OVERVIEW
सड़क दुर्घटना से संबंधित महत्वपूर्ण बातें
विषय सूचि:
- प्रस्तावना (Introduction)
- लापरवाही और रैश ड्राइविंग का क्या अर्थ है?
- शराब के नशे में गाड़ी चलने के लिए दंड
- निष्कर्ष
प्रस्तावना (Introduction)
भारत का स्थान पहले पायदान पर है, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), या यहां तक कि स्वच्छता या शिक्षा के मामले में नहीं, बल्कि "सड़क दुर्घटनाओं" में और इससे भी अधिक कार दुर्घटनाओं के मामले में सबसे आगे है। वाहन चालक अपनी गाड़ी बेफिक्री से चलते हुए नजर आते हैं। ज्यादा शराब पीकर गाड़ी चलाने और लापरवाही से गाड़ी चलाने से दुर्घटना की नौबत आ जाती है और दूसरे लोग हादसों का शिकार हो जाते हैं। इसमें गरीबो के मन में 'सुरक्षित नहीं होने' की भावना भी आ जाती है। आम तौर पर दैनिक समाचारों में कम से कम एक यातायात दुर्घटना समाचार देखने को मिलता ही है। क्षति और पीड़ितों की संख्या घटना की गंभीरता पर निर्भर करती है। सड़क हादसों में कई बेगुनाहों की जान चली जाती है, साथ ही जान-माल का भी काफी नुकसान होता है।
पिछले कई वर्षों में भारत में वाहनों की संख्या के साथ साथ सड़क दुर्घटनाएं भी तेजी से बढ़ी हैं। सड़क दुर्घटनाएं और कार दुर्घटना में मौतें एक प्रमुख सार्वजनिक मुद्दा बन गया है जोकि यह मृत्यु दर और स्थायी विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है।
लापरवाही और रैश ड्राइविंग का क्या अर्थ है?
सड़क सुरक्षा के नियमों का पालन किए बिना वाहन चलना, अपराध माना जाता है। हालांकि, थोड़ा तेज गति से वाहन चलाना, लापरवाही या जल्दबाज़ी से गाड़ी चलाने के रूप में नहीं माना जाता है। यदि चालक वाहन को तेज गति के वाहन को नियंत्रित कर सकता है या जिस सड़क पर वह चल रहा है वह खाली है, इसे लापरवाही या तेज गति से वाहन चलाना नहीं माना जाता है। हालांकि, अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक सड़कों पर लापरवाही से गाड़ी चला रहा है और अन्य लोगों के जीवन को खतरे में डालने की संभावना है, तो IPC की धारा 279 के तहत दोषी माना जाता है।
सिर्फ तेज रफ्तार का मतलब रैश ड्राइविंग नहीं है। जब चालक वाहन की गति को नियंत्रित कर सकता है या जब सड़क खाली लगती है, तो चालक की हरकतें जल्दबाजी और लापरवाही से वाहन चलाने की श्रेणी में नहीं आती हैं। हालांकि, कभी-कभी, राजमार्गों पर भी, गति सीमा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा तय की जाती है, जो अपेक्षाकृत अधिक होती है। तेज गति से वाहन चलाने पर IPC की धारा 279 के तहत लापरवाही से वाहन चलाने का अपराध उत्तरदायी नहीं होगा। परन्तु यदि कोई व्यक्ति बिना उचित देखभाल और ध्यान के सड़क पर वाहन चलाता है, तो वह इस धारा के तहत अपराध करने का दोषी होगा।
यातायात दुर्घटनाओं से संबंधित धाराएँ: (सार्वजनिक सड़कों पर)
- धारा 279-336 IPC: जल्दबाजी या लापरवाही से वाहन चलाने से लोगों के जीवन और संपत्ति को खतरा।
- धारा 279-337 IPC: तेज रफ़्तार या लापरवाह से वहां चलाने से व्यक्ति को छोटी चोट आना।
- धारा 279–338 IPC: जल्दबाजी या लापरवाही से वाहन चलाने से व्यक्ति को गंभीर चोट आना।
- धारा 279-304-ए IPC: तेज रफ़्तार या लापरवाही से वाहन चलाने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाना।
कुछ वैध कार्य भी आपराधिक कार्रवाई को आकर्षित करते हैं जब व्यक्ति को कोई कार्य को करने में लापरवाही करता है। इसे दुर्घटना भी कहते हैं। उदाहरण के लिए, एक श्रमिक निर्माणाधीन भवन की 8वीं मंजिल से गिर जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। तब ठेकेदार या बिल्डर पर जल्दबाजी या लापरवाही से कार्य करने के लिए IPC की धारा 304-ए के तहत मामला दर्ज होता है क्योंकि ठेकेदार या बिल्डर ने सुरक्षा उपायों की पालन न करते हुए श्रमिक सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की, जैसे कि कार्यकर्ता को सुरक्षा बेल्ट देना, कोई सुरक्षा अधिकारी नियुक्त नहीं किया, आदि।
भारतीय दंड संहिता की धारा 279: सार्वजनिक जगह पर जल्दबाजी में गाड़ी चलाना
- भारतीय दंड संहिता की धारा 279 में कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक मार्ग पर किसी वाहन को उतावलेपन या लापरवाही से चलाता है जिससे मानव जीवन को खतरा होने की या किसी व्यक्ति को चोट लगने की संभावना होती है। तो उसे छह महीने के कारावास से दंडित किया जाएगा, या न्यायालय एक हजार रुपये का जुर्माना या दोनों से दंडित कर सकता है।
- वाहन चलाते समय बहुत सावधान रहना चाहिए क्योंकि आपकी एक भी ढिलाई आपको सलाखों के पीछे भेज सकती है। जब कोई व्यक्ति लापरवाही से वाहन चलाता है या तेज गति से वाहन चलाता है जिससे चोट लगने की संभावना हो या किसी को चोट लगने की आशंका हो तो IPC की धारा 279 के तहत उत्तरदायी है।
- IPC की धारा 279 के तहत दंडनीय अपराध एक संज्ञेय अपराध है जहां पुलिस बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 337: किसी व्यक्ति की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य से चोट लगना:
यह धारा दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्यों से चोट पहुँचाने पर दंड का प्रावधान करती है। 337 धारा कहती है, "जो कोई भी किसी व्यक्ति को जल्दबाजी या लापरवाही से किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाता है जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा हो, इस स्थिति में न्यायालय छह महीने की सजा देगा, या अदालत जुर्माना लगा सकती है जो पांच सौ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।"
- यह धारा लापरवाही या उतावलेपन से कोई भी कार्य करने से मानव जीवन और दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने की बात करती है। फिर भी, यह धारा दुर्घटना की प्रकृति का वर्णन नहीं करता है।
- उदाहरण के लिए, एक लड़का X, तेज गति से गाड़ी चला रहा है और हृदय रोग से पीड़ित एक वृद्ध व्यक्ति के नजदीक से गुजरता है। तेज रफ्तार बाइक के अचानक गुजरने से डरे हुए वृद्ध को दिल का दौरा पड़ जाता है। तो X की यह हरकतें वृद्ध व्यक्ति के जीवन को खतरे में डालती हैं।
- इस प्रकार, X को धारा 337 के तहत दंडित किया जाता है। इस धारा के तहत अपराध जमानती और संज्ञेय है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 338: उतावलेपन या उपेक्षापूर्वक से कार्य करके मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को ख़तरे में डालना, गंभीर चोट पहुँचाना:
- इस धारा में कहा गया है कि "जो कोई भी किसी व्यक्ति को जल्दबाजी या लापरवाही से किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुँचाता है, जिससे मानव जीवन या दूसरों की व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा होता है, तो अदालत दो साल तक के लिए कारावास से दंडित कर सकती है, या अदालत जुर्माना लगा सकती है जो एक हजार रुपये तक हो सकता है, या अदालत दोनों के साथ दंडित कर सकती है।"
- उदाहरण के लिए, एक ट्रक चालक लापरवाही से गलत मोड़ लेता है और एक रिक्शा चालक को टक्कर मार देता है, और रिक्शा चालक के शरीर पर गहरा घाव हो जाता है; धारा 338 के तहत गंभीर चोट पहुंचाने के लिए चालक जिम्मेदार होगा।
- न्यायालय में यह अपराध जमानती, संज्ञेय, शमनीय और समन मामले होते है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 304ए: लापरवाही से मौत
- धारा 304 ए यह कहती है, की जब कोई लापरवाही से किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, जो उसका अपराध गैर इरादतन मानव वध की श्रेणी में आता है, इस मामले में, अदालत दो साल के कारावास से दंडित कर सकती है, या अदालत उस पर जुर्माना लगा सकती है, या दोनों सजा दे सकती है।
- अब, यदि हम NCRB द्वारा जारी आकस्मिक मृत्यु रिपोर्ट को देखें, तो आकस्मिक मौतों की संख्या में भी अनुपातहीन रूप से वृद्धि हुई है, क्योंकि यह कृत्य एक 'दुर्घटना' है, इसलिए अपराधी को वह सजा नहीं मिलती जिसका वह हकदार होता हैं।
- और इसके अलावा, दुर्घटनाओं की अधिकतम संख्या 'छिपी हुई हत्याएं' हैं। ज्यादातर केस में यह साबित होता है कि मौत ड्राइवर की लापरवाही से हुई है, लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस तरह से किसी की हत्या करना कितना आसान होता है।
- इसके अलावा, यदि मृत्यु वास्तव में लापरवाही से हुई है, तो दंड अधिक महत्वपूर्ण होना चाहिए। यह धारा 304ए जमानती, संज्ञेय, अशमनीय और समन मामले होते है। हिंदी में एक प्रसिद्ध कहावत है, "जान है तो जहान है", लेकिन यह कहावत अपना मूल्य खो देती है जब लापरवाही से किसी की हत्या करने के बाद उसे मात्र दो साल तक की सजा होती है, और वह भी जमानती रूप में।
शराब के नशे में गाड़ी चलाना:
- हर व्यक्ति को शराब के नशे में गाड़ी चलने के बारे में पता होना चाहिए और साथ ही शराब की मात्रा कितनी होने तक उसे दंड नहीं दिया जा सकता है, शराब की अनुमेय सीमा पता होनी चाहिए। जब कोई भी व्यक्ति के 100 ML रक्त में 30 MG शराब पाई जाती है तो उसे दंड किया जा सकता है।
- यही बात हर उस व्यक्ति पर भी लागू होगी जो नशीली दवाओं का सेवन करके, वह मोटर वाहन पर उचित नियंत्रण करने में अक्षम हो जाता है।
- भारत में एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में, आपको शराब पीकर गाड़ी न चलाने के नियमों का पालन करना चाहिए। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 185 के तहत भारत में शराब के नशे में ड्राइविंग को अवैध और दंडनीय बनाती है।
- इस अधिनियम के तहत, जब कोई व्यक्ति पहली बार शराब या नशीली दवाओं के प्रभाव में वाहन चलते हुए पकड़ा जाता है तो उस पर छह महीने की सजा या जुर्माना जो 2000 रुपये तक हो सकता है, या दोनों से दंडित किया जाएगा। यदि वही अपराध तीन वर्ष के भीतर फिरसे दोहराया जाता है, तो अपराध को दो वर्ष के कारावास और/या 3000/- रुपये से दंडित किया जाएगा।
मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 के बाद बढ़ी सजा:
- मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है। इस विधेयक का उद्देश्य सड़क सुरक्षा में सुधार करना और शराब पीकर गाड़ी चलाने पर अधिक जुर्माना देना है। मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 के तहत शराब पीकर गाड़ी चलाने पर जुर्माना 2000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया गया है।
- यदि कोई चालक मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के तहत दोषी पाया जाता है तो वह छह महीने तक के कारावास या ₹ 10,000 के जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है। यदि वह दुबारा वही अपराध के लिए दोषी पाया जाता है तो सजा दो साल तक की की हो सकती है, और जुर्माना ₹15,000 का, या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। इससे पहले, 185 एमवी अधिनियम में जुर्माना ₹2,000 और बाद के अपराध के लिए ₹3,000 था। इसे 2019 में मोटर वाहन अधिनियम 2019 के माध्यम से बढ़ाया गया है।
निष्कर्ष:
दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क हादसों वाले देशों की बात करें तो भारत पहले नंबर पर आता है। भारत में सड़क दुर्घटना से सम्बंधित कानून होने के बावजूद भी सड़क हादसों के मामले खतरनाक दर से बढ़ रहे हैं। सड़क दुर्घटनाएं और उनसे होने वाली मृत्यु दर एक सार्वजनिक चिंता के रूप में उभरी है क्योंकि यह देश में मृत्यु और स्थायी विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है। इसका एक प्रमुख कारन यह है की लोग अब कानूनों से नहीं डरते है और उनके लिए कानून होना या न होना एक बराबर ही है। मृत्यु की बढ़ती दर को रोकने और भारतीय सड़कों को सुरक्षित बनाने के लिए सांसद के लिए भारतीय दंड संहिता में दुर्घटनाओं से संबंधित धाराओं में दंड नीति की जांच, पुनर्मूल्यांकन और पुन: जांच करने का समय आ गया है।
To read this article in English: Motor Accident
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