर्ज करवा देते हैं और बेगुनाह नागरिकों को परेशानी में डाल देते हैं। यदि कोई झूठी FIR किसी नागरिक के खिलाफ दर्ज करवा देता है, तो वह नागरिक सरकार द्वारा दिए गए अपने अधिकार का उपयोग करके उस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकता है जिसने झूठी FIR दर्ज करवाई है।
Cr.P.C. की धारा 482:
- यह एक ऐसी धारा हैं, जो आपको झूठी FIR से बाहर निकाल सकती हैं। इसके साथ ही शिकायतकर्ता को मुश्किल में डाल सकती हैं जिसने आपके खिलाफ झूठी FIR की हैं।
- आप उस FIR को चैलेंज कर सकते हैं और साथ ही कोर्ट में इसके खिलाफ लड़ सकते हैं। आप कोर्ट में धारा 482 के तहत उस झूठी FIR को समाप्त करने के लिए आवेदन कर सकते है।
- जब तक कोर्ट में यह मामला 482 धारा के तहत चलता है तब तक आप पर कोई कार्यवाही नहीं होती है। इससे आपकी मुश्किलें भी काम हो जाएगी। आपको कोर्ट और कार्यवाही से बचने के लिए अपनी ओर से वकील के द्वारा प्रार्थनापत्र देना होगा।
- यदि आपके पास कोई ऐसा सबुत है जो साबित कर दे के आप सच बोल रहे हैं और दूसरी पार्टी झूठ बोल रही है। तो आपको ये भी अपने पत्र के साथ ही कोर्ट में प्रस्तुत करना होगा।
यदि कोई झूठी FIR दर्ज करे तो उसे कितनी सजा हो सकती है?
- यदि कोई झूठी FIR दर्ज कराता है तो उसके पुलिस उसके खिलाफ IPC की धारा 182 के तहत मामला दर्ज करके, कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकते है। इस धारा तहत कोर्ट उसे 6 महीने का कारावास दे सकती है या 1000 रूपये का जुर्माना लगा सकती है या दोनों से भी दंड कर सकती है।
FIR कब दर्ज करानी चाहिए?
- जैसे ही किसी को अपराध होने का पता चलता है, FIR दर्ज करने की सलाह दी जाती है। यदि प्रारंभिक चरण में FIR दर्ज नहीं की जाती है, तो FIR के देरी से दर्ज कराने के कारण पूछती है और संतुष्ट होने के बाद FIR दर्ज की जाती है।
FIR कौन दर्ज करवा सकता है?
- FIR कोई भी व्यक्ति दर्ज करवा सकता है, चाहे वह अपराध का शिकार हुआ हो, उस अपराध का गवाह हो या अपराध के बारे में जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति।
पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?
- अगर पुलिस किसी संज्ञेय अपराध में धारा 154 के तहत FIR लिखने को मना करे तो आप धारा 154(3) के तहत पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) को लिखित में शिकायत कर सकते है। इसके बाद पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) थाने के भारसाधक अधिकारी को आर्डर देगा की FIR दर्ज करे को इसकी जांच शुरू करे।
- यदि पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) भी आपकी FIR लिखने के लिए थाने को कोई आर्डर नहीं देता है तो आप धारा 156(3) के तहत सीधे कोर्ट में परिवाद पेश कर सकते है। कोर्ट में परिवाद पेश करने के बाद कोर्ट उस सम्बंधित थाने को आर्डर देगा FIR लिखने का।
- पुलिस किसी असंज्ञेय अपराध में धारा 155 के तहत FIR मजिस्ट्रेट के आर्डर के बिना नहीं लिखेगी।
FIR कहाँ दर्ज कराएं?
- FIR आम तौर पर उस पुलिस स्टेशन (Police Station) में दर्ज की जाती है जिसके अधिकार क्षेत्र में अपराध हुआ है।
ZERO FIR क्या होती है?
- प्रायः FIR का क्षेत्राधिकार वो होता है जहाँ पर घटना हुई है। लेकिन कभी कभी कुछ विषम माहौल में बाहरी थाने पर भी FIR दर्ज करना पड़ता है। लेकिन बाहरी थाने के घटना को पुलिस गंभीरता से नहीं लेती है अतः इस परेशानी से नितपटने के लिए सरकार ने ZERO FIR की अवधारणा को विकसित किया है। आप उस छेत्र के बाहरी थाने पर भी FIR दर्ज करवा सकते हैं लेकिन बाद मे उसको उस सम्बंधित क्षेत्राधिकार थाने में ट्रांसफर जाती है।
FIR दर्ज करने की चरणबद्ध प्रक्रिया और FIR में क्या क्या सुचना की आवश्यकता होती है?
- चरण 1: निकटतम पुलिस स्टेशन पर जाकर मामले के बारे में सब कुछ बताएं जो आप जानते हैं।
- चरण 2: आप या तो पुलिस अधिकारी को घटना के बारे में मौखिक रूप से बता सकते हैं, उदाहरण के लिए, आपके साथ क्या हुआ? घटना के बारे कैसे पता चला?
- चरण 3: यदि आप पुलिस को मौखिक रूप से कुछ बताते हैं, तो थाना अधिकारी को उसे पेपर पर लिखना चाहिए और उसे दैनिक डायरी में दर्ज करना चाहिए।
- चरण 4: यदि आप लिखित शिकायत दर्ज करते हैं, तो आपको दो प्रतियां अपने साथ लानी होती है। एक थाना अधिकारी को दिया जाएगा, और दूसरा आपको वापस कर दिया जाएगा।
- चरण 5: आपके द्वारा जानकारी देने के बाद, पुलिस सभी विवरणों की जांच करेगी।
- चरण 6: पुलिस द्वारा दर्ज की गई जानकारी को आपको पढ़ के सुनाया जाता है।
- चरण 7: पुलिस द्वारा दर्ज की गई जानकारी सही है, यह सत्यापित करने के बाद ही रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करें।
- चरण 8: पुलिस द्वारा सूचना दर्ज करने के बाद, आपको FIR पर हस्ताक्षर करने होंगे।
- चरण 9: FIR दर्ज करने के बाद FIR संख्या, FIR की तारीख और पुलिस थाने के नाम के साथ FIR की एक निःशुल्क प्रति शिकायतकर्ता को प्रदान की जाएगी।
FIR लेने के बाद यह सुनिशित करें कि दोनों प्रतियों पर थाने की मुहर लगी हो। FIR पर डीडी नंबर की मुहर लगी होती है, जो डेली डायरी नंबर के लिए होती है।
FIR दर्ज होने के बाद क्या होता है?
- जब पीड़ित व्यक्ति द्वारा FIR कर दी जाती है और पुलिस प्राथमिक रूप में FIR दर्ज कर देती है, तो उसके बाद पुलिस कानूनी रूप से बाध्य हो जाती कार्यवाही करने के लिए। किसी संज्ञेय मामले में FIR लिखने के बाद उसकी जाँच करना, पहला कदम होता है।
- इसके बाद पुलिस जांच के द्वारा घटना के बारे में निरीक्षण प्रारंभ करती है। मामले की छानबीन करती है, साक्ष्य बटोरती है, घटना से संबंधित सभी तरह के गवाहों से पूछताछ करती है, मामले का बयान दर्ज करके मुख्य घटना का फोरेंसिक चेक करने हेतु भेजती है।
- FIR में शिकायत करता द्वारा अपराध के बारे में पूरी जानकरी देनी होती है। ताकि पुलिस उस व्यक्ति की पूरी तरह से मदद कर सके और अपराधी को उसके किये गए अपराध के लिए दंड दे सके। ताकि समाज में अनुशाशन बना रहे। FIR दर्ज करने के बाद पुलिस अपनी कारवाही करना शुरू कर देती है।
क्या FIR दर्ज करने के बाद उसे बदला जा सकता है?
- नहीं, एक बार FIR दर्ज होने के बाद उसके contents को नहीं बदला जा सकता है। हालाँकि, किसी भी समय पुलिस को उस FIR से सम्बंधित अतिरिक्त जानकारी प्रदान कर सकते हैं।
क्या ऑनलाइन FIR दर्ज कर सकते है?
- ऑनलाइन FIR दर्ज करने के लिए सबसे पहले आपको अपने राज्य (State) की ऑफिसियल वेबसाइट पर जाना होगा। सभी राज्यों के पुलिस स्टेशन में ऑनलाइन रिपोर्ट दर्ज करने की वेबसाइट अलग-अलग होती है, जिन्हे आप Google पर सर्च सकते है। जैसे राजस्थान में ऑनलाइन FIR के लिए:
www.police.rajasthan.gov.in
- आप ऊपर दिए गए लिंक की मदद से बहुत आसानी से Online FIR दर्ज कर सकते है। हालाँकि, एक सीमा है: कुछ शहरों में, केवल कुछ प्रकार की FIR ऑनलाइन दर्ज की जा सकती हैं।
ऑनलाइन FIR दर्ज करने के कारण:
- ऑनलाइन FIR फाइल करने के पीछे कई कारण हो सकते है जो इस प्रकार है –
- नागरिक पुलिस को ऑनलाइन FIR के माध्यम से खोये हुए सामान जैसे- मोबाइल फ़ोन, सिम कार्ड, दस्तावेज़ आदि की जानकारी दे सकते है।
- अपनी पहचान का खुलासा किये बिना घटनाओं और संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी देना।
- अज्ञात मृत शरीर या गुमशुदा व्यक्ति के बारे में जानकारी देना।
- इंजन नंबर, रजिस्ट्रेशन नंबर या चैसिंग नंबर की सहायता से चोरी किये गए या अधिकृत किये गए वाहनों की जानकारी।
क्या FIR को postal order के द्वारा दर्ज किया जा सकता है?
- हाँ, FIR को postal order के द्वारा भी थाने में भेजकर उसे दर्ज करवाया जा सकता है। कई बार ऐसे घोर अपराधी हमारे आस-पास होते है या हमारे परिवार में होते है, परनतु समाज के डर से हम थाने नहीं जा पाते है। ऐसे मामलों में आप अपनी शिकायत को पेपर में लिखकर postal order के माध्यम से उस सम्बंधित छेत्र के थाने में भेज सकते है।
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