The Supreme Court once again banned two-finger test
एक बार फिरसे सुप्रीम कोर्ट ने टू फिंगर टेस्ट को किया बैन
दुष्कर्म पीड़िताओं के साथ हुए दुष्कर्म की पुष्टि के लिए किये जाने वाले टू-फिंगर टेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी नाराजगी जताई । सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि टू फिंगर टेस्ट दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए दोबारा दुष्कर्म करने जैसा है। कोर्ट ने कहा, जो कोई भी बलात्कार के मामलों में टू-फिंगर टेस्ट करेगा, वह व्यक्ति कदाचार का दोषी होंगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में अध्ययन से इस टेस्ट को हटाने के भी निर्देश जारी किए।
टू-फिंगर टेस्ट क्या होता है ?
- ‘टू-फिंगर’ टेस्ट यौन उत्पीड़न और रेप की शिकार महिलाओं के बारे में यह जानने के लिए किया जाता है कि वे सेक्सुअली एक्टिव हैं या नहीं ?
- इस प्रक्रिया के तहत मेडिकल प्रोफेशनल यह जांचते हैं कि महिला के हैमेन को नुकसान पहुंचा है या नहीं, जिससे पता लगाया जा सके कि महिला के साथ दुष्कर्म हुआ था या सहमति से इंटरकोर्स किया गया था।
- टेस्ट के दौरान पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में एक या दो उंगली डालकर उसकी वर्जिनिटी टेस्ट की जाती है। टेस्ट का मकसद यह जानना है कि महिला के साथ शारीरिक संबंध बने थे या नहीं? अगर प्राइवेट पार्ट में दोनों उंगलियां आसानी से चली जाती हैं तो महिला को सेक्सुअली एक्टिव माना जाता है और इसे ही महिला के वर्जिन या वर्जिन ना होने का सबूत भी मान लिया जाता है।
टू फिंगर टेस्ट पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित है:
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि टू फिंगर टेस्ट इस पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित है कि यौन रूप से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नहीं हो सकता। मानलो की कोई महिला शादीशुदा है और यौन रूप से सक्रीय है अपने पति के साथ, तो जब ऐसी महिला का टू फिंगर टेस्ट किया जायेगा तो वह महिला इस टेस्ट में फेल हो जाएगी।
- इस टेस्ट के आधार पर यह कहना गलत नहीं है की यौन रूप से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नहीं हो सकता है। ऐसे में दुष्कर्म करने वाला आरोपी कभी भी सलाखों के पीछे नहीं पहुंच पायेगा।
- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा की, पीड़ित के यौन यौन रूप से सक्रिय पिछले आकड़ो के साक्ष्य के लिए टू-फिंगर टेस्ट महत्वपूर्ण नहीं है। महिलाओं का गुप्तांग संबंधी टेस्ट उनकी गरिमा पर अटैक है। यह नहीं कहा जा सकता कि यौन संबंधों के लिहाज से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंड ऐक्ट में साफ कहा किया था कि पीड़िता के कैरेक्टर का साक्ष्य या उसका किसी शख्स के साथ पिछले सेक्सुअल एक्सपीरियंस का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन हिंसा के मामलों में स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए 19 मार्च 2014 को दिशा-निर्देश जारी किए थे जिसमें ‘टू फिंगर’ टेस्ट को प्रतिबंधित किया गया था। लेकिन कई राज्यों द्वारा इसकी पालन नहीं करी गई।
टू फिंगर टेस्ट महिलाओं की गरिमा के खिलाफ:
- सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देते हुए इस अनुचित प्रथा को महिलाओं की गरिमा के खिलाफ बताया। जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुष्कर्म पीड़िताओं की जांच के लिए ‘टू-फिंगर टेस्ट’ की प्रथा आज भी हमारे समाज में प्रचलित है।
- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और स्वास्थ्य सचिवों से यह सुनिश्चित करने को कहें कि ‘टू-फिंगर’ टेस्ट अब नहीं हो।
- जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया । जिसमे झारखंड सरकार की याचिका पर बलात्कार और हत्या के दोषी शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय नामक व्यक्ति को बरी कर दिया गया था। इस पीठ ने कहा कि, 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में ही इस टेस्ट को महिला की गरिमा और निजता का उल्लंघन करार दिया था।
- दरअसल, दरिंदगी का शिकार हुई महिला से टेस्ट के नाम पर एक ऐसी प्रथा चल निकली थी, जो पीड़िता को दोबारा भीतर से झकझोर देती थी। ये बात कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा की टू-फिंगर टेस्ट एक दुष्कर्म पीड़िता के साथ दुबारा दुष्कर्म करने जैसा ही है, क्यूंकि यह टेस्ट है ही कुछ ऐसा ।
टू-फिंगर टेस्ट का वैज्ञानिक आधार:
- सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं से संबंधित 'टू-फिंगर' टेस्ट पर सख्त नाराजगी जताते हुए कहा कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इससे यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएं फिर से पीड़ित होती हैं और यह उनकी गरिमा पर एक कुठाराघात है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कहना पितृसत्तात्मक और लैंगिकतावादी है कि किसी महिला के अपने साथ बलात्कार होने की बात पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह सेक्सुअली एक्टिव है। इसके साथ ही यह कहा की सेक्सुअली एक्टिव महिला अपने साथ हुए दुष्कर्म को इस टेस्ट के माध्यम से हमेशा ही फ़ैल होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बलात्कार के मामलों में टू-फिंगर टेस्ट करने वाले व्यक्ति कदाचार के दोषी होंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों में अध्ययन सामग्री से इस टेस्ट को हटाने के भी निर्देश जारी किए।
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