डॉक्टर ने किया मरीज का गलत इलाज, तो कौन सी धारा का अपराध होगा?
अगर डॉक्टर इलाज में लापरवाही करता है और मरीज की मौत हो जाती है या फिर उसको गंभीर समस्या पैदा हो जाती है, तो परिजनों को डॉक्टर से मारपीट करने की जरूरत नहीं है। ऐसे डॉक्टर को कानून के दायरे में रहकर सबक सिखाया जा सकता है। पीड़ित व्यक्ति डॉक्टर, हॉस्पिटल, नर्सिंग होम और हेल्थ सेंटर के खिलाफ केस कर सकते हैं। इस ब्लॉग में आप जानेंगे की यदि कोई डॉक्टर इलाज में लापरवाही करता है तो उसके खिलाफ कोनसी धारा के अंतर्गत केस रजिस्टर किया जा सकता है और कितनी सजा दिलाई जा सकती है।
सही समय पर इलाज और वो भी सही इलाज पाना आज के समय की मूल आवश्यकताओं में से एक है। कभी-कभी देखने में यह आता है कि डॉक्टर की लापरवाही से गलत ऑपरेशन कर दिया जाता है या फिर कुछ गलत दवाइयां दे दी जाती है जिससे मरीज को स्थाई रूप से नुकसान हो जाता है। कई दफा मरीजों की मौत भी हो जाती है। ऐसी खबरे अपने आये दिन अखबारों में पढ़ी होगी जिसमे ये देखने को मिलता है की मरीज दिखने जाते है आंख और उनके पेट का ऑपरेशन कर दिया जाता है या ऑपरेशन दौरान मरीज के पेट में कोई कपडा छोड़ देते है। ये सब लापरवाही के ही उदाहरण है। ऐसी लापरवाही से कई बार तो मरीज की जान तक चली जाती है।
क्रिमिनल और सिविल दोनों केस कर सकते है:
यदि कोई डॉक्टर इलाज में लापरवाही करता है तो आप उसके खिलाफ आपराधिक (क्रिमिनल) केस कर सकते हैं और डॉक्टर को जेल हो सकती है। यदि आप सिविल केस करते हैं, तो कोर्ट आपको मोटा मुआवजा दिला सकता है। सिविल मामले में कोर्ट पीड़ित पक्ष को ज्यादा से ज्यादा मुआवजा दिलाने की कोशिश करता है, ताकि डॉक्टरों के अंदर अपनी ड्यूटी के प्रति लापरवाही बरतने पर डर पैदा हो सके।
डॉक्टर लापरवाही करे तो क्या है कानूनी प्रवधान?
- भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-A, 337 और 338 के तहत प्रावधान किया गया है की यदि कोई डॉक्टर मरीज का गलत इलाज करता है तो कितनी सजा हो सकती है। इन धाराओं के तहत डॉक्टर को छह महीने से लेकर दो साल तक की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
- हलाकि इसमें डॉक्टर का कोई आशय नहीं होता है कि मरीज को किसी प्रकार का कोई नुकसानी हो लेकिन कई बार डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी को ठीक तरह से नहीं निभाता है। इस कारण मरीज की मौत हो जाती है या मरीज को किसी तरह की कोई गंभीर नुकसान हो जाता है। जिससे उसके शरीर में स्थाई अपंगता आ जाती है, तब कानून डॉक्टर के ऐसे काम को अपराध की श्रेणी में रखता है।
धारा 337 के अंतर्गत अपराध:
- हालांकि इस धारा में डॉक्टर जैसे कोई शब्द का कहीं उल्लेख नहीं है। लेकिन यह सभी तरह की लापरवाही के मामले में लागू होती है। अगर डॉक्टर की लापरवाही से मरीज को किसी तरह का नुकसान होता है जिसमें उसकी मौत नहीं होती है लेकिन शरीर को बहुत नुकसान होता है, तब ऐसे नुकसान के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार माना जाता है।
- जैसे ऑपरेशन में किसी तरह का कोई कॉम्प्लिकेशन आ जाना और ऐसा काम कॉम्प्लिकेशन डॉक्टर की लापरवाही के कारण आया है, गलत दवाइयों के कारण आया है। डॉक्टर की लापरवाही अपराध की श्रेणी में आती है, ऐसी लापरवाही को भारतीय दंड संहिता की धारा 337 में उल्लेखित किया गया है। जिसमे डॉक्टर को 6 महीने का कारावास हो सकता है।
धारा 338 का अपराध:
- किसी आदमी के लापरवाही से किए गए काम की वजह से सामने वाले को गंभीर नुकसान होने पर धारा 338 लागू होती है। कभी-कभी लापरवाही इतनी बड़ी होती है कि इससे सामने वाले व्यक्ति को बहुत ज्यादा नुकसान हो जाता है। किसी भी लापरवाही से अगर किसी को गंभीर प्रकार की चोट पहुंचती है और स्थाई अपंगता जैसी स्थिति बन जाती है, तब यह धारा लागू होगी। डॉक्टर के मामले में भी धारा लागू हो सकती है।
- अगर डॉक्टर अपने इलाज में किसी भी तरह की कोई लापरवाही बरतता है और उसकी ऐसी लापरवाही की वजह से मरीज को स्थाई रूप से कोई चोट पहुंच जाती है, वे स्थाई रूप से अपंग हो जाता है जिससे उसका जीवन जीना दूभर हो जाए तब डॉक्टर को इस धारा के अंतर्गत आरोपी बनाया जाता है। इस धारा के अनुसार 2 वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है।
धारा 304A का अपराध:
जब कोई डॉक्टर की लापरवाही वजह से किसी मरीज की जान चली है तो धारा 304A का अपराध होता है। जिसके अंतर्गत डॉक्टर को 2 साल तक की सजा हो सकती है।
केस: बलराम प्रसाद बनाम कुणाल साहा 2013: कोलकाता के एएमआरआई हॉस्पिटल के डॉक्टरों को मरीज को देने पड़े 6 करोड़ 8 लाख रुपये
- वर्ष 1998 में कुणाल साहा अपनी पत्नी अनुराधा के साथ के घूमने के लिए कोलकाता आये थे। कोलकाता आने के बाद उनकी पत्नी एक दिन बहुत तेज बुखार आया। जिसके बाद कुणाल होनी पत्नी को लेकर कोलकाता स्थित एएमआरआई हॉस्पिटल लेकर गए।
- डॉक्टर द्वारा वहा कुछ दवाई दी गई। जिसे लेने के बाद अनुराधा की और तबियत ख़राब हो गई और उसके स्किन एलेर्जी शुरू हो गई। ये एलर्जी इतनी बढ़ गई की उनके स्किन से खून आने लग गया। जिसके बाद कुणाल ने वहा के डॉक्टरों ये पूरी घटना बताई लेकिन डॉक्टरों ने ये मानने से इंकार कर दिया की उनके द्वारा इलाज में कुछ गड़बड़ी है।
- कुणाल अपनी पत्नी को बेहतर इलाज के लिए मुंबई ले आये, लेकिन तबतक बहुत देर हो चुकी थी जिसकी वजह से अनुराधा को बचाया नहीं जा सका। इसके बाद कुणाल ने कंज्यूमर फोरम के अंतर्गत डॉक्टर के खिलफ शिकायत दर्ज कराइ।
- पूरी सुनवाई होने के बाद डॉक्टर की लापरवाही ही देखने को मिली। अंत में डॉक्टर की लापरवाही मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा की डॉक्टर और हॉस्पिटल को कुणाल को देने होंगे 6 करोड़ 8 लाख रूपये। इसके साथ ही ये कहा की ये जो पैसा है वो 6% इंटरेस्ट के साथ देना होगा। ये फैसला सुप्रीम कोर्ट के द्वारा 2013 में दिया गया था।
सही समय पर सही इलाज पाना मौलिक अधिकार:
- सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि सभी को इलाज पाने का अधिकार हमारे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
- यदि किसीके मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो व्यक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सीधे हाई कोर्ट या फिर अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।
कोई व्यक्ति किसी मेडिकल लापरवाही का शिकार होता हैं, तो उसके पास क्या-क्या अधिकार हैं?
- अनेक मामले देखने को मिलते हैं जहां डॉक्टर की लापरवाही के कारण लोग स्थाई रूप से अपंग हो जाते हैं, वह कोई काम काज करने लायक भी नहीं रहते हैं तब उनका जीवन जीना मुश्किल हो जाता है। कानून यहां पर ऐसे लोगों को राहत देता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 डॉक्टर की सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में रखा गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का अर्थ होता है उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना। अगर किसी सेवा देने वाले या उत्पाद बेचने वाले व्यक्ति द्वारा कोई ऐसा काम किया गया है जिससे उपभोक्ता को किसी तरह का कोई नुकसान होता है तब मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत चलाया जाता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत बनाई गई कोर्ट जिसे कंजूमर फोरम कहा जाता है। यहां किसी तरह की कोई भी कोर्ट फीस नहीं लगती है और लोगों को बिल्कुल निशुल्क न्याय दिया जाता है। हालांकि यहां पर न्याय होने में थोड़ा समय लग जाता है क्योंकि मामलों की अधिकता है और न्यायालय कम है। किसी डॉक्टर की लापरवाही से होने वाले नुकसान की भरपाई कंजूमर फोरम द्वारा करवाई जाती है।
- एक आम उपभोक्ता की तरह ही मेडिकल लापरवाही की कन्स्यूमर कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं। चूंकि कंस्यूमर कोर्ट में किसी भी केस की सुनवाई के लिए दोनों पक्षों में से किसी एक को कंस्यूमर होना जरूरी है, इसलिए अस्पताल या डॉक्टर का इलाज कराने के बाद कुछ बिल जरूर चुकाएं। ऐसा करने से ही पीड़ित व्यक्ति कंस्यूमर माना जाएगा। डिस्चार्ज समरी के साथ ही ट्रीटमंट रेकॉर्ड भी मांगें। अगर वह न मिले तो दवाइयों के बिल साथ रखें। जिस डॉक्टर से इलाज हो रहा है उसका नाम जरूर पता कर लें और पूरे डेजिग्नेशन के साथ उसे नोट करके रख लें।
- अगर इलाज के सही न होने का संदेह है, तो किसी दूसरे डॉक्टर से राय लें।
- किसी भी तरह की एक्सपाइरी दवा के इस्तेमाल पर तुरंत शिकायत करें। इसके साथ ही आप भारतीय दंड संहिता की धारा 337, 338 और 304A के अंतर्गत शिकायत दर्ज करवा सकते है।
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