स्कूल में बच्चों के साथ मारपीट को लेकर भारतीय कानून
पूरी दुनिया में ऐसे 117 देश हैं जहां पर स्कूल में शारीरिक दंड देने पर प्रतिबंध किया गया है। हालांकि ऐसे भी कई देश है जहाँ पर माता पिता अपने बच्चों को शारीरिक दंड दे सकते है। इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, सभी अफ्रीकी और एशियाई देशों के सभी राज्य शामिल है।
भारत में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बच्चों को शारीरिक दंड या प्रताड़ना के मामले को जल्द से जल्द निपटने की बात कई बार कहि है। इसमें शारीरिक दंड निगरानी सेल(सीपीएमसी) के गठन का भी सुझाव दिया गया है, जो शारीरिक दंड की घटना की 48 घंटे के अंदर सुनवाई करेगा। महिला और बाल विकास मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, स्कूल में टीचर्स कोयह लिखित में यह देना होगा कि वे स्कूल में ऐसी किसी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे जो शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न या भेदभाव से संबंधित हो।
हमारे भारत के कुछ लोग ये मानते हैं कि अगर वे बच्चे को पीटें तो बच्चा उनसे डरेगा और अपने काम पर ध्यान देगा और सही रास्ते पर चलता रहेगा। लेकिन इसके उलट, पिटाई के शिकार बच्चों के मन में जो भी आता है वो वही करते हैं और कोशिश करते हैं अपने माता - पिता व शिक्षकों से बातों को छुपाने लगते हैं।
हम आये दिन अखबारों में ऐसी खबरे पढ़ते है जिसमे होमवर्क पूरा ना करने पर टीचर बच्चे की पिटाई कर देते है, या टीचर ने 12 साल की बच्ची को 168 थप्पड़ मारे और भी कई खबरे। ये ख़बर आपने भी अख़बारों में पढ़ी होगी, टीवी पर देखी होगी। एक बार मध्य प्रदेश में भी बच्ची के साथ मारपीट का मामला सामने आया। जिसमे बोर्डिंग स्कूल की टीचर ने क्लास की दूसरी छात्राओं से बच्ची को थप्पड़ मारने को कहा। ऐसा एक दिन नहीं बल्कि पूरे छह दिन तक बच्ची को रोज़ थप्पड़ मारे गए, पूरी क्लास के सामने अपमानित किया गया। ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया की बच्ची होमवर्क नहीं कर पाई थी। हलाकि ऐसा पहली बार नहीं है, कि स्कूल में बच्चों के साथ मार-पीट की गई हो। राजस्थान के चूरू जिले में एक होम वर्क ना करने पर एक टीचर ने बच्चे की इतनी बेरहमी से पिटाई कर दी कि उसकी मौत हो गई। ऐसे कुछ मामले है जो मीडिया में आ जाते है, इसलिए थोड़ी चर्चा भी हो जाती है, लेकिन हमारे देश में बच्चों पर इस तरीके से हाथ उठाना, और ये इतना बड़ा मुद्दा है ही नहीं, कि इस पर बहस की जाए, या इस बारे में सोचा भी जाए।
अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए बच्चों की पिटाई करना या उन्हें सजा देना कहाँ तक सही हैं। ज़्यादातर बच्चों को छोटी-बड़ी ग़लतियों पर घर में या स्कूल में ना जाने कितनी बार मार पड़ती है। इसलिए जब हम ऐसी खबर सुनते है, तो शायद हमें बहुत ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। क्यूंकि हमें लगता है कि एक थप्पड़ ही तो मारा है और इससे क्या बिगड़ जाएगा? ये ठीक है कि एक थप्पड़ से, या एक स्केल से शायद बच्चे के शरीर को ज़्यादा चोट ना लगे, लेकिन ये थप्पड़ उन्हें मानसिक रूप से गहरा सदमा पहुंचाते हैं।
मनोवैज्ञानिक भी ये कहते हैं कि जिन बच्चों को स्कूल या घर में मारा पीटा जाता है उनकी गलती पर बजाये इसके की उसे प्यार से समझाए। तो वो बच्चे मानसिक रूप से परेशान रहने लग जाते हैं। ऐसे बच्चे या तो बिल्कुल चुप रहने लगते हैं, या डिप्रेशन में चले जाते हैं या हिंसक हो जाते हैं।
राइट टु एजुकेशन एक्ट:
- राइट टु एजुकेशन एक्ट में भी कॉरपोरल पनिशमेंट का जिक्र किया हुआ है। इस एक्ट की धारा 17 में यह प्रावधान है कि अगर कोई टीचर किसी स्टूडेंट को मानसिक या शारीरिक तौर पर प्रताड़ित करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। इस एक्ट में Corporal Punishment को strictly prohibit किया गया है।
- स्कूल में यदि टीचर किसी बच्चे को कॉरपोरल पनिशमेंट (शारीरिक सजा) को गैरकानूनी और असंवैधानिक करार किया जा चूका है। नैशनल कमिशन फॉर प्रोटक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने भी कॉरपोरल पनिशमेंट को रोकने के लिए गाइडलाइंस जारी की हुई हैं।
कॉरपोरल पनिशमेंट क्या है?
- जब कोई माता पिता या स्कूल की टीचर किसी स्टूडेंट को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करता है तो ये कॉरपोरल पनिशमेंट (Corporal Punishment) कहलाता है। बच्चे को किसी खास पोजिशन में खड़ा रखना, बेंच पर खड़ा करना, मुर्गा बनाना, कान पकड़कर खड़ा रखना, गलत तरीके से पुकारना भी इसी दायरे में आता है।
- बच्चे को किसी भी तरह से शारीरिक या मानसिक तौर पर नुकसान पहुंचता है तो वह कॉरपोरल पनिशनमेंट माना जाएगा। इसके तहत बच्चों के साथ की जाने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को कॉरपोरल पनिशमेंट माना गया है।इसके खिआफ़ एनसीपीसीआर ने इसे रोकने के लिए गाइडलाइंस बनाई थी। केंद्र सरकार ने तमाम स्कूलों को उसे लागू करने के लिए सर्कुलर जारी किया हुआ है।
बच्चों की पिटाई के मामलों में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम 2015 लागू किया। लेकिन इसके अलावा भी देश में कई कानून और गाइडलाइनंस हैं जो बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। देश में स्कूलों में मिलने वाली प्रताड़ना से तंग आकर बच्चों के आत्महत्या के मामले बढ़े हैं। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम-2015 लागू किया है।
जूवनाइल जस्टिल एक्ट में बच्चो के साथ मारपीट से सम्बंधित धाराएँ और सजा:
- यदि शारीरिक दंड या मानसिक प्रताड़ना होती है तो जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 82 के तहत जेल और जुर्माने का प्रावधान है। इसी अधिनियम की धारा 75 में कहा गया है कि बच्चे की देखभाल और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूल की होगी।
- हमने ऐसे कई वीडियो देखें है, जहां एक सौतेले पिता ने अपने 3 साल के मासूम बेटे को उलटा लटकाकर डेढ़ घंटे तक बेल्ट और चप्पलों से पीटा, या स्कूल में होमवर्क पूरा न करने पर टीचर उसे शारीरिक दंड देते है। अगर माता पिता या टीचर बच्चे को पीटते हैं तो उनके खिलाफ जूवनाइल जस्टिस एक्ट के तहत पुलिस से शिकायत की जा सकती है।
- जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा-23 कहती है कि जिसके पास भी बच्चे का चार्ज होगा, उसका उस पर कंट्रोल होगा। इस दौरान बच्चे को अगर कोई पीटता है या नुकसान पहुंचाता है, या उसकी लापरवाही से बच्चे की प्रताड़ना होती है या फिर किसी भी तरह की लापरवाही से बच्चे को मानसिक या शारीरिक नुकसान होता है तो ऐसे शख्स जिसके पास वह बच्चा है उसे दोषी पाए जाने पर सजा होती है। इस मामले में अधिकतम 6 महीने कैद की सजा का प्रावधान है।
- जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा-2 इस बात को परिभाषित करता है कि बच्चे का गार्जियन कौन है। इसके तहत बताया गया है कि जो नेचुरल गार्जियन है वह गार्जियन होता है या फिर जिसके पास बच्चे की कस्टडी होती है वह उस वक्त गार्जियन के रोल में होता है। उसकी ड्यूटी होती है कि वह बच्चे को प्रोटेक्ट करे और नुकसान न पहुंचाए। 18 साल से कम उम्र में नाबालिग बच्चा (लड़का और लड़की) ही कहा जाएगा।
- जूवनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 23 में कहा गया है कि अगर बच्चा किसी की देखरेख में है और उसे मानसिक या शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है तो दोषियों पर जुर्माना और 6 महीने तक की कैद हो सकती है। अगर किसी बच्चे को स्कूल में प्रताड़ित किया जाता है तो पैरंट्स स्कूल प्रशासन के अलावा, नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स और राज्य सरकार के एजुकेशन डिपार्टमेंट में शिकायत कर सकते हैं। पुलिस में भी रिपोर्ट दर्ज कराई जा सकती है।
- धारा 82 (1) के तहत, यदि माता पिता या टीचर स्टूडेंट को फिजिकल पनिशमेंट देते है तो इन्हें 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है। और यदि ऐसा अपराध करते हुए दुबारा पकडे जाते है तो तीन महीने की जेल भी हो सकती है। धारा 82(2) के तहत यदि टीचर कॉर्पोरल पनिशमेंट देते है तो ऐसे टीचर को सस्पेंड किया जा सकता है। वहीं धारा 82(3) के तहत अगर टीचर या माता पिता जांच में सहयोग नहीं करते है तो तीन माहीने जेल हो सकती है। इसके साथ ही स्कूल पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा।
IPC की धारा:
- स्कूल में बच्चों की पिटाई के मामले में मां-बाप पुलिस में भी शिकायत कर सकते हैं। IPC की धारा 323 (मारपीट), 324 (जख्मी करना), 325 (गंभीर जख्म पहुंचाना) के तहत भी मामला दर्ज हो सकता है।
- IPC की धारा- 325 तहत आरोप सिद्ध होने पर 7 साल तक की जेल हो सकती है। अगर बच्चे पर इस तरीके से मारपीट की जाये जिससे बच्चे की जान को खतरा हो सकता है तो फिर धारा- 307 लगाई जा है जिसके अंतर्गत अधिकतम 10 साल या फिर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
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