Historic decision of Supreme Court: Now even unmarried women can get abortion

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब अविवाहित महिला भी करवा सकती है एबॉर्शन

सुप्रीम कोर्ट ने अविवाहित महिलाओं के गर्भपात कराने को लेकर बड़ा फैसला दिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत यानि की सुप्रीम कोर्ट ने अब अविवाहित महिलाओं को ये अधिकार दे दिया है कि वो भी गर्भपात करा सकती है। इससे पहले गर्भपात का अधिकार केवल विवाहित महिलाओं को ही था।

केस: X बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, दिल्ली NCT सरकार 2022

दिल्ली की एक 25 वर्षीय महिला अपने बॉयफ्रेंड लिवइन रिलेशनशिप में रहती थी। दोनों ने आपसी सहमति से सेक्सुअल रिलेशनशिप बनाया। जिसके बाद में वो महिला प्रेग्नेंट हो गई। जब बात आई शादी की तो उसके बॉयफ्रैंड ने मना कर दिया। महिला उस बच्चे को भी जन्म नहीं देना चाहती थी।

महिला ने बताया अबॉर्शन क्यों चाहती है:

याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट से फैसला अपने पक्ष में मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां उसने कोर्ट को बताया कि वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। उसके माता-पिता किसान हैं। परिवार के पास आजीविका चलाने के साधन भी नहीं हैं। ऐसे में वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण करने में असमर्थ होगी।

दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला:

  • दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा था कि याचिकाकर्ता अविवाहित महिला हैं। वो अपने पार्टनर के साथ सहमति से संबंध के कारण प्रेगनेंट हुई हैं। और इस तरह का रिलेशनशिप इस एक्ट के अंतर्गत नहीं आता है। गर्भ 23 हफ्ते का है और वह मेडिकल प्रिगनेंसी ऑफ टर्मिनेशन एक्ट के तहत कवर नहीं हो रही हैं।
  • इसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और कहा कि हाईकोर्ट ने MTP के प्रावधानों को लेकर रोक लगाने में गलत दृष्टिकोण अपनाया था। एक विवाहित और अविवाहित महिला के बीच के अंतर के कारण कानून में मिलने वाली छूट से कोई संबंध नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • कोर्ट ने फैसले पर कहा कि जमाना बदल गया है विवाहित के साथ अविवाहित महिलाओं का भी अब अपने शरीर पर हक है और चुनने का अधिकार है। ऐसा जरूरी नहीं है महिला कि प्रेगनेंसी किसी नकारात्मक कारण की वजह से हुई हो, यदि दोनों में आपसी सहमति से बनाए गए संबध बने हो लेकिन इसके बाद भी एबॉर्शन की जरूरत पड़ सकती है। अभी भी बहुत साडी लड़कियों में एक डर होता है और वह डॉक्टर के पास नहीं जा पाती है। कई बार डॉक्टर भी डरते है की अगर वो ऐसी लड़कियों का गर्भपात करते हैं तो उनपर एक्शन होगा। लेकिन अब इस फैसले के बाद अब यह डर खत्म हो जाएगा।
  • कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के रूल्स के नियम 3-B का विस्तार किया है। इस रूल में मैरिटल स्टेटस शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इसी कारण इस अधिनियम में केवल शादीशुदा महिलाओ को ही अधिकार है एबॉर्शन करने का।
  • अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद लड़कियां बिना किसी डर के डॉक्टर के पास जा सकेंगी। इससे पहले यदि कोई अविवाहित महिला डॉक्टर के पास एबॉर्शन करवाने जाती तो उसे मना कर दिया जाता था लेकिन अब इस फैसले के बाद लड़किया आसानी से डॉक्टर के पास जा पाएंगी। पहले ये काम गैरकानूनी होता था। और लड़कियां डॉक्टर की सलाह लिए बगैर ही दवाई ले लेती थी, जो उनके लिए हानिकारक होता था।
  • सुप्रीम कोर्ट की 3 जजेस की बेंच जिसमे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकान्त और जस्टिस . एस. बोप्ना, ने अपने फैसले में कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रिगनेंसी एक्ट के प्रावधान को अनावश्यक तौर पर प्रतिबंधात्मक बताने का मत लिया और महिला को गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस एक्ट में 2021 में जो बदलाव किया गया है उसके तहत एक्ट में महिला और उसके पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में इस एक्ट के अंतर्गत अविवाहित महिला भी आती है और वो सेफ एबॉर्शन करवा सकती है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहाँ की महिला को केवल इसलिए एक्ट के दायरे से बाहर नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित है। इस एक्ट का मकसद सिर्फ वैवाहिक रिलेशनशिप से अनचाही प्रिगनेंसी तक सीमित नहीं है। इसमें विवाहित और अविवाहित महिला के बीच में भेदभाव करना उचित नहीं है।
  • रूल्स के एक्सप्लनेशन में कहा गया है कि अगर अनचाहा गर्भ है और वह महिला या फिर उनके पार्टनर द्वारा इस्तेमाल उपाय के फेल होने के कारण हुआ है तो वह अनचाहा गर्भ माना जाएगा। यहां पार्टनर शब्द का इस्तेमाल है और यह दिखाता है कि कानून में अविवाहित महिला को भी कवर किया गया है और यह संविधान के अनुच्छेद-14 के मद्दनेजर है। यदि इस एक्ट के अंतर्गत विवाहित और अविवाहित में फर्क किया जाएगा तो ये उनके अधिकारों का हनन होगा।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में निर्देश जारी किया है कि एम्स डायरेक्टर एक मेडिकल बोर्ड का गठन करें जो 22 जुलाई को महिला का मेडिकल एग्जामिनेशन करेगा और यह देखेगा कि महिला के गर्भपात से उसको जीवन का कोई खतरा तो नहीं है। अगर इस निष्कर्ष पर मेडिकल बोर्ड पहुंचता है कि 24 हफ्ते के गर्भ के टर्मिनेशन से कोई खतरा नहीं है तो महिला का प्रिगनेंसी टर्मिनेट कराया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है ताकि कानून की विस्तार से व्याख्या हो सके।
  • इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि अविवाहित महिलाओं को गर्भपात के अधिकार से वंचित रखना उनकी व्यक्तिगत आजादी का हनन है।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंनसी एक्ट में 2021 में संशोधन हुआ था:

  • सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2021 में संशोधन के बाद मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में धारा 3 के स्पष्टीकरण में पति के बजाय पार्टनर शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा है।
  • कोर्ट ने ऑर्डर जारी करते हुए यह भी कहा कि हमारा इरादा वैवाहिक संबंधों से उपजी परिस्थितियों को सीमित करने का नहीं है, लेकिन किसी भी अविवाहित महिला को ऐसे हालात में कानूनी सुरक्षा प्रदान की जा सके, इसलिए कानून का हवाला देकर उसे गर्भपात करवाने से रोकना सही नहीं है।

भारत में गर्भपात से सम्बंधित मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट:

  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) के अंतर्गत सहमति से गर्भपात करना एक अपराध होता है। हालांकि, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3 (2) () के तहत अनचाही गर्भावस्था को समाप्त करने के अधिकार महिला को दिए गए हैं। लेकिन इसके लिए भी कुछ नियम हैं। नियम ये कि गर्भपात की अनुमति तभी है जब गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक लेकिन 24 सप्ताह से अधिक हो।
  • 1971 में एक्ट आया था, जिसमे प्रवधान था की गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने की इजाजत है। जिसके बाद में 2021 में इस एक्ट के अंतर्गत बदलाव किया और ये समय सीमा कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते कर दी गई। इसमें पहले मेडिकल बोर्ड का गठन किया जायेगा और वही बोर्ड तय करेगा की एबॉर्शन करना शामे है या नहीं।

अगर गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का हो गया है 2021 से पहले एबॉर्शन की अनुमति किसी भी कंडीशन में नहीं थी, पर नए कानून के तहत मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर ऐसा किया जा सकता। परन्तु इसमें भी कुछ कंडशन को देखा जायेगा:

  • गर्भावस्था के 0 से 20 हफ्ते तक:  अगर कोई भी गर्भवती महिला गर्भपात करना चाहती है तो वह एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की सलाह से ऐसा कर सकती है। भले वो महिला विवाहित हो या अविवाहित।
  • गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक: अगर गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गहरा आघात लगने का डर हो, या जन्म लेने वाले बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक विकलांगता का डर हो, तब वह महिला दो डॉक्टरों की सलाह पर गर्भपात करा सकेगी। इस श्रेणी में यह परिस्थितियां महत्वपूर्ण होंगी-
  1. अगर अनचाहा गर्भ ठहरा हो। महिला या उसके पार्टनर ने गर्भावस्था से बचने के लिए जिन उपायों को आजमाया हो, वह फेल हो जाए।
  2. अगर महिला आरोप लगाए कि दुष्कर्म की वजह से गर्भ ठहरा है। इस तरह की प्रेगनेंसी उस महिला के लिए मानसिक रूप से अच्छी नहीं होगी।
  3. जहां भ्रूण में विकृति हो और इसका पता 24 हफ्ते बाद चले तो मेडिकल बोर्ड की सलाह के बाद गर्भपात किया जा सकेगा।

गर्भावस्था के 24 हफ्ते बाद: अगर भूर्ण अत्यधिक विकृत हो तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है। अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए ऐसा करना जरूरी हो तो भी कभी भी गर्भपात कराया जा सकता है।

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About The Auhor : Advocate Khushboo Jangid

Advocate Khushboo Jangid is a highly accomplished LLB graduate who received a gold medal for her academic excellence. She is a skilled writer focusing on legal issues, including impacting women and children. Her work in the field of law has garnered widespread recognition and praise.

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