IPC 1860 की धारा 498A और घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के लिए नए दिशानिर्देश
जैसे ही पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद होता है तो ऐसे मामले में पत्नी सबसे पहले भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498 ए के तहत F.I.R दर्ज कराती है। यही वो धारा है जो भारत में लगभग हर महिला, जो पढ़ी लिखी होती है, उन्हें पता होता है। धारा 498 ए आपराधिक कानून की गति निर्धारित करती है। इस धारा के अंतर्गत F.I.R दर्ज कराना इतना आसान हो गया है कि इस धारा का दुरुपयोग बढ़ गया है। भारत की अदालतें इस बात से भी सहमत हैं कि 498 ए के तहत निर्दोष व्यक्तियों पर झूठे भी आरोप लगाए जा रहे हैं। हालांकि, ऐसे भी कई वास्तविक मामले हैं जहां महिलाएं अपने पति या उनके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता हुई हो, लेकिन इन झूठे मामलो की वजह से इन सच्चे मामलो पर भी कोर्ट को संदेह हो ही जाता हैं।
धारा 498a और domestic violence के इन झूठे आरोपों के चलते कई केसो में अदालते उनके पति और परिवार के पक्ष में फैसला सुना देती हैं। गिरफ्तारी से सम्बंधित सर्वोच्च न्यायालय ने 2014 में एक landmark judgement दिया। अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के मामले में कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पत्नी अपने पति या रिश्तेदारों के खिलाफ धारा 125 के तहत शिकायत दर्ज करना चाहती हैं तो पहले धारा 41 ए के तहत शिकायत दर्ज करनी होगी। साथ ही पीड़िता की चोट गंभीर होने पर ही पुलिस पति और उसके परिवार को गिरफ्तार कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कई चीजें बदली हैं। 13 जून को उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी एक ऐतिहासिक निर्णय पारित किया जो 498 ए और domestic violence केस के लिए दिशानिर्देश जारी करके एक कदम आगे ले गया।
मुकेश बंसल बनाम यूपी राज्य और दूसरा, 13 जून 2022
- इस केस में हुआ ये था की पत्नी द्वारा अपने पति और उनके ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता और दहेज निषेध अधिनियम के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पत्नी ने दावा किया कि उस पर अधिक दहेज के लिए दबाव डाला जा रहा था, उसके ससुर और देवर ने उससे यौन संबंध बनाने की मांग की, उसे उसके पति ने बाथरूम में बंद कर दिया, उन्होंने उस पर गर्भपात करने का दबाव बनाया और उसके पति ने उसके साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का प्रयास किया। अदालत ने पत्नी द्वारा लगाए गए आरोपों की प्रकृति और भाषा की निंदा करते हुए कहा कि उसने इस घटना को कई गुना बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और "अदालत के सामने उल्टी कर दी"।
- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस केस की सुनवाई के दौरान कहा कि आजकल वैवाहिक कलह के मामलों में ऐसे घिनौने आरोप लगाकर FIR दर्ज करना एक प्रचलित प्रथा है। और यह कहा की आजकल ऐसे झूठे केस होना बहुत आम बात हो गई है और धारा 498 ए के तहत इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं।
- इस केस में जांच के दौरान महिला ने मेडिकल जांच से इनकार कर दिया क्योंकि वह शारीरिक रूप से आहत नहीं थी। महिला के इस बयान को अदालत ने अपने आवेदन में स्पष्ट किया। इसके साथ यह भी कहा कि गर्दन पर चोट के निशान के अलावा, जिससे संकेत मिलता है कि पति ने उसका गला घोंटने की कोशिश की, उसे कोई गंभीर चोट नहीं आई।
- पूरी जाँच के दौरान अदालत ने पाया कि FIR जहर से भरी एक आभासी अफवाह के अलावा और कुछ नहीं थी। और महिला कोई दस्तावेजी सबूत पेश करने में असमर्थ थी।
- अब माननीय न्यायालयों ने भी यह मान लिया है कि अधिकतर केस में पत्नी अपने पति के परिवार पर झूठे आरोप लगाकर धारा 498ए अंतर्गत केस दर्ज कराकर इसका दुरूपयोग किया जा रहा है।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 354 तब लागू होती है जब अपराध किसी महिला पर पुरुष द्वारा किया गया हो। यह धारा किसी महिला के शील भंग करने के इरादे से उस पर हमले या आपराधिक बल के बारे में बात करता है। पत्नी द्वारा अपने ससुर और देवर पर आमतौर पर इस तरह के आरोप लगाए जाते हैं। और कई ऐसे केस भी है जिनमे कभी-कभी उन पर रेप का आरोप लगाया जाता है। कोर्ट ने माना की ऐसे कई वास्तविक मामले भी हैं, लेकिन झूठे आरोपों वाले मामले वास्तविक मामलों की तुलना में बहुत अधिक हैं। इसके साथ ही कोर्ट यह नहीं मानती है कि समाज के अधिकांश पुरुषों में इतने निम्न नैतिक मूल्य हैं।
Section 498A के लिए दिशानिर्देश: इस धारा के दुरूपयोग को रोकने के लिए कोर्ट द्वारा 4 दिशानिर्देश दिए गए हैं:
- Section 498A की F.I.R के बाद, 2 महीने तक पति और उसके परिवार वालो की कोई गिरफ्तारी नहीं होगी। 2 महीने की इस अवधि को कूलिंग पीरियड कहा गया है। FIR दर्ज करने के बाद, दो महीने की "कूलिंग-पीरियड" समाप्त किए बिना कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। इस कूलिंग-पीरियड के दौरान, मामला प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति को भेजा जा सकता है। यह 2 महीने जो कूलिंग पीरियड होगा उसमे किसकी गिरफ्तारी न करने का एक पथप्रदर्शक निर्णय दिया। हालांकि अगर महिला पर कोई चोट या शारीरिक शोषण होता है तो इसमे गिरफ्तार किया जा सकता है।
- जैसे ही F.I.R दर्ज होगी उसके बाद यह जानकारी परिवार कल्याण समिति को भेजी जाएगी। समिति स्थिति और F.I.R का विश्लेषण करेगी और 2 महीने में तय करेगी कि क्या F.I.R सही है या झूठी है और गलत है।
- धारा 498A IPC और ऊपर उल्लिखित अन्य संबद्ध धाराओं के तहत प्रत्येक शिकायत या आवेदन, संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा तुरंत Family Welfare Committee को भेजा जाना चाहिए। उक्त शिकायत या प्राथमिकी प्राप्त होने के बाद, समिति चुनाव लड़ने वाले पक्षों को उनके चार वरिष्ठ बुजुर्गों के साथ व्यक्तिगत बातचीत के लिए बुलाएगी और FIR दर्ज होने से दो महीने की अवधि के भीतर उनके बीच के मुद्दे/शंकाओं को दूर करने का प्रयास करेगी।
- परिवार कल्याण समिति में दोनों परिवारों के (पति-पत्नी) 4 वरिष्ठ सदस्य होंगे। यह कमेटी बयान दर्ज करेगी और 2 महीने तक दोनों पक्षों की कहानी की जांच करेगी। दोनों पक्षों को 2 महीने का समय देकर ये देखेंगे की उनके बीच सुलह की कोई उम्मीद है या नहीं। फिर परिवार कल्याण समिति एक रिपोर्ट बनाकर उसे वापस थाने को भेजेंगे।
- इन तरीके के केस की जांच एक प्रशिक्षित जांच अधिकारी (आईओ) द्वारा की जाएगी। जांच अधिकारी को कम से कम एक सप्ताह के लिए ऐसे मामलों की जांच करने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यदि ऐसी स्थिति जिसमे कभी-कभी जब अधिकारी प्रशिक्षित नहीं होता है, तो उसमे वे सीधे आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं।
FWC में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:
- जिले के मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या पांच साल तक अभ्यास करने वाले युवा वकील या पांचवीं वर्ष के वरिष्ठतम छात्र, सरकारी लॉ कॉलेज या राज्य विश्वविद्यालय या अच्छा अकादमिक ट्रैक रिकॉर्ड रखने वाले NLU और जो सार्वजनिक उत्साही युवा हैं।
- उस जिले के अच्छी तरह से प्रशंसित और मान्यता प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता जिनके पास स्वच्छ पूर्ववृत्त है।
- सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी जो या उसके आस-पास के जिले में रह रहे हैं, जो कार्यवाही के उद्देश्य के लिए समय दे सकते हैं।
- जिले के वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां।
- FWC के सदस्य को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा।
धारा 41A CrPC
- 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य के फैसले में कहा की 41A CrPC का नोटिस भेजना आवश्यक है। 41A के नोटिस का इस्तेमाल व्यक्ति को उसकी संभावित गिरफ्तारी के बारे में सूचित करना आवश्यक है ताकि वह आगे आकर मामले में अपना बचाव व् अपनी बात रख सके। यदि अधिसूचित व्यक्ति जांच के दौरान उसकी अनुपालन नहीं करता है, तो उस व्यक्ति की गिरफ्तारी की जा सकती है।
- यदि कोई पुलिस अधिकारी निर्णय का पालन नहीं करता है, तो उसे न्यायालय की अवमानना के लिए दंडित किया जाएगा। साथ ही अगर न्यायिक अधिकारी फैसले का पालन नहीं करते हैं तो उन्हें भी इसके लिए दंडित कर रिमांड पर लिया जाएगा।
निष्कर्ष
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने धारा 498 ए के दुरुपयोग को रोकने के लिए उपर्युक्त 4 दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशानिर्देश अदालतों द्वारा इस अहसास के साथ आते हैं कि कई महिलाएं अपने पति के परिवारों के खिलाफ झूठे आरोप लगाती हैं।
- इस प्रकार के आरोपों में समान पैटर्न और कहानियां होती हैं जिससे अदालतों को इन आरोपों की साख पर संदेह होता है। इन दिशा-निर्देशों के आने से पति और उसके परिवार पर हो रहे अत्याचारों पर विराम लगने की उम्मीद है।
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