पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी में अंतर (Difference between Police Custody and Judicial Custody)
पुलिस कस्टडी तथा ज्यूडिशियल कस्टडी दोनों में संदिग्ध व्यक्ति को कानून की हिरासत में रखा जाता है। इन दोनों का एक ही उद्येश्य है समाज में अपराध को कम करना। इस blog के माध्यम से जानते हैं कि इन दोनों शब्दों में क्या अंतर है।
पुलिस कस्टडी (Police Custody):
- जब पुलिस को किसी व्यक्ति के बारे में सूचना या शिकायत / रिपोर्ट प्राप्त होती है, तो सम्बंधित पुलिस अधिकारी अपराध में शामिल संदिग्ध को गिरफ्तार कर लेती है जिससे कि उस व्यक्ति को आगे भी अपराध करने से रोका जा सके। जब इस प्रकार का संदिग्ध व्यक्ति पुलिस हवालात में बंद कर दिया जाता है तो उसे पुलिस कस्टडी कहा जाता है।
- पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये और हिरासत में रखे गए प्रत्येक व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर निकटतम मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए, जिसमें गिरफ्तारी के स्थान से लेकर मजिस्ट्रेट के कोर्ट तक के सफर का आवश्यक समय शामिल नहीं होगा। मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे की अवधि से अधिक हिरासत में नहीं रखा जा सकता है।
- इस मामले में शामिल पुलिस अधिकारी का यह दायित्व होता है कि वह संदिग्ध व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर उचित न्यायाधीश के समक्ष पेश करे और उसके खिलाफ सबूत पेश करे। यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि इस 24 घंटे के समय में उस समय को नहीं जोड़ा जाता है जो कि संदिग्ध को पुलिस स्टेशन से कोर्ट लाने में खर्च होता है।
- पुलिस हिरासत जब एक पुलिस अधिकारी एक व्यक्ति को संज्ञेय अपराध करने के संदेह में गिरफ्तार करता है, तो गिरफ्तार व्यक्ति को हिरासत में लिया गया बताया जाता है। पुलिस हिरासत का उद्देश्य अपराध के बारे में अधिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए संदिग्ध से पूछताछ करना है, और सबूतों को नष्ट करने से रोकना और गवाहों को आरोपी द्वारा डरा-धमकाकर मामले को प्रभावित करने से बचाना है।
ज्यूडिशियल कस्टडी (Judicial Custody):
- ज्यूडिशियल या न्यायिक कस्टडी का मतलब है कि व्यक्ति को संबंधित मजिस्ट्रेट के आदेश पर जेल में रखा जायेगा। ध्यान रहे कि पुलिस कस्टडी में व्यक्ति को जेल में नहीं रखा जाता है। आपने सुना होगा कि कोर्ट ने आरोपी व्यक्ति को 14 दिन की ज्यूडिशियल हिरासत में भेज दिया है।
- न्यायिक हिरासत जब पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाता है तो उसके पास दो विकल्प होते हैं, आरोपी को पुलिस हिरासत में या न्यायिक हिरासत में भेजना।
- यह सीआरपीसी की धारा 167(2) के प्रावधानों से स्पष्ट है कि मजिस्ट्रेट को जो उचित लगता है उस प्रकार की कस्टडी वह आरोपी के लिए मुकर्रर कर सकता है।
- पुलिस हिरासत में, पुलिस के पास आरोपी की शारीरिक हिरासत होगी। इसलिए जब पुलिस हिरासत में भेजा जायेगा, तो आरोपी को पुलिस स्टेशन में बंद कर दिया जाएगा। उस परिदृश्य में, पुलिस को पूछताछ के लिए आरोपी तक हर समय पहुंच होगी।
- न्यायिक हिरासत में, अभियुक्त मजिस्ट्रेट की हिरासत में होगा और उसे जेल भेजा जाएगा। न्यायिक हिरासत में रखे गये आरोपी से पूछताछ के लिए पुलिस को संबंधित मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी।
- मजिस्ट्रेट की अनुमति से ऐसी हिरासत के दौरान पुलिस द्वारा पूछताछ, हिरासत की प्रकृति को बदल नहीं सकती है। धारा 167 के तहत यह आवश्यक नहीं कि सभी परिस्थितियों में गिरफ्तारी एक पुलिस अधिकारी द्वारा ही की जानी चाहिए, किसी और द्वारा नहीं तथा केस डायरी की प्रविष्टियां का रिकॉर्ड आवश्यक रूप से होना ही चाहिए।
- इसलिए, हिरासत निश्चित तौर पर एक सक्षम अधिकारी या गिरफ्तारी का अधिकार प्राप्त अधिकारी द्वारा इस मान्यता कि 'आरोपी संबंधित कानून के तहत दंडनीय अपराध का दोषी हो सकता है', पर विचार करते हुए गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को सक्षम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने पर ही संभव होगा, बावजूद इसके कि जिस अधिकारी ने गिरफ्तारी की है वह सही अर्थों में पुलिस अधिकारी नहीं है।
पुलिस कस्टडी और ज्यूडिशियल कस्टडी के बीच अंतर:
- पुलिस कस्टडी में व्यक्ति को "पुलिस थाने" में पुलिस द्वारा की गयी कार्यवाही के कारण रखा जाता है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में आरोपी को "जेल" में रखा जाता है।
- पुलिस कस्टडी तब शुरू होती है जब पुलिस अधिकारी किसी संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी तब शुरू होती है जब न्यायाधीश आरोपी को पुलिस कस्टडी से जेल भेज देता है।
- पुलिस कस्टडी में रखे गए आरोपी व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर किसी मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना पड़ता है लेकिन ज्यूडिशियल कस्टडी में रखे गए व्यक्ति को तब तक जेल में रखा जाता है जब तक कि उसके खिलाफ मामला अदालत में चलता है या जब तक अदालत उसे जमानत पर रिहा नहीं कर देती है।
- पुलिस कस्टडी में पुलिस आरोपी व्यक्ति को मार पीट सकती है ताकि वह अपना अपराध कबूल कर ले। लेकिन यदि कोई व्यक्ति सीधे कोर्ट में हाजिर हो जाता है तो उसे सीधे जेल भेज दिया जाता है और वह पुलिस की पिटाई से बच जाता है। यदि पुलिस को किसी प्रकार की पूछताछ करनी हो तो सबसे पहले न्यायाधीश से आज्ञा लेनी पड़ती है। हालाँकि उसके जेल में रहते हुए भी पुलिस उसके खिलाफ सबूत जुटाती रहती है ताकि सबूतों को जज के सामने पेश करके आरोपी को अपराधी साबित करके ज्यादा से ज्यादा सजा दिलाई जाए।
- पुलिस कस्टडी की अधिकतम अवधि 24 घंटे की होती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में ऐसी कोई अवधि नहीं होती है।
- जो जमानत पर रिहा अपराधी होते हैं वैसे मामलों में आरोपी को पुलिस कस्टडी में नहीं भेजा जाता और पुलिस कस्टडी तब तक ही रहती है जब तक कि पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है। एक बार चार्जशीट दाखिल हो जाने पर पुलिस के पास आरोपी को हिरासत में रखने का कोई कारण नहीं बचता है।
- पुलिस कस्टडी, पुलिस द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के अंतर्गत होता है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी में गिरफ्तार व्यक्ति न्यायाधीश की सुरक्षा के अंतर्गत होता है।
- पुलिस कस्टडी किसी भी अपराध जैसे हत्या,लूट, अपहरण, धमकी, चोरी इत्यादि के लिए की जाती है जबकि ज्यूडिशियल कस्टडी को पुलिस कस्टडी वाले अपराधों के अलावा कोर्ट की अवहेलना, जमानत ख़ारिज होने जैसे केसों में लागू किया जाता है।
- पुलिस कस्टडी में आरोपी को पुलिस लॉकअप में रखा जाता है जबकि जुडिशल कस्टडी में कोर्ट की कस्टडी यानी जेल में रखा जाता है। किसी संज्ञेय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने के बाद पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। गिरफ्तारी इस उद्देश्य से किया जाता है कि साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ न हो या गवाहों को धमकाया नहीं जाए।
- किसी भी अपराध जैसे हत्या, लूटपाट, अपहरण, चोरी, धमकी आदि के मामले में पुलिस कस्टडी होती है जबकि कोर्ट की अवहेलना और अन्य मामलों में जुडिशल कस्टडी होती है।
- अगर पुलिस किसी व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर देती है तो फिर उस व्यक्ति को पुलिस कस्टडी में नहीं रखा जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति की जमानत खारिज भी हो जाती है तो उसको पुलिस हिरासत में नहीं दिया जा सकता है।
कैसे मिलती है जुडिशियल कस्टडी?
- जब पुलिस संज्ञेय अपराध के शक में किसी को गिरफ्तार करती है, तो वह पुलिस कस्टडी में होता है। किसी को बिना कोर्ट की इजाजत के पुलिस कस्टडी में 24 घंटे से ज्यादा समय तक नहीं रखा जा सकता।
- हिरासत या गिरफ्तार किए गए हर व्यक्ति को 24 घंटों के भीतर नजदीकी मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है।
- जब पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार कर पेश करती है तो अदालत के सामने दो विकल्प होते हैं- या तो उसे पुलिस कस्टडी में भेजें या जुडिशियल कस्टडी में।
- पुलिस कस्टडी में रिमांड दी जाती है तो आरोपी को पुलिस थाने के लॉक-अप में रखा जाता है। ऐसे स्थिति में पुलिस के पास आरोपी से किसी भी वक्त पूछताछ की छूट होती है।
- जुडिशियल कस्टडी में आरोपी को मजिस्ट्रेट की कस्टडी मिलती है और उसे जेल भेज दिया जाता है। पुलिस संबंधित मजिस्ट्रेट से इजाजत लिए बिना ऐसे आरोपी से पूछताछ नहीं कर सकती।
- पहली कस्टडी की समयसीमा 15 दिन है। मजिस्ट्रेट के पास अधिकार होते हैं कि वह कस्टडी के प्रकार में बदलाव कर सकते हैं, मगर समय में नहीं। अगर 15 दिन से पहले कस्टडी बदलती है तो दूसरी कस्टडी में बिताए गए दिन घटा दिए जाते हैं।
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