What is a live-in relationship, and when is it right in the eyes of the law to be in the live-in relationship?

What is a live-in relationship, and when is it right in the eyes of the law to be in the live-in relationship?

लिव इन रिलेशनशिप क्या है और कब लिव इन रिलेशनशिप में रहना कानून की नज़र में सही है?

भारत में 'लिव इन रिलेशनशिप' का चलन तेजी से बढ़ रहा है। अब विवाहित महिला या पुरुष का किसी अविवाहित के संग रहने को भी 'लिव इन रिलेशनशिप' नाम दिया जाने लगा है। लिव इन रिलेशनशिप पाश्चात्य संस्कृति से आयी है और वहां के लिए आम बात है, लेकिन भारतीय सभ्यता में बिना शादी के एक स्त्री-पुरुष के साथ रहने को स्वीकार नहीं किया जाता था। लेकिन बदलती जीवनशैली में इसे भारत में भी अपनाया जाने लगा है। चूंकि आज लिव इन रिलेशनशिप में रहना बड़े शहरों में आम हो चुका है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून वैध करार दिया है। चूंकि लिव इन को लेकर भारतीय संसद ने कोई कानून पारित नहीं किया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट का आदेश ही इस मामले में कानून की तरह काम करता है और सुप्रीम कोर्ट लिव इन को पूरी तरह वैध मानता है।.

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, दो बालिग (लड़का लड़की) अगर शादी किए बगैर भी अपनी मर्जी से पारिवारिक-वैवाहिक जीवन जी सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि विधायिका भी लिव इन रिलेशनशिप को वैध मानती है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर एक गाइडलाइंस जारी किया था। इसके मुताबिक जो रिश्ता पर्याप्त समय (लंबे समय) से चल रहा है, इतना होना चाहिए कि वह टिकाऊ माना जा सके, ये कोर्ट तय करेगा। अगर दोनों पार्टनर लंबे समय से अपने आर्थिक अन्य प्रकार के संसाधन आपस में बांट रहे हों तो ये भी रिश्ता लिव इन ही कहलाएगा।

लिव-इन रिलेशनशिप कब क़ानून की नज़र में सही हैं?

  • लिव-इन रिलेशनशिप, यानी शादी किए बगैर लंबे समय तक एक घर में साथ रहने पर बार-बार सवाल उठते रहे हैं। किसी की नज़र में ये मूलभूत अधिकारों और निजी ज़िंदगी का मामला है, तो कुछ इसे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के पैमाने पर तौलते हैं।
  • एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे दो व्यस्क जोड़ों की पुलिस सुरक्षा की मांग को जायज़ ठहराते हुए कहा है कि ये "संविधान के आर्टिकल 21 के तहत दिए राइट टू लाइफ़" की श्रेणी में आता है। इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने अदालत से कहा था कि दो साल से अपने पार्टनर के साथ अपनी मर्ज़ी से रहने के बावजूद, उनके परिवार उनकी ज़िंदगी में दखलअंदाज़ी कर रहे हैं और पुलिस उनकी मदद की अपील को सुन नहीं रही है।
  • कोर्ट ने अपने फ़ैसले में साफ़ किया कि, "लिव-इन रिलेशनशिप को पर्सनल ऑटोनोमी (व्यक्तिगत स्वायत्तता) के चश्मे से देखने की ज़रूरत है, ना कि सामाजिक नैतिकता की धारणाओं से"
  • भारत की संसद ने लिव-इन रिलेशनशिप पर कोई क़ानून तो नहीं बनाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसलों के ज़रिए ऐसे रिश्तों के क़ानूनी दर्जे को साफ़ किया है।
  • इसके बावजूद इस तरह के मामलों में अलग-अलग अदालतों ने अलग-अलग रुख़ अपनाया है और कई फ़ैसलों में लिव-इन रिलेशनशिप को "अनैतिक" और "ग़ैर-क़ानूनी" करार देकर पुलिस सुरक्षा जैसी मदद की याचिका को बर्खास्त किया है।

लिव इन रिलेशनशिप में रहना कानून की नज़र में कब सही है?

  • साल 2006 में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत 'अडल्ट्री' यानी व्याभिचार ग़ैर-क़ानूनी था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के तहत मिली आज़ादी उन मामलों पर लागू नहीं थी जो शादी के बाहर संबंध यानी अडल्ट्री की श्रेणी में आते थे। शादीशुदा व्यक्ति और अविवाहत व्यक्ति के बीच, या फिर दो शादीशुदा लोगों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप क़ानून की नज़र में मान्य नहीं था। फिर साल 2018 में एक जनहित याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 'अडल्ट्री' क़ानून को ही रद्द कर दिया।
  • सुप्रीम कोर्ट ने अपने इसी फ़ैसले का हवाला साल 2010 में अभिनेत्री खुशबू के 'प्री-मैरिटल सेक्स' और 'लिव-इन रिलेशनशिप' के संदर्भ और समर्थन में दिए बयान के मामले में दिया था। खुशबू के बयान के बाद उनके ख़िलाफ़ दायर हुईं 23 आपराधिक शिकायतों को बर्खास्त करते हुए कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था, "इसमें कोई शक नहीं कि भारत के सामाजिक ढांचे में शादी अहम है, लेकिन कुछ लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते और प्री-मैरिटल सेक्स को सही मानते हैं।  आपराधिक क़ानून का मकसद ये नहीं है कि लोगों को उनके अलोकप्रिय विचार व्यक्त करने पर सज़ा दे।"

क्या एक विवाहित का दूसरे अविवाहित के संग रहना 'लिव इन रिलेशनशिप' माना जाएगा?

  • एक विवाहित का अविवाहित व्यक्ति के साथ में एक छत के निचे रहना लिव-इन-रिलेशनशिप नहीं होता है। यदि विवाहित व्यक्ति अपने पहले पति या पत्नी को बिना तलाक दिए किसी अविवाहित व्यक्ति रहता है या रहती है तो इसे अडल्ट्री कहां जाता है। अडल्ट्री अब कोई कॉनन अपराध नहीं है लेकिन अभी भी ये हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत तलाक का आधार है।

सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप पर क्या कहा है?

  • साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशन के बारे में दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले पर कहा था कि केवल एक दूसरे के साथ रहने या रातभर किसी के साथ गुजारने से इसे घरेलू संबंध नहीं कहा जा सकता है। साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा था कि इस केस में महिला गुजारा भत्ता की हकदार नहीं है।

लिव इन रिलेशनशिप वालों पर क्यों होती है कानूनी कार्रवाई?

  • महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ लिव-इन रिलेशनशिप कानून बनाए गए हैं। इससे कोई पुरुष केवल सेक्स संबंध के लिए किसी लड़की के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने के बाद छोड़ ना सके। अगर वह छोड़ता है तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। लिव इन में रहने वाली महिलाओं के पास वो सारे कानूनी अधिकार हैं, जो भारतीय पत्नी को संवैधानिक तौर पर दिए गए हैं।
    • घरेलू हिंसा से संरक्षण प्राप्त
    • प्रॉपर्टी पर अधिकार
    • संबंध विच्छेद की स्थिति में गुजारा भत्ता
    • बच्चे को विरासत का अधिकार

लिव इन में रहने के बाद कोई लड़का उक्त लड़की को छोड़ देता है तो उसको उपरोक्त सुख-सुविधाएं कोर्ट दिलाने का काम करेगा। इसके लिए पीड़िता लड़की को लिव इन में होने के सबूत खासकर, आर्थिक लेनदेन के कागज कोर्ट के सामने पेश करने होंगे।

लिव इन रिलेशन कब होगा वैध?

घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 2(f) के अंतर्गत लिव इन कोर परिभाषित किया गया है और इसे कानूनी मान्यता दी गयी है।

  • लिव इन रिलेशन के लिए एक कपल का साथ रहना जरूरी है कि उन्हें पति-पत्नी की तरह एक साथ रहना होगा। हालांकि इसके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, लेकिन उनका लगातार साथ रहना जरूरी है। ऐसे संबंध को लिव नहीं माना जायेगा जिसमें कभी कोई साथ रहे हों और फिर अलग हो जायें, फिर कुछ दिन साथ रह लें।
  • लिव इन कपल का एक ही घर में पति-पत्नी की भांति रहना अनिवार्य होगा।
  • उन्हें एक ही घर के सामानों का उपयोग संयुक्त रूप से करना होगा।
  • लिव इन साथी को पति-पत्नी की भांति घर के कामों में एक दूसरे की सहायता करनी होगी।
  • लिव इन में रह रहे कपल के लिए यह जरूरी होगा कि अगर उनके बच्चे हों तो उन्हें भरपूर प्रेम और स्नेह दें तथा उनकी उचित परवरिश करें।
  • समाज को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि कपल लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं, क्योंकि वैध संबंध है इसलिए इसकी जानकारी दी जानी चाहिए।
  • लिव इन रिलेशन में रहने वालों का वयस्क होना बहुत जरूरी है, अगर कपल वयस्क नहीं हुआ तो संबंध वैध नहीं माना जायेगा।
  • लिव इन रिलेशन की सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि दोनों व्यक्ति का पहले से कोई पति या पत्नी नहीं होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति पूर्व में पति या पत्नी के रहते हुए किसी और के साथ लिव इन रिलेशन बनाता है तो वह अवैध माना जायेगा।

शादीशुदा होते हुए लिव इन में रहने पर हो सकता है तलाक:

  • दो बालिग पक्षकार आपसी सहमति से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं और इस पर कोई प्रकरण नहीं बनेगा क्योंकि वर्तमान में भारत में जारक्रम को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। यदि यह दोनों पक्षकार आपस में विवाह कर लेते हैं तो फिर आपराधिक प्रकरण बन सकता है लेकिन लिव इन के रहते हुए कोई भी आपराधिक प्रकरण नहीं बनेगा।
  • लिव इन के संबंध में भारत के उच्चतम न्यायालय ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं जिसमें यह बताया गया है कि लिव इन चोरी छुपे नहीं होना चाहिए बल्कि वह स्पष्ट होना चाहिए और जनता में इस बात की जानकारी होना चाहिए कि यह दो लोग आपस में बगैर विवाह के लिव-इन में रह रहे हैं।
  • यदि किसी शादी के कोई पक्षकार पति या पत्नी में से एक दूसरे को छोड़कर किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन में रहते हैं तब विरोधी पक्षकार को तलाक का आधार प्राप्त हो जाता है। हिंदू मैरिज एक्ट,1955 व्यभिचार को तलाक का आधार मानता है। इस स्थिति में व्यथित पक्षकार न्यायालय में मुकदमा संस्थित कर तलाक की याचना कर सकता है।
  • जहां वह न्यायालय को यह कह सकता है कि विवाह का पक्षकार किसी दूसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन में रह रहा है तथा लिव-इन में रहते हुए भी व्यभिचार कर रहा है और उसके व्यभिचार के कारण उसे तलाक का अधिकार प्राप्त है। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के अंतर्गत उसे तलाक मिल सकता है लेकिन लिव इन पर व्यथित व्यक्ति किसी भी तरह का कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं करवा सकता।

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