OVERVIEW
गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए भारत में इच्छामृत्यु (Euthanasia) की वैधता
विषय सूची:
- इच्छामृत्यु (Euthanasia) क्या है?
- इच्छामृत्यु (Euthanasia) के प्रकार
- भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia) की अनुमति क्यों नहीं है?
- भारत में इच्छामृत्यु का इतिहास
- भारत में इच्छामृत्यु की वैधता
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia) पर दिशानिर्देश
- गंभीर रूप से बीमार मरीजों का चिकित्सा उपचार (MTTIP) (मरीजों और चिकित्सकों का संरक्षण) विधेयक
- इस विधेयक के मुख्य प्रावधान
- इस विधेयक की संभावित चिंताएं
- निष्कर्ष
हम मनुष्य के रूप में नश्वर प्राणी हैं। हमारा जीवन काल सीमित है। फिर भी, हम अपने जीवन को यथासंभव लंबे समय तक लटकाए रखने की कोशिश करते हैं। अफसोस की बात है कि गंभीर चिकित्सा स्थितियों में ऐसे लोग हैं जो मरना चाहते हैं, वे दर्द और पीड़ा में जीते रहते हैं और अपनी ज़िंदगी को कोसते है।
मृत्यु का भय और सदा जीवित रहने की इच्छा, मानव स्वभाव के अंग हैं। हालाँकि, चिकित्सा का क्षेत्र मानवता के इस पहलू का लाभ उठाता है। यह निस्संदेह सच है कि चिकित्सा का एक लक्ष्य, जीवन को लम्बा खींचना रहा है, दूसरा लक्ष्य दर्द और पीड़ा को कम करना रहा है। एक बिंदु जिस पर इन दोनों विचारों का टकराव होता है, वह इच्छामृत्यु का मुद्दा है। यह लेख, इच्छामृत्यु क्या है, भारत में कानूनी इच्छामृत्यु के प्रकार, आदि के बारे में है।
इच्छामृत्यु क्या है?
इच्छामृत्यु शब्द ग्रीक शब्द "ईयू (eu)" से आया है, जिसका अर्थ है 'अच्छी तरह से (Well)' और "थानातोस (Thanatos)," जिसका अर्थ अंग्रेजी में 'मृत्यु (Death)' है। इच्छामृत्यु शब्द का अर्थ "अच्छी मौत" है।
यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से और धीमी गति से मृत्युशैया पर है, तो उसे आराम से अपना जीवन समाप्त करने का अधिकार होना चाहिए। इसे दया मृत्यु (Mercy killing) के रूप में जाना जा सकता है और कभी-कभी इच्छामृत्यु के रूप में भी जाना जाता है।
मर्सी किलिंग तब होती है जब कोई डॉक्टर सीधे अपने मरीज की जिंदगी खत्म कर देता है; यह रोगी को उसके मताधिकार से बाहर निकालने और उन्हें एक लाइलाज स्थिति से मुक्त करने के लिए किया जाता है। यह एक बड़ा विवाद पैदा करता है कि क्या किसी भी इंसान को इच्छामृत्यु की अनुमति दी जानी चाहिए। इसे गैरकानूनी माना जाता है और इसे हत्या माना जाता है। अत्यधिक दर्द से पीड़ित कई रोगियों ने अपने डॉक्टरों और प्रियजनों से उन्हें इस दर्द से बाहर निकालने के लिए कहा है, लेकिन कानून में इसे हत्या माना गया है। इच्छामृत्यु, या "दया मृत्यु," केवल दो पक्षों के साथ का मुद्दा नहीं है बल्कि सही और गलत क्या है, इस स्थिति में यह स्पष्ट नहीं हैं।
इच्छामृत्यु (Euthanasia) के प्रकार:
सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia) तुलनात्मक रूप से अधिक विवादास्पद है क्योंकि यह नैतिक, धार्मिक और करुणामय मूल्यों को प्रभावित करती है। सक्रिय इच्छामृत्यु में पीड़ित की मृत्यु तब होती है जब पेशेवर चिकित्सक या कोई अन्य व्यक्ति जानबूझकर कुछ सकारात्मक कार्य करता है, जैसे कि घातक दवा की खुराक का इंजेक्शन लगाना या पीड़ित को ऐसी दवा का ओवरडोज देना जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia):
इच्छामृत्यु में किसी व्यक्ति को जीवन समर्थन के बिना स्वाभाविक रूप से मरने देना या "प्लग खींचना" (Pulling the plug) शामिल है। निष्क्रिय इच्छामृत्यु हमेशा नैतिक रूप से अनुमेय है और यह सुझाव देता है कि किसी को जीवित रखने के लिए हमें वह सब कुछ करना चाहिए जो हम कर सकते हैं, भले ही वे दुखी हों या मरना चाहते हों।
- स्वैच्छिक इच्छामृत्यु (Voluntary Euthanasia):
स्वैच्छिक इच्छामृत्यु का अर्थ है इच्छामृत्यु, रोगी की सहमति से किया जाता है। इसमें एक मरीज खुदको जान से मारे जाने का अनुरोध करता है (अपनी मर्जी से मरना चाहता है) ।
- गैर-स्वैच्छिक इच्छामृत्यु (non-voluntary euthanasia):
गैर-स्वैच्छिक इच्छामृत्यु का अर्थ है एक व्यक्ति जो न तो मरना चाहता है और न ही जीने का इच्छा रखता है। जब कोई व्यक्ति सहमति देने में असमर्थ होता है (उदाहरण के लिए- रोगी कोमा में है या गंभीर रूप से मस्तिष्क-क्षतिग्रस्त है), तो कोई अन्य व्यक्ति उनकी ओर से निर्णय लेता है, अक्सर इसलिए कि बीमार व्यक्ति की परिस्थितियाँ यह बताती है की वो आगे और जी नहीं सकता है या डॉक्टर जवाब दे देते है की मरीज अब कभी भी पहले वाली अवस्था में नहीं आ सकता है। इसका सीधा सा मतलब है जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक बेहोश होकर कोमा में रहता है और उसके पास यह मानने का कारण है कि चेतना कभी वापस नहीं आएगी।
- अनैच्छिक इच्छामृत्यु (Involuntary Euthanasia):
रोगी की इच्छा के विरुद्ध किया गया इच्छामृत्यु अनैच्छिक इच्छामृत्यु कहलाता है। इसे हत्या के रूप में भी माना जाता है (बिना सहमति के या रोगी की इच्छा के विरुद्ध) ।
भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति क्यों नहीं है?
- भारत में ज्यादातर लोग भगवान और चमत्कारों में विश्वास करते हैं। उन्हें विश्वास है कि रोगी के ठीक होने की संभावना हमेशा बनी रहती है, इसलिए इच्छामृत्यु गलत है। लेकिन संदिग्ध मामलों पर आवश्यक निर्णय न लेना अक्सर नासमझी होती है। एक्टिव इच्छामृत्यु पर कई आपत्तियां हैं। कुछ सामान्य रूप से इच्छामृत्यु के बारे में चिंतित हैं, और अन्य का दावा है कि दर्द को हमेशा नियंत्रित किया जा सकता है, इसलिए इच्छामृत्यु की अनुमति देने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन दर्द को हमेशा सहने योग्य बनाना यह बुरा ही है।
- आगे यह भी दावा किया कि सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच अंतर आवश्यक हैं, निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive) को अनुमेय (Permissible) मन साथ ही सक्रिय गलत (Active wrong) भी माना हैं। आम तौर पर माना जाता है की सक्रिय इच्छामृत्यु गलत है क्योंकि इसका मतलब होता है जानबूझकर किसी व्यक्ति को मारना है। एक मरीज को मारना हमेशा बुरा होता है क्योंकि वे आमतौर पर जीना चाहते हैं और साथ ही उनका पूरा जीवन दर्द से भरा नहीं होता।
- जीवित रहने के लिए वेंटिलेटर जैसे परिष्कृत चिकित्सा उपकरणों पर निर्भर या भरोसा करने वाले कई लाइलाज बीमार रोगियों के जीवन को बनाए रखने में शामिल खर्च को इच्छामृत्यु के द्वारा बचाया जा सकता है। जिस व्यक्ति के ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है तो दवाओं, चिकित्सा कर्मियों और उपकरणों पर भारी मात्रा में पैसा खर्च करना अनुचित है। इसके अलावा, जो मुस्लिम देश है वह रूढ़िवादी हो रहे हैं, जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates), जहां इस तरह की प्रथा को सख्ती से प्रतिबंधित किया गया है और उन मरीजों पर पैसा बर्बाद नहीं करना चाहते जिन्हें जीवन की कोई उम्मीद नहीं होती है; उन पैसे का उपयोग अन्य रोगियों के इलाज के लिए करें जिन्हें स्वस्थ जीवन में वापस लाया जा सकता है।
- कुछ आपराधिक मनः स्थिति वाले लोग कानून का दुरुपयोग कर सकते हैं। सक्रिय इच्छामृत्यु (Active Euthanasia) की अनुमति देने से पहले, डॉक्टरों को उचित जांच करनी चाहिए। कभी-कभी यह आपराधिक कारकों से प्रभावित होती है। अच्छी निगरानी इस मुद्दे से संबंधित अपराधों की घटना को रोक सकती है।
- भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देने से उन लोगों पर हत्या करने का आरोप लग सकता है जो व्यक्ति जीना चाहते हैं।
भारत में इच्छामृत्यु का इतिहास:
- केस: ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य (Gyan Kaur VS. Punjab State), 1996
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि भारत में इच्छामृत्यु अवैध है। कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में "जीवन के अधिकार" में "मरने का अधिकार" शामिल नहीं है और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है। इस मामले में, कोर्ट ने इच्छामृत्यु से संबंधित कोई व्यावहारिक नियम या कानून नहीं बनाया।
- विधि आयोग की रिपोर्ट (Report of the Law Commission):
196वीं विधि आयोग की रिपोर्ट के द्वारा 2006 में इच्छामृत्यु पर कोई कानून नहीं लाया गया; हालांकि, एक 2006 में बिल लाया `गंभीर रूप से बीमार मरीजों का चिकित्सा उपचार (MTTIP) (प्रोटेक्शन ऑफ पेशेंट्स एंड मेडिकल प्रैक्टिशनर्स) ।
- केस: अरुणा रामचंद्र शानबाग बनाम भारत संघ, 2011
माननीय उच्चतम न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए याचिकाओं पर कार्रवाई करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए। जब तक संसद कानून नहीं बनाती, तब तक दिशानिर्देशों की प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। इसमें सक्रिय और निष्क्रिय इच्छामृत्यु के बीच के अंतरों को भी स्पष्ट किया। इस मामले में, 1973 में मुंबई के अस्पताल में एक वार्ड अटेंडेंट द्वारा किए गए हमले के बाद गंभीर मस्तिष्क क्षति और लकवा मार गया। परन्तु अरुणा के घरवाले कोई भी नहीं थे इसलिए अरुणा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा इच्छामृत्यु की अनुमति नहीं दी गई थी।
- विधि आयोग, 2012 की 241वीं रिपोर्ट
फिर से निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर एक विधेयक तैयार किया और इसे पारित किया, जो कि गंभीर रूप से बीमार रोगियों का चिकित्सा उपचार (MTTIP) (रोगियों और चिकित्सकों की सुरक्षा) है। यह विधेयक निष्क्रिय इच्छामृत्यु और रोगी की जीवित इच्छा से संबंधित है। यह विधेयक किसी भी हालत में सक्रिय इच्छामृत्यु की अनुशंसा नहीं करता है।
- 2014 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ:
पीठ ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि अरुणा शानबाग का मामला 'असंगत' था और इस मामले को पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को संदर्भित किया।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2016 में जनमत के लिए बिल अपलोड किया ताकि लोग निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर कानून पारित करने पर अपने विचार दे सकें।
भारत में इच्छामृत्यु की वैधता:
मार्च 2018 से, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सख्त दिशानिर्देशों के तहत भारत में निष्क्रिय इच्छामृत्यु कानूनी है। हालांकि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही फैसला कर चुका है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर कुछ संशय बरकरार थे लेकिन अब यह बिल पास होने के बाद साफ हो गया है।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निष्क्रिय इच्छामृत्यु पर दिशानिर्देश:
- निष्क्रिय इच्छामृत्यु का निर्णय माता-पिता, करीबी रिश्तेदार, पति या पत्नी, या रोगी के जीवन को समाप्त करने के लिए अगले मित्र (next friend) के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति द्वारा लिया जाना चाहिए। डॉक्टर रोगी के सर्वोत्तम हित में रोगी के लिए निर्णय भी ले सकते हैं।
- संबंधित उच्च न्यायालय में एक आवेदन प्राप्त करने के बाद, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को कम से कम दो न्यायाधीशों की बेंच का गठन करना होगा, जो निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देने या न देने का फैसला करेगी।
- तीन प्रतिष्ठित डॉक्टरों की एक समिति बनाएगी और उसे समिति के द्वारा एक रिपोर्ट की तैयार की जाएगी जिसे उच्च न्यायालय की पीठ को भेजा जायेगा।
- डॉक्टरों से रिपोर्ट मिलने के बाद कोर्ट करीबी रिश्तेदारों और राज्य को नोटिस देगा और उच्च न्यायालय पक्षकारों (करीबी रिश्तेदारों और राज्य) को सुनने के बाद अपना फैसला दे सकता है।
गंभीर रूप से बीमार मरीजों का चिकित्सा उपचार (MTTIP) विधेयक-
अग्रिम चिकित्सा निर्देश (Advance Medical Instructions):
इसे लिविंग विल के नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए निर्देश से है कि जैसा भी मामला हो, की भविष्य में जब वे गंभीर रूप से बीमार हो जाएंगे, तो उन्हें चिकित्सा उपचार दिया जाएगा।
पीड़ाहर देखभाल (Palliative care):
- शारीरिक दर्द, परेशानी, पीड़ा, या मनोसामाजिक या भावनात्मक पीड़ा को दूर करने के लिए उपयुक्त चिकित्सा और नर्सिंग प्रक्रियाओं का प्रावधान।
- भोजन और पानी की उचित व्यवस्था।
सक्षम रोगी:
एक रोगी जो विकलांग नहीं है और अपने सारे काम करने में सक्षम हो।
विकलांग रोगी (अक्षम रोगी):
अर्थात 16 वर्ष से कम आयु का अवयस्क या विकृत दिमाग, या जो ये निम्न कार्य करने में असमर्थ है:
- उनके चिकित्सा उपचार सम्बंधित जानकारी को समझने के बाद चिकित्सा टीम को जानकारी भेजना।
- निर्णय लेने के लिए उस जानकारी को बनाए रखना और उसका उपयोग करना।
- भाषण, संकेत, भाषा, या अन्य माध्यमों से अपने निर्णय के बारे में बताना।
- दिमाग में गड़बड़ी के कारण कामकाज का निर्णय न ले पाना।
सूचित निर्णय (Informed decision):
इसका अर्थ है एक सक्षम रोगी द्वारा लिया गया चिकित्सा उपचार जारी रखने या रोकने या वापस लेने का निर्णय जिसे सूचित किया जाता है:
- उनके रोग की प्रकृति।
- उस स्थिति में उपचार का कोई भी वैकल्पिक रूप उपलब्ध है तो उसकी जानकारी रोगी को देना ।
- उपचार के उन रूपों के परिणाम के बारे में बताना।
- अनुपचारित रहने के क्या परिणाम होंगे उन्हें बताना।
लाइलाज बीमारी:
इसका मतलब है कि ऐसी बीमारी, जो मानसिक या शारीरिक हो जिसमे उस बीमारी का कोई इलाज न हो और स्थिति के बिगड़ने से अत्यधिक दर्द होता है। डॉक्टरों के मत के अनुसार ऐसे रोगो के कारण रोगी को बहुत कष्ट होता है, और रोगी की असमय मृत्यु हो जाती है, या अपरिवर्तनीय वनस्पति स्थितियों के कारण जीवन का सार्थक अस्तित्व संभव नहीं होता है।
इस विधेयक के मुख्य प्रावधान:
- प्रत्येक सक्षम रोगी, जिसमें 16 वर्ष से अधिक आयु के अवयस्क भी शामिल हैं, को यह निर्णय लेने और उनकी देखभाल करने वाले चिकित्सक को अपनी इच्छा व्यक्त करने का अधिकार है कि क्या रोगी के आगे के उपचार को जारी रखना है।
- यह विधेयक रोगियों और डॉक्टरों को चिकित्सा उपचार को रोकने या वापस लेने के किसी भी दायित्व से रोकता है और पीड़ाहर देखभाल (palliative care) जारी रह सकती है।
- जब कोई रोगी चिकित्सक को अपने निर्णय के बारे में बताता है तो चिकित्सक को रोगी को "संतुष्ट" करना चाहिए कि रोगी "सक्षम" है और रोगी का निर्णय स्वतंत्र की इच्छा से लिया गया है।
- अलग अलग केस के आधार पर निर्णय लेने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों का एक पैनल होगा।
- चिकित्सा व्यवसायी को रोगी के सभी विवरण अपने पास रखने होते हैं और एक सूचित निर्णय लेना होता है। चिकित्सक को रोगी को सूचित करना चाहिए कि क्या उपचार को बंद रखना उचित होगा। यदि रोगी होश में नहीं है, तो उनके परिवार के सदस्यों को सूचित करें, या किसी ऐसे व्यक्ति को सूचित करें जो उनके परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति में नियमित आगंतुक है।
- इच्छामृत्यु प्राप्त करने की प्रक्रिया, मेडिकल टीम की संरचना से लेकर अनुमति के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने तक की प्रक्रिया भी बताई गई है।
- इच्छामृत्यु प्राप्त करने के लिए उच्च न्यायालय से अनुमति लेनी होगी। कोई भी करीबी रिश्तेदार, दोस्त, कानूनी अभिभावक, मरीज की देखभाल करने वाले डॉक्टर/स्टाफ, या कोई अन्य व्यक्ति क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय में आवेदन कर सकता है। इस तरह के एक आवेदन को एक मूल याचिका के रूप में माना जाता है, और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, बिना समय बर्बाद किए, इसे डिवीजनल बेंच के पास भेज देंगे। जहां तक संभव हो, इसे एक माह के भीतर निपटाया जाना चाहिए। तीन प्रख्यात डॉक्टरों की समिति एक रिपोर्ट तैयार करती है।
- विधेयक केवल "निष्क्रिय इच्छामृत्यु" को वैध बनाने की ओर इशारा करता है, जैसा कि अरुणा शॉनबाग पर निर्णय में चर्चा की गई थी। सक्रिय इच्छामृत्यु (Active euthanasia) पर विचार नहीं किया गया है "क्योंकि यह बेईमान व्यक्तियों द्वारा अपने गुप्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जाने की संभावना है।"
- उन्नत चिकित्सा का निर्देश शून्य होगा और चिकित्सक का नहीं होगा।
- भारतीय चिकित्सा परिषद विधेयक के प्रावधानों द्वारा दिशानिर्देश जारी कर सकती है। यह समय-समय पर समीक्षा और संशोधन कर सकता है।
इस विधेयक की संभावित चिंताएं:
इस विधेयक पर मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। कुछ ने इसे "अच्छी शुरुआत" माना, लेकिन अन्य असहमत थे।
कुछ संभावित चिंताएं इस प्रकार हैं:
- इस विधेयक ने उन विशेषज्ञों को निराश किया है जो जीवित इच्छा की अवधारणा पर पूर्ण स्पष्टता चाहते थे। साथ ही, अग्रिम चिकित्सा निर्देशों (जिन्हें एक living will के रूप में भी जाना जाता है) को मान्यता देने की मांग की जाती है, जिससे एक व्यक्ति अग्रिम रूप से घोषणा करता है कि भविष्य में निर्णय लेने पर उपचार दिया जाना चाहिए या नहीं।
- बाल अधिकार कार्यकर्ताओं की प्रश्न यह है कि भारत में अनुबंध पर हस्ताक्षर करने या 18 वर्ष की आयु से पहले शादी करने की अनुमति नहीं है, तो कोई बच्चा जीने या मरने का फैसला कैसे कर सकता है। ये इस कमी है क्योंकि इससे सम्बंधित कोई प्रावधान नहीं दिया हुआ है।
- इस विधेयक के दुरुपयोग की चिंता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे हमारे देश में कानून बनने से पहले संबोधित किया जाना चाहिए था।
- डॉक्टर भ्रष्टाचार के प्रभाव में आ सकता है और यह साबित करने के लिए प्रूफ बना सकता है कि यह एक लाइलाज मामला है जिसमें ठीक होने की कोई संभावना नहीं है।
- इसका दुरुपयोग कुछ बेईमान व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है, जो रोगी के संबंधियों या डॉक्टरों या रोगी के अगले मित्र को छोड़कर उस रोगी से कुछ विरासत में प्राप्त करना चाहते हैं या हड़पना चाहते हैं।
निष्कर्ष:
जब कोई रोगी किसी लाइलाज बीमारी से लंबे समय से पीड़ित होता है, उस स्थिति में इच्छामृत्यु का निर्णय उस रोगी के लिए शांतिपूर्ण मृत्यु देना है जो कहीं बेहतर साबित हो सकता है। जबकि मृत्यु, यकीनन, मरने वाले व्यक्ति के लिए आमतौर पर दुखद होती है, इच्छामृत्यु का लक्ष्य, इसे कम हानिकारक बनाना है। इच्छामृत्यु शब्द का अर्थ है "अच्छी मौत।" ये मुद्दे उन लोगों के लिए आवश्यक हैं, जो वर्तमान में मृत्यु के बारे में कठिन विकल्पों का सामना कर रहे हैं। कोई नहीं जानता कि अगले पल क्या होगा। कोई दुर्घटना या बीमारी इन मुद्दों पर ला सकती है, इसलिए अब हमें उनसे और गहराई से निपटना चाहिए। भारत सरकार कई सख्त कार्रवाई करके इच्छामृत्यु के दुरुपयोग को रोक सकती है और कही न कहि रोक भी रही है।
To read this article in English: Euthanasia
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